आइए देखते हैं कि दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के मीडिया में आई कुछ सुर्खियों का: ‘चैट जीपीटी: 10 ऐसे रोजगार जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम मेधा द्वारा छीने जाने के सर्वाधिक जोखिम में हैं’, ‘चैटजीपीटी के कारण किन नौकरियों पर है खतरा?’, ‘इन नौकरियों को चलन से बाहर कर सकता है चैटजीपीटी।’ ऐसी सुर्खियों के बाद विस्तार से बताया जाता है कि किस प्रकार की नौकरियों को खतरा है, कौन से पद जोखिम में होंगे और किन उद्योगों पर अधिक खतरा मंडरा रहा है वगैरह…वगैरह।
मुझे स्वीकार करना होगा कि इन खबरों को पढ़कर मुझे ऐसा महसूस होता है मानो मैं सन 1840 के दशक के मैनचेस्टर में पहुंच गया हूं जब कपड़ा बुनने वाली मशीनें सामने आई थीं। मैं अनिच्छापूर्वक सुनता हूं कि शायद मुझे इस तरह के शब्द सुनने को मिलें, ‘प्रकृति के बाद श्रम ही हर प्रकार की संपदा का बुनियादी स्रोत है, प्रकृति ऐसे पदार्थ मुहैया कराती है जिन्हें श्रम संपत्ति में बदलता है। हकीकत में यह हर प्रकार के मानव अस्तित्व का बुनियादी आधार है।’
प्रिय पाठको आपको पता ही होगा कि ये शब्द फ्रेडरिक एंगेल्स के हैं। अपने समय के महान दार्शनिकों में शामिल रहे एंगेल्स एक अमीर जर्मन परिवार से आते थे। उनके पिता ने उनहें परिवार की बुनाई मिलों में से एक चलाने के लिए मैनचेस्टर भेजा था। उन्होंने बहुत जल्दी यह काम छोड़ दिया और कार्ल मार्क्स के साथ मिलकर मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर काम करना शुरू कर दिया। आइए देखते हैं कि किस प्रकार के और कितने रोजगारों के जाने के बारे में बात की जा रही है?
गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक अमेरिका और यूरोप में मौजूदा रोजगार में करीब दो तिहाई किसी न किसी हद तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण आने वाले स्वचपालन की जद में हैं। कुल काम का करीब एक तिहाई पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये किया जा सकता है।
बिज़नेस इनसाइडर की वेबसाइट मैकिंजी इंस्टीट्यूट के हवाले से कहती है कि सॉफ्टवेयर डेवलपर, वेब डेपलपर, कंप्यूटर प्रोग्रामर, कोडर और डेटा साइंटिस्ट जैसे तकनीक आधारित कामों के सबसे अधिक प्रभावित होने की आशंका है। उसके बाद पत्रकारिता, विज्ञापन जगत की कॉपी राइटिंग और विधिक सलाहकार जैसे कामों का नंबर आएगा।
जब हम नाराजगी से भरे पूर्वानुमान जताने वालों को देखते हैं तो एक बात साफ नजर आती है और वह यह कि वे सभी इस बात पर सहमत हैं कि चैटजीपीटी तथा उस जैसे अन्य इंसानी टेक्स्ट तैयार करने में सक्षम सॉफ्टवेयरों की मजबूती लोगों को चिंतित कर रही है।
दूसरे शब्दों में प्रबंधन सलाहकारों से लेकर निवेश बैंकों तक पूंजीवादी मान्यताओं वाले तमाम पर्यवेक्षक वही कह रहे हैं जो फ्रेडरिक एंगेल्स और उनके मित्र कार्ल मार्क्स ने 1840 के मध्य में कहा था।
मैं जिस स्वप्न में था वहां उपरोक्त बातें फ्रेडरिक एंगेल्स कह रहे थे। मैंने सपने में देखा कि मैं फुसफुसाकर उनसे कह रहा हूं, ‘लेकिन श्रीमान एंगेल्स, आपके प्रति पूरे सम्मान के साथ मैं कहना चाहता हूं कि क्या आपको यह नहीं नजर आता है कि कपड़ा इतना सस्ता बुना जा रहा है कि भारत के गरीब से गरीब किसान भी कॉटन की धोती और कुर्ता पहन सकते हैं और अब वे अर्द्ध नग्न अवस्था में नहीं दिखते जैसा कि पीढि़यों से नजर आता रहा है।’
सपने में वह कह सकते थे, ‘लेकिन श्रीमान बालकृष्णन, मेरे लिए सबसे अधिक मायने यह रखता है कि हाथों से कताई-बुनाई करने वाले बेरोजगार होते जा रहे हैं…यह बात ज्यादा मायने रखती है बजाय इस बात के कि भारतीय किसान अब बेहतर कपास के कपड़े पहन पा रहे हैं।’
चूंकि मुझे ऐसी तकनीक के सामने आने की प्रतीक्षा करनी होगी जो मुझे सन 1840 के मैनचेस्टर के समय में ले जाए इसलिए मुझे कम से कम चैटजीपीटी को लेकर अपनी बात कह लेने दीजिए जो आज हमारे चिंतकों के बीच चिंता का विषय बना हुआ है। इसके लिए मैं अतीत के कुछ उदाहरणों का इस्तेमाल करूंगा।
सबसे पहले बात करते हैं स्टेनोग्राफी की। सन 1970 के दशक के बॉम्बे में जब मैंने पहली बार काम करना शुरू किया था तब प्रमुख सेवा उद्योगों यानी विज्ञापन एजेंसियों, प्रकाशन कंपनियों और बैंकों के कुल कर्मचारियों में से एक चौथाई स्टेनोग्राफर होते थे। उसके बाद ही पर्सनल कंप्यूटर, माइक्रोसॉफ्ट वर्ड और उसके समान अन्य उपाय सामने आए।
छह वर्ष से भी कम अवधि के भीतर स्टेनोग्राफर की भूमिका सिमट गई। पर्सनल कंप्यूटर और वर्ड प्रोसेसिंग करने वाले सॉफ्टवेयर न केवल आधिकारिक पत्र लिखने में मददगार साबित हुए बल्कि वे विज्ञापन की कॉपी, आलेख तथा अन्य दस्तावेज तैयार करने में भी सहायता करने लगे। इस प्रकार हमने स्टेनोग्राफर्स को विदाई दी।
अगली बारी लेखाकारों और बुककीपर्स की थी। सन 1970 के दशक के आखिर में बैंकों और कारोबारों में इनकी तादाद कुल कामगारों का करीब दसवां हिस्सा होती थी। उसके बाद अंकेक्षण सॉफ्टवेयर आ गए जिन्होंने ऐसे आधे से अधिक लोगों के रोजगार समाप्त कर दिए। सन 1980 में करीब 10 लाख बैंक कर्मी यह कहते हुए विरोध में हड़ताल पर चले गए कि कंप्यूटर एक पूंजीवादी उपकरण है जो लोगों की नौकरियां छीनेगा।
परंतु उपरोक्त तमाम बातों के विपरीत ध्यान दीजिए कि कैसे हमारा सबसे प्रिय साथी यानी मोबाइल फोन, इंसानी व्यवस्था के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा है। इसने हम में से हर किसी को छायाकार बना दिया है। इसके अलावा इसकी बदौलत सभी वित्तीय सेवाओं का लाभ लेने लगे हैं। इस बीच बैंक शाखाओं और उनमें नजर आने वाले प्रबंधक और लिपिकों की पहुंच सीमित होती जा रही है।
अब किसी को रिकॉर्ड और कैसेट प्लेयर तथा टेलीविजन की भी जरूरत नहीं महसूस होती है। हम ये सारा काम अपने छोटे से मोबाइल फोन पर कर लेते हैं और चुटकियों में अपनी पसंद की चीज देख लेते हैं। इस बीच मैंने कभी नहीं देखा कि किसी ने छायाकारों, बैंकरों या मोबाइल फोन के आगमन से प्रभावित किसी अन्य क्षेत्र के लिए लेख लिखे हों और चिंता या शोक जताया हो।
क्या यह संभव है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस , चैट जीपीटी आदि हमारे वैसा ही कुछ करें जैसा कि मोबाइल फोन ने किया? यानी हम सभी को शब्दों को रचनात्मक ढंग से बरतने वाला बनाने का काम? क्या वह दुनिया को एक ऐसा स्थान बनाने का उपाय साबित हो सकता है जहां शब्दों के साथ रचनात्मक होना उसी तरह आसान होगा जिस तरह मोबाइल फोन ने तस्वीरों और संगीत आदि के साथ किया है?
(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)