यह बात करीब 20 साल पहले की है जब फरवरी 2001 में मशहूर अखबार दैनिक भास्कर ने हरियाणा के उन शहरों में सौ से अधिक डीलरों के लिए कार्यशालाएं आयोजित कीं जहां उसने अखबार के नए संस्करण लॉन्च किए थे। यह कार्यशाला मूल रूप से टेलीविजन, वाहनों और उनके कलपुर्जों के डीलरों को यह समझाने के लिए आयोजित की गई थी कि विज्ञापनों के माध्यम से उनके पास ज्यादा ग्राहक आएंगे और इनकी बिक्री भी बढ़ेगी।
विज्ञापन देने वाले स्थानीय डीलरों ने पहले भी दैनिक भास्कर के साथ अपने अनुभव साझा किए थे। उसी वर्ष, रेडियो सिटी, मिड-डे और एक दर्जन अन्य मीडिया ब्रांडों ने कार्यशालाएं आयोजित करने के साथ ही प्रचार के अन्य माध्यमों से स्थानीय जौहरी, बर्तन निर्माताओं और कोचिंग संस्थानों को आकर्षित करने की कोशिश की थी।
इनमें से अधिकांश कंपनियां अति स्थानीय ब्रांड लॉन्च कर रही थीं और राष्ट्रीय स्तर के विज्ञापनदाताओं पर निर्भरता कम करने के लिए स्थानीय विज्ञापन जुटा रही थीं जो पहले भाषाई समाचार पत्रों और मिड-डे जैसे छोटे ब्रांडों के प्रति उदासीन रहीं। इन वर्षों के दौरान ये प्रयास बेहद सफल भी साबित हुए। इनमें से कई को उनके राजस्व का 20 से 45 प्रतिशत हिस्सा स्थानीय विज्ञापनों के माध्यम से मिलता है।
अनिवार्य रूप से ऑनलाइन प्रकाशक भी अब कुछ ऐसा ही करने का प्रयास कर रहे हैं। एक शॉर्ट वीडियो न्यूज ऐप, ‘पब्लिक’ को हर दिन लगभग 50,000 वीडियो मिलते हैं। ये वीडियो पानी को लेकर होने वाली लड़ाई, शादी, दुकान खोले जाने जैसी कई असंख्य चीजों से जुड़ी हो सकती हैं।
इस मंच पर कोई भी स्थानीय घटनाओं पर आधारित एक मिनट तक का वीडियो अपलोड कर सकता है। वर्ष 2019 में लॉन्च के बाद से इसने भारत के हर जिले से लगभग 60,000 क्रिएटरों को एक साथ इकट्ठा करने की कोशिश की है। इस तरह यह इनशॉर्ट्स के 8 करोड़ उपयोगकर्ताओं का करीब 80 प्रतिशत हासिल कर लेता है।
अब बात करते हैं वे2न्यूज की जो दो तेलुगू भाषी राज्यों के 95 प्रतिशत मंडलों (उप-जिलों) को कवर करता है और यह सब 8,000 से अधिक स्ट्रिंगर, नागरिक पत्रकार और क्राउडसोर्सिंग के माध्यम से संभव हुआ है। इसमें एक दिन में 7,000-8,000 स्टोरी मिल जाती हैं।
दोनों की फंडिंग काफी अच्छी है। पब्लिक ने मार्च 2021 में ए91 पार्टनर्स और मौजूदा (अघोषित) निवेशकों के समूह से 25 करोड़ डॉलर (1,800 करोड़ रुपये) के मूल्यांकन पर करीब 300 करोड़ रुपये जुटाने में सफलता पाई। वहीं दूसरी ओर वे2न्यूज ने जून 2022 में वेस्टब्रिज कैपिटल और वेंचर कैपिटलिस्ट शशि रेड्डी से 129 करोड़ रुपये जुटाए।
पिछले दो वर्षों में, निवेशकों ने डेलीहंट, क्वाडजेटा और पब्लिक जैसे समाचार ऐप में कुछ करोड़ डॉलर डाले हैं जो किसी न किसी रूप में स्थानीयता के आधार पर सामग्री की पेशकश करते हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि आमतौर पर समाचार, भारत के 1.6 लाख करोड़ रुपये के मीडिया और मनोरंजन कारोबार का एक बड़ा हिस्सा है। निवेशकों को टीवी समाचार, समाचार पत्रों या पत्रकारिता-आधारित वेबसाइटों में अब कोई दिलचस्पी नहीं है। इसकी वजह यह भी है कि किसी के पास भी डेलीहंट, इनशॉर्ट्स या वे2न्यूज जैसी अनूठी सामग्री की पेशकश करने की संभावना नहीं है।
मास मीडिया से जुड़े ब्रांडों ने 1990 के दशक के अंत और इसके बाद स्थानीय बाजारों पर जोर देना शुरू कर दिया था क्योंकि यह दर्शकों और विज्ञापनदाताओं की भी जरूरत बन गई थी। इस बार इंटरनेट की वजह से एक बड़े प्रभाव वाली स्थिति बनने लगी। यह उस तरह के तेज लक्ष्यों पर जोर देता है जिसका मेल स्थानीय समाचार पत्र, रेडियो स्टेशन या केबल चैनल नहीं कर सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर अगर आप केवल मनोरमागंज (इंदौर) या कार्वे नगर (पुणे) में रहने वाले लोगों तक पहुंचना चाहते हैं, तो संसाधनों की बरबादी के बगैर यह इंटरनेट के माध्यम से आसानी से संभव है। वे2न्यूज के अधिकांश विज्ञापनदाता आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के स्थानीय ब्रांड हैं। ये स्थानीय अस्पताल, निदान केंद्र, शैक्षणिक संस्थान या खुदरा शोरूम जैसे ब्रांड हो सकते हैं।
मोटे अनुमानों के अनुसार, स्थानीय विज्ञापनों का दायरा करीब 25,000 करोड़ रुपये का है, चाहे वह केबल चैनलों पर, समाचार पत्रों के स्थानीय संस्करणों या किसी अन्य माध्यमों पर हो। गौर करने लायक बात यह है कि यह असंगठित खुदरा और कारोबारों का पैसा है जो किसी भी प्रमुख मीडिया या विज्ञापन एजेंसी में नहीं लगाया जाता है।
इन विज्ञापनदाताओं में से कई के लिए, रचनात्मक प्रचार-प्रसार की रणनीति भी मीडिया द्वारा डिजाइन की गई है जैसा कि दैनिक भास्कर ने 20 साल पहले अपने स्थानीय विज्ञापनदाताओं के लिए किया था। यही वजह है कि यह 75,000 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय विज्ञापन खर्च के आंकड़े का हिस्सा नहीं है। यह वह पैसा है जो डिजिटल में तेजी से लगाया जा सकता है।
निश्चित रूप से इसके परिणाम दिलचस्प होंगे। कोई इसे विज्ञापन के क्षेत्र में गूगल और मेटा के आधिपत्य को तोड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम मान सकता है। कॉमस्कोर डेटा के अनुसार, यूट्यूब के पास 46.3 करोड़ यूनिक विजिटर थे। मेटा (फेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम) के 30 करोड़ से 50 करोड़ उपयोगकर्ता हैं जो इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा ऐप इस्तेमाल किया जा रहा है।
इन दोनों के इस दबदबे वाली पहुंच का मतलब है कि वे 2021 में डिजिटल विज्ञापन पर किए जाने वाले 24,600 करोड़ रुपये का लगभग 80 प्रतिशत हासिल कर लेते हैं। यदि यह खेल, पहुंच से ब्रांड निर्माण में बदल जाता है तब इससे लक्षित दर्शकों के लिए स्थानीय ब्रांडों को हमेशा बढ़त मिलेगी।
नील्सन इंडिया की ताजा इंटरनेट रिपोर्ट के अनुसार, अब खेल बदल रहा है। महिलाएं, देश का ग्रामीण क्षेत्र और कम आमदनी वाले घर अब भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के सबसे तेजी से बढ़ते समूहों में शामिल हैं। पूरे भारत में स्मार्टफोन की साझेदारी ज्यादा है। इसका मतलब यह है कि इंटरनेट पर विज्ञापन का अगला दौर इससे भी आगे जाएगा। उदाहरण के लिए, यदि आप महिलाओं, नए उपभोक्ता वर्गीकरण प्रणाली ‘ए’ दर्शकों तक पहुंचना चाहते हैं, तो आप यह कैसे तय करते हैं कि विज्ञापन कहां देना है?
विज्ञापनदाताओं को अलग-अलग जरूरतों के लिए अलग-अलग ब्रांडों के साथ प्रयोग करना होगा जैसे उन्होंने जनसंचार का उपयोग करते वक्त किया था। यूट्यूब और मेटा दोनों यह बात जानते हैं। फेसबुक और व्हाट्सऐप पर स्थानीय किराना दुकानों और अन्य कारोबारों को लाने वाले अभियान पर जोर देना होगा।
अति स्थानीयकरण की ओर बढ़ते इस ऑनलाइन अभियान की दूसरी अहम बात यह है कि स्थानीय जानकारियों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे शहरों और कस्बों वाले घरों से जुड़ी अनकही कहानियों को संग्रह किया जा सकता है जो दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरु और चेन्नई में कभी नहीं सुने जाते हैं। उदाहरण के लिए, पब्लिक सोच रही है कि यह हर दिन मिलने वाले 50,000 वीडियो के जरिये सिंडिकेटेड न्यूज फीड दे सकती है या नहीं।
हालांकि, इससे जुड़ा एक गंभीर सवाल भी उठता है। पर्याप्त संतुलन या पत्रकारिता वाली बारीक नजर के बिना इतनी अधिक उपयोगकर्ताओं द्वारा दी गई सामग्री, इन न्यूज ऐप को गलत सूचनाओं का केंद्र बना सकती है। इसके अधिकांश हिस्से का इस्तेमाल राजनेताओं और असामाजिक तत्त्वों द्वारा किया जा सकता है जो इसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। इस जगह मीडिया साक्षरता अभियान बेहद मददगार साबित हो सकता है जो सभी उम्र के लोगों पर केंद्रित हो।