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बड़े संकट की चेतावनी

Last Updated- January 09, 2023 | 9:59 PM IST
Joshimath
PTI

जोशीमठ उत्तराखंड के कई तीर्थस्थानों तथा औली जैसे स्कीइंग केंद्र का प्रवेश द्वार है। वहां जमीन धंसने की घटना के लिए जोशीमठ तथा आसपास के इलाकों में अवैज्ञानिक ढंग से किए जा रहे विकास कार्य जिम्मेदार हो सकते हैं। परंतु इसकी बुनियाद उन मानवजनित गतिवि​धियों में ​निहित है जो पारि​स्थितिकी की
दृ​ष्टि से तथा भौगोलिक नजरिये से भी संवेदनशील हिमालय क्षेत्र के लिए नुकसानदेह हैं।

ब​ल्कि इस घटनाक्रम को एक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए कि ऐसी घटनाएं भविष्य में अन्य जगहों पर भी घटित हो सकती हैं। हालांकि पूरा हिमालय क्षेत्र भूस्खलन के खतरे वाला है क्योंकि वह भूकंप की आशंका वाले सक्रिय जोन 5 में ​स्थित है लेकिन उत्तराखंड में खतरा और भी अधिक है क्योंकि यह पूरा इलाका कमजोर और अ​स्थिर चट्टानों से बना है।

जोशीमठ खुद उस मलबे पर बसा हुआ है जो सौ साल पहले एक ग्ले​शियर के पिघलने के बाद हुए भूस्खलन से एकत्रित हुआ था। यह बात हिमालयन गजेटियर में 1886 में दर्ज की गई थी। उस गजट में भी यह बात दोहराई गई थी कि वह जगह बड़े पैमाने पर इंसानी रिहाइश के अनुकूल नहीं है।

गढ़वाल के तत्कालीन आयुक्त एम सी मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक समिति ने भी 1976 में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में जोशीमठ की जमीन ढहने की आशंका जताई थी। यहां तक कि हाल के वर्षों में भी विशेषज्ञों ने बार-बार चेतावनी दी कि जोशीमठ का अनियोजित विस्तार, उसकी आबादी में इजाफा और पर्यटकों की तादाद में अनियं​त्रित बढ़ोतरी ठीक नहीं है। परंतु इन चेतावनियों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

एक और बात जिस पर अब तक ध्यान नहीं दिया गया है कि वह यह है उत्तराखंड के चट्टानी इलाकों में पानी का रिसाव बराबर होता है जो उन चट्टानों की पकड़ और मजबूती को कमजोर करता है। जो​शीमठ में हाल में जो घटना हुई है वह भी इन्हीं वजहों से हुई है जबकि स्थानीय प्रशासन इन संकेतों की लगातार अनदेखी कर रहा था। हालांकि अब वहां हर प्रकार की विकास संबंधी गतिवि​धियों को रोक दिया गया है तथा भूगर्भीय अ​स्थिरता को लेकर अ​धिक विश्वसनीय जानकारियों की प्रतीक्षा की जा रही है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि वहां पहले ही अपूरणीय क्षति हो चुकी है।

उनका यह भी मानना है कि तपोवन जलविद्युत संयंत्र अथवा हेलंग और मारवाड़ी के बीच चार धाम सड़क का निर्माण जैसी मौजूदा परियोजनाएं इकलौती ऐसी परियोजनाएं नहीं हैं जिन्हें वर्तमान हालात का दोष दिया जा सकता है। वर्षों से इस क्षेत्र में जबरदस्त अधोसंरचना निर्माण का काम चलता रहा है जिसने यहां की पारि​​स्थितिकी, भूगर्भीय और जल​ विज्ञान संबंधी संतुलन को बिगाड़ दिया है।

इसके अलावा हिमालय क्षेत्र में अधोसंरचना तथा अन्य विकास योजनाओं की तैयारी करते हुए भी अत्य​धिक सावधानी बरतने की जरूरत बढ़ती जा रही है क्योंकि जलवायु परिवर्तन तथा बढ़ती इंसानी गतिवि​धियों के कारण बर्फ की चादर पतली होती जा रही है और ग्ले​शियर भी पिघल रहे हैं। एक हालिया अध्ययन में भी यह कहा गया है कि हिमालय तथा तिब्बत के पठारों में सन 1950 के दशक से ही तापवृद्धि की दर 0.2 डिग्री से​ल्सियस प्रति दशक की रही है।

इसकी वजह से ग्ले​शियरों का पिघलना तेज हुआ है। इससे जल विज्ञान संबंधी संतुलन बिगड़ा है और जलधाराओं का प्रवाह भी प्रभावित हुआ है। हिमालय के उत्तराखंड वाले हिस्से में ही करीब 2,850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 900 ग्ले​शियर हैं जिनका तेजी से क्षरण हो रहा है। जरूरत इस बात को समझने की है कि अन्य ​स्थिर पहाड़ी क्षेत्रों के उलट हिमालय के पहाड़ अभी भी नये हैं और उन्हें खास तवज्जो देने की जरूरत है। अगर इस बात की अनदेखी की गई तो हमें जोशीमठ जैसे और हादसों का गवाह बनना पड़ सकता है।

First Published - January 9, 2023 | 9:59 PM IST

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