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लोकतंत्र विरोधी मुहिम का भारत पर असर

अमेरिका में जो कुछ हो रहा है, उसके भू राजनीतिक पहलू का भारत पर भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ने वाला है।

Last Updated- February 24, 2025 | 9:57 PM IST
US Tariffs on India

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद वहां की सरकारी अफसरशाही के लगभग सभी स्तंभ ढहते जा रहे हैं और इस काम में उनका साथ दे रहे हैं अरबपति कारोबारी ईलॉन मस्क। मस्क नए सरकारी दक्षता विभाग या डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डोज) के मुखिया हैं। यह समझना जरूरी है कि अमेरिका में हो रही इन घटनाओं के पीछे मूल विचार क्या है। इनमें से अधिकतर विचार उन बुद्धिजीवियों के हैं, जो ‘टेक्नो-ऑप्टिमिस्ट’ यानी तकनीक पर यकीन करने वाले आशावादी हैं। उन्हें लगता है कि अभूतपूर्व और सार्वभौमिक मानव प्रगति का रास्ता तकनीकी प्रगति खासकर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) से होकर गुजरता है। वे कहते हैं कि तकनीकी प्रगति होनी ही है और इसे रोका नहीं जा सकता। इसलिए इसे धीमा करने या इसकी राह में बाधा डालने के बजाय इसका मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

जांच-पड़ताल और नजर रखने की अवधारणा वाले लोकतंत्र को पुराना बताकर नकारा जा रहा है और कहा जा रहा है कि तकनीकी प्रगति को रोकता है। ऐसी सोच ने ‘डार्क एनलाइटेनमेंट’ यानी अंधकारमय ज्ञान के विचार को जन्म दिया है, जो 16वीं सदी के यूरोपीय पुनर्जागरण से शुरू हुई उदारवादी प्रगति और मानवीय एवं उदार मूल्यों को अपनाकर 18वीं सदी में हुए जागरण से आई प्रगति के खिलाफ है। इस शब्द को ब्रिटिश विद्वान निकोलस लैंड सबसे पहले हाई-टेक शब्दावली में लाए थे और पीटर थिएल जैसे सिलिकन वैली उद्यमियों ने इसे लपक लिया। ‘एक्सेलरेशनिज्म’ इस डार्क एनलाइटेनमेंट का ही एक पहलू है, जो कहता है कि तकनीक खासकर एआई आज की औद्योगिक अर्थव्यवस्था में भारी रचनात्मक विनाश करेगी और व्यापक राजनीतिक तथा सामाजिक उथलपुथल लाएगी। इसलिए बेहतर है कि बदलाव की इस प्रक्रिया को तेज कर इसके अंजाम तक पहुंचाया जाए चाहे वह अंजाम कैसा भी हो। इसका रिश्ता ‘सिंगुलैरिटी’ से भी है, जो रे कर्जवेल की धारणा है।

कर्जवेल मानते हैं कि हम उस बिंदु की ओर बढ़ रहे हैं, जहां एआई मानव मेधा से आगे निकल जाएगी और उसका अपरिमित विस्तार होता रहेगा। कर्जवेल उस स्थिति का स्वागत कर रहे हैं, जो कई लोगों को भयावह और कष्टकारी भविष्य लग रहा है। समस्या यह है कि ट्रंप की नीतियों को प्रभावित कर रहे मस्क और सिलिकन वैली की कई शीर्ष हस्तियां इस टेक्नो-ऑप्टिमिज्म के समर्थक हैं बेशक इसके कट्टरतम स्वरूप का समर्थन नहीं करते हों। संघीय सरकारों को भंग करना तथा  हर तरह के नियम-कायदों को खत्म करना ‘एक्सेलरेशनलिज्म’ को लाने का पहला प्रयास है।

लैंड ने तकनीक से आने वाले इस बदलाव से जुड़ी एक अन्य घटना की भी व्याख्या की है, जिसे ‘हाइपरस्टीशन’ कहा जाता है। इसमें अंधविश्वास और उच्च तकनीकी बदलाव एक साथ चलते हैं। उनके शब्दों में यह ‘गल्प और तकनीक का मिश्रण’ है। तकनीक जादू तो बन ही रही है सोशल मीडिया की बेलगाम बाढ़ भी ला रही है, जिसमें समांतर और काल्पनिक वास्तविकताएं जन्म लेती हैं। भारत में यह पहले ही दिख रहा है। तकनीक के मालिक अति अभिजात्य विचारों वाले हैं मगर जनता को प्रभावित करने के औजार उनके ही हाथों में हैं, जो राजनीतिक वर्ग को भी आकर्षक लगते हैं। लेकिन जनमानस को वास्तव में नेता प्रभावित नहीं करते बल्कि यह तकनीकी अभिजात वर्ग करता है।

कॉरपोरेट लॉबी हमेशा राजनीति और सरकार को प्रभावित करती रही हैं। किंतु अब वे सरकार चलाना चाहती हैं और चाहती हैं कि पूंजीवादी कॉरपोरेट शक्ति समाज को संगठित करने वाली ताकत बने। राजनेता उनके लिए जरिया भर हैं। यकीन नहीं हो तो ओवल ऑफिस में मस्क का वीडियो देखिए। ट्रंप चुपचाप खड़े हैं, मस्क कैजुअल कपड़े पहने हैं और उनका बेटा देश के सबसे रसूख वाले दफ्तर में दौड़भाग कर रहा है। इसके जरिये जो संदेश दिया जा रहा है वह स्पष्ट है किंतु परेशान करने वाला भी है।

कॉरपोरेट ताकत की बात सिलिकन वैली के पूर्व उद्यमी कर्टिस यारविन ने उठाई है। वह कहते हैं कि सरकारें नाकाम हो चुकी हैं और लोकतांत्रिक सरकारें उनसे भी ज्यादा नाकाम हो गई हैं। अब वे न तो सुशासन दे सकती हैं और न ही वृद्धि-समृद्धि ला सकती हैं। उनकी पसंद ऐसी सरकार है जो किसी ताकतवर मुख्य कार्यकारी अधिकारी की अगुआई वाली सफल कंपनी जैसी हो और वह मुखिया उसे बिल्कुल अपनी मिलकियत की तरह चलाए। वह आईफोन का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि इसे ऐपल जैसी कंपनी ही बना सकती थी, जिसका नेतृत्व अपनी मर्जी चलाता है। या अतीत में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कुछ भी हासिल किया हो आज मंगल और उससे भी आगे बस्तियां बनाने का ख्वाब मस्क की स्पेसएक्स ही पूरा कर सकती है और वही भविष्य है। अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वांस सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं क वह यारविन के विचारों से प्रभावित हैं, जिनमें अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान में घर कर चुके तथाकथित डीप स्टेट को उखाड़ने और भविष्य की तैयारी करने वाला विचार भी शामिल है। डीईआई यानी डायवर्सिटी (विविधता), इक्विटी (समता) और इनक्लूजन (समावेशन) की नीतियां निशाने पर हैं, जो किसी भी बहुलवादी लोकतंत्र का अभिन्न अंग होती हैं।

अमेरिका में इन्हें त्यागा ही नहीं जा रहा है बल्कि यूरोप की दक्षिणपंथी पार्टियों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। आव्रजन विरोधी नीतियों से यह एकदम स्पष्ट हो जाता है। इसलिए विभिन्न श्रेणियों में काम करने के लिए अपने लोगों को विदेश भेजने का भारत का प्रयास इससे बाधित होगा। ट्रंप का दूसरा कार्यकाल पहले से अलग है। यह सोचना गलत होगा कि पहले चरण में कारगर रहे उपायों को फिर आजमाया जा सकता है। अमेरिकी राज्य की जिस संस्थागत इमारत को अमेरिकी संविधान से मान्यता मिली है, उसकी एक-एक ईंट निकाली जा रही है। निगरानी और जांच परख की व्यवस्था को समाप्त कर साम्राज्यवादी व्यवस्था कायम की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका की सफल यात्रा की है। कम से कम वह ऐसे बड़े नुकसान को टालने में कामयाब रहे जो अमेरिका अपने दोस्तों और दुश्मनों को पहुंचा सकता है। व्हाइट हाउस में जो शानोशौकत भरा दिखावा किया गया, उससे पहले और बाद में भारतीय नागरिकों (अवैध प्रवासियों) के साथ शर्मनाक बरताव किया गया और उन्हें अपमानजनक परिस्थितियों में वापस भारत भेजा गया।

स्वयंभू तानाशाह ट्रंप रूस के नेता व्लादीमिर पुतिन और चीन के शी चिनफिंग से करीबी की बात कहते हैं और मानते हैं कि वे उन दोनों से सौदेबाजी कर सकते हैं। हाल ही में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में वांस ने यूरोप का कद एकदम छोटा कर दिया, जब उन्होंने कहा कि यूरोप के लिए रूस और चीन खतरा नहीं हैं बल्कि यूरोप खुद है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका अब यूरोप का साथ नहीं दे सकता।

रूस के साथ जंग में यूक्रेन के भाग्य का फैसला करने के लिए जब ट्रंप और पुतिन बात करने बैठेंगे तो यूरोप नजर नहीं आएगा। ट्रंप को लगता है कि दुनिया की समस्याओं का समाधान किसी याल्टा (जहां दूसरे विश्व युद्ध के अंतिम समय में फ्रैंकलिन रूजवेल्ट, विंस्टन चर्चिल और जोसफ स्टालिन की बैठक हुई थी) में अमेरिका, रूस और चीन के बीच बातचीत से हो सकता है। ऐसा हुआ तो अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति की आधारशिला कहा जा रहा क्वाड सामरिक कदम भर बनकर रह जाएगा। अमेरिका में जो कुछ हो रहा है उसके भूराजनीतिक आयाम भारत पर गहरा असर डालेंगे।

(लेखक भारत के विदेश सचिव रह चुके हैं)

First Published - February 24, 2025 | 9:51 PM IST

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