भारत डिजिटल डेटा तैयार करने में दुनिया के अग्रणी देशों में शुमार रहा है। देश में 45 करोड़ लोग फेसबुक, 54 करोड़ लोग व्हाट्सऐप और 49 करोड़ लोग यूट्यूब इस्तेमाल करते हैं। इनमें प्रत्येक प्लेटफॉर्म (सोशल मीडिया) पर दुनिया के किसी भी देश में इतने उपयोगकर्ता मौजूद नहीं हैं। देश में ई-मेल इस्तेमाल करने वाले कुल लोगों में 82.6 फीसदी गूगल मेल (जीमेल) उपयोग करते हैं और 36 करोड़ लोग इंस्टाग्राम पर हैं। मगर दुनिया में कुल डिजिटल डेटा उत्पादन में 20 फीसदी योगदान देने के बाद भी भारत में इस मूल्यवान संसाधन का अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए पर्याप्त ढांचा मौजूद नहीं है।
दुनिया के सभी देश कुदरत से मिली ताकतों का लाभ उठाते हैं। चीन का दुर्लभ मृदा तत्वों के प्रसंस्करण में बोलबाला है तो ऑस्ट्रेलिया का लौह-अयस्क खनन में दबदबा है। चिली ने तांबा उत्पादन में अपना खासा नाम कमा लिया है। वैश्विक स्तर पर डेटा उत्पादन में भारत की बड़ी हिस्सेदारी देखते हुए इसके पास कम से कम 20 फीसदी डेटा केंद्र परिचालन क्षमता होनी चाहिए मगर यह 2 फीसदी से भी कम है। यह भारी अंतर भारत को रणनीतिक एवं आर्थिक दोनों मामलों में पीछे धकेल देता है इसलिए उसे डिजिटल डेटा क्षेत्र में संभावनाओं का लाभ उठाने से पीछे नहीं रहना चाहिए।
डेटा सेंटर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाने लगे हैं और सभी उद्योगों पर अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ रहे हैं। इससे देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। डेटा केंद्र नियमों का अनुपालन करते हुए सुरक्षित एवं तेज रफ्तार से डेटा उपलब्ध करा कर ई-कॉमर्स, फिनटेक और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे क्षेत्रों को मजबूती देते हैं। 2017 में आए एमआईटी के एक अध्ययन के अनुसार डेटा आधारित कंपनियों की उत्पादकता 4 फीसदी बढ़ जाती है और उनका मुनाफा कमाने की क्षमता भी 6 फीसदी तक अधिक हो जाती है।
जेनरेटिव एआई ने समय के साथ डेटा का महत्त्व बढ़ा दिया है। मैकिंजी के एक अनुमान के अनुसार डेटा हरेक साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2.6 लाख करोड़ डॉलर से 4.4 लाख करोड़ डॉलर तक योगदान दे सकते हैं और उत्पादन क्षमता 40 फीसदी तक बढ़ा सकते हैं। डेटा अब राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक क्षमता एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धी क्षमता को भी प्रभावित कर रहे हैं। दुनिया के देश और कंपनियां डेटा भंडारण, उनके आदान-प्रदान एवं इस्तेमाल पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे देखते हुए डेटा के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करना भविष्य के लिए काफी अहम हो गया है। भारत में स्थानीय स्तर पर डेटा केंद्र परिचालन क्षमता का विस्तार न केवल आर्थिक कारणों से जरूरी हो गया है बल्कि यह एक ऐसी रणनीतिक हथियार बन गया है जो देश की तकनीकी, भौगोलिक एवं सुरक्षा क्षमता को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है।
डेटा का न केवल महत्त्व बढ़ रहा है बल्कि इसकी मात्रा में भी इजाफा हो रहा है। मैकिंजी के एक अनुमान के अनुसार बिजली उपभोग के लिहाज से वैश्विक डेटा केंद्र की क्षमता इस समय 59 गीगावॉट है, जो 2030 तक बढ़कर 171-219 गीगावॉट तक पहुंच जाएगी। यानी इसमें सालाना चक्रवृद्धि दर पर 19-27 फीसदी का इजाफा होने का अनुमान है। भारत की मौजूदा डेटा केंद्र क्षमता लगभग 900 मेगावॉट है और माना जा रहा है कि अगले पांच वर्षों में यह बढ़कर दोगुना हो जाएगी। इसमें डेटा से चलने वाले ऐप्लिकेशन और फेसबुक एवं यूट्यूब जैसी वैश्विक कंपनियों की तरफ से स्थानीय आपूर्ति तंत्र की मांग की अहम भूमिका होगी। मगर तब भी भारत में डेटा केंद्र की क्षमता इसकी संभावित क्षमता का एक छोटा हिस्सा ही होगी।
भारत में जितनी मात्रा में डेटा तैयार होते हैं उस हिसाब से अगर डेटा केंद्र से जुड़े ढांचे तैयार की जाएं तो वर्ष 2030 तक इसे 40 गीगावॉट परिचालन क्षमता विकसित करनी होगी। इन सुविधाओं के विकास पर अनुमानित 400 अरब डॉलर निवेश आएंगे जिससे बुनियादी ढांचे पर पूंजीगत व्यय 20 फीसदी तक बढ़ जाएगा। इससे 10-20 लाख सीधे रोजगार मिलेंगे और तीन गुना तक अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर भी तैयार हो सकते हैं। इसका एक और फायदा यह होगा कि अतिरिक्त 80 करोड़ वर्ग फुट जगह की मांग बढ़ने से निर्माण उद्योग को भी बड़ी ताकत मिलेगी।
भारत में एक ठोस नीतिगत ढांचा तैयार करने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं जिससे डेटा केंद्रों की क्षमता में व्यापक सुधार लाया जा सकता हैं । समुद्र के अंदर केबल, केबल लैंडिंग स्टेशन, अपर्याप्त बिजली और निवेश की सीमित क्षमता जैसी बड़ी चुनौतियां अब दूर हो गई हैं। डिजिटल व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा अधिनियम से भारत में डिजिटल सुरक्षा भी वैश्विक मानकों के अनुरूप हो गई है। भारत डेटा केंद्रों के लिए 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति देता है। दुनिया की बड़ी इंटरनेट कंपनियां तेजी से स्थानीय स्तर पर सामग्री एवं सेवाएं तैयार कर रही हैं। भारत में श्रम बल में शामिल होने लायक बड़ी आबादी डेटा केंद्र विकसित करने में मददगार हो सकती हैं।
इंटरनेट कंपनियों को भारत में डेटा स्थानीय स्तर पर संरक्षित करने के लिए कहना डेटा केंद्र क्षमता विकसित करने का एक जरिया बन सकता है मगर इसके साथ कई खामियां भी हैं। दूसरे देश भी भारतीय कंपनियों के लिए ऐसी ही शर्तें लाद सकते हैं जिससे भारतीय आईटी क्षेत्र के लिए खतरा बढ़ जाएगा। स्थानीय स्तर पर डेटा संरक्षित करने की शर्त से भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए सेवाओं के दाम बढ़ सकते हैं। छोटी कंपनियां तो भारत से कारोबार भी समेट सकती हैं जिससे प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाएगी। इसके अलावा डेटा संरक्षण की शर्त को व्यापार बाधाओं के रूप में भी देखा जा सकता है जिससे भविष्य में कानूनी विवाद पैदा हो सकते हैं।
डेटा केंद्र तैयार करने में अमेरिका और चीन सबसे आगे चल रहे हैं। दोनों देशों की सरकारें इस अभियान में सभी प्रकार की मदद कर रही हैं। अमेरिका में राज्य करों में छूट (बिक्री, जायदाद और आयकर छूट सहित), लागत जल्द वसूलने की गुंजाइश, अक्षय ऊर्जा क्रेडिट, किफायती बिजली और अनुदान एवं सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन देते हैं। चीन में डेटा केंद्र राष्ट्रीय प्रमुख परियोजनाएं हैं जिन्हें कंपनी करों में कमी, नकद सब्सिडी, काफी सस्ती बिजली और हरित डेटा केंद्रों के रूप में प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।
भारत का डेटा केंद्र उद्योग विनिर्माण से भी अधिक आर्थिक लाभ दे सकता है और इसलिए इसे भी उतना ही मजबूत प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग को उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन (पीएलआई) एवं डिजाइन संबंधी प्रोत्साहनों से लाभ मिलता है। इसके साथ ही विनिर्माण संकुलों और सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन के लिए भी सब्सिडी दी जाती है। केंद्र सरकार के बाद राज्य सरकारें भी अतिरिक्त प्रोत्साहन देती हैं जिनमें पूंजी सब्सिडी, जमीन से जुड़े लाभ, बिजली शुल्क से छूट और मूल्य वर्धित कर रिफंड शामिल हैं। अगर डेटा केंद्रों को भी इसी तरह के प्रोत्साहन दिए जाएं तो इस क्षेत्र में भारी भरकम निवेश का रास्ता खुल सकता है जिससे रोजगार के अवसर बढ़ने के साथ ही तकनीकी विकास की प्रक्रिया भी तेज होगी। इससे भारत डेटा ढांचा के तौर पर एक आकर्षक स्थान बन जाएगा।
इन प्रोत्साहनों में 10 वर्षों तक कर छूट, डेटा केंद्रों के लिए आयातित उपकरणों पर सीमा शुल्क में छूट, डेटा केंद्रों एवं संबंधित उपकरणों पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) घटाकर 5 फीसदी करना, पीएलआई समर्थन और हरित सुविधाओं के लिए रियायती ऋण आदि शामिल हैं। किफायती दरों पर निर्बाध बिजली और बिजली वितरण कंपनियों से सीधी खरीदारी से बिजली पर लागत कम हो जाएगी। देहरादून, चंडीगढ़ या शिमला जैसे शहर (जहां डेटा केंद्रों को ठंडा रखने पर अधिक खर्च नहीं आएगा) डेडिकेटेड फाइबर कॉरिडोर केंद्र के रूप में विकसित किए जा सकते हैं।
डेटा केंद्रों के साथ अपार संभावनाएं जुड़ी हुई हैं जिनका पूरा लाभ नहीं उठाया जा रहा है। मानव इतिहास के शुरुआती दौर में एकत्र सभी जानकारियों से अधिक डेटा इस समय एक साल में एकत्र हो रहे हैं।
भारत में डेटा ढांचा में निवेश करने में देरी जरूर हुई है मगर समय अब भी हाथ से नहीं निकला है। चीन में एक कहावत है ‘पेड़ लगाने का सबसे उपयुक्त समय 20 वर्ष पहले था मगर दूसरा सबसे उपयुक्त समय अब शुरू हो रहा है’।
(लेखक पूर्व रक्षा सचिव एवं आईआईटी कानपुर में अतिथि प्राध्यापक हैं।)