हमें हाल ही में हुई त्रासद हवाई दुर्घटना के बाद सामूहिक राष्ट्रीय शोक की घड़ी में देश की हवाई सुरक्षा क्षमताओं को लेकर आत्मावलोकन करने की भी आवश्यकता है। सैद्धांतिक तौर पर हम जानते हैं कि बाजार के स्तर पर होने वाली विफलताएं सरकारों को हस्तक्षेप के लिए प्रेरित करती हैं। कुछ ही विमानन कंपनियों के छोटे से समूह के एकाधिकार से बाजार की ताकत की समस्या हो सकती है। कुछ विमानन कंपनियां मुनाफा बढ़ाने के लिए सुरक्षा व्यय में कटौती कर सकती हैं।
आमतौर पर यात्रियों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे किसी विमानन कंपनी की सुरक्षा का आकलन कर सकें क्योंकि उन्हें इस विषय में बहुत अधिक जानकारी नहीं होती। विमान दुर्घटनाएं अक्सर कई पक्षों पर भारी पड़ती हैं। ऐसे में इन बाजार विफलताओं से निपटने और विमानन कंपनियों में हस्तक्षेप करने के लिए सरकारी एजेंसी की आवश्यकता है। फिलहाल हमारे देश में यह काम नागर विमानन महानिदेशालय यानी डीजीसीए करता है।
नियामकीय सिद्धांत हमें इस बारे में बहुत कुछ बताता है कि ऐसे संगठन को किस तरह गठित किया जाना चाहिए। इसके लिए कार्यकारी सरकार की मदद, विशेषज्ञों की विशेषज्ञता, और सहजता से तथा निर्णायक कदम उठाने की क्षमता की आवश्यकता होती है। इसे विधायी रूप से शक्तिसंपन्न होना चाहिए कि वह इस क्षेत्र का नियमन कर सके, स्वायत्त हो और पर्याप्त संसाधन संपन्न हो यानी उसके पास मानव संसाधन, वित्तीय व्यवस्था और जरूरी खरीद के लिए पर्याप्त संसाधन हों। उसे इनके लिए किसी सरकारी विभाग पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमें यह याद करना चाहिए कि सांविधिक नियामक प्राधिकरण (एसआरए) की स्थापना की एक वजह विशेष कौशल, श्रम शक्ति और प्रक्रिया तैयार करना भी है जो सरकार से अलग हों।
मौजूदा डीजीसीए की बात करें तो इसके पास एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा और समर्पित काम करने वाले लोग हैं जो हर कीमत पर सुरक्षा को बरकरार रखना चाहते हैं। परंतु इसकी संस्थागत डिजाइन में कई जरूरी तत्व नदारद हैं। डीजीसीए की शक्तियां मोटे तौर पर कार्यकारी अधिसूचनाओं के जरिये आती हैं। इसके अलावा ये शक्तियां आज़ादी के पहले बने एक कानून और 2024 के एक पूरक अधिनियम की बदौलत भी आती हैं।
संस्था के पास ऐसा कोई स्पष्ट उद्देश्य या स्वायत्तता नहीं है जो संसद के एक आधुनिक, समग्र और विशिष्ट अधिनियम से प्राप्त हो, जिसमें इसके अधिकार, स्वतंत्रता और संचालन की संरचना को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया हो। यह संस्था नागर विमानन मंत्रालय के सीधे प्रशासनिक नियंत्रण में एक अधीनस्थ कार्यालय के रूप में काम करती है। बजट, नीतिगत निर्देश और यहां तक कि स्टाफ की संख्या से जुड़े निर्णय भी अक्सर मंत्रालय से ही आते हैं। इससे एजेंसी की क्षमता के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
डीजीसीए अपने मानव संसाधन के लिए पारंपरिक लोक सेवा भर्ती प्रक्रिया का पालन करता है। ऐसे में उत्कृष्ट विमान चालकों, विमानन रखरखाव इंजीनियरों, एयर ट्रैफिक कंट्रोल विशेषज्ञों और दुर्घटनाओं की जांच करने वालों को साथ जोड़ना मुश्किल होता है क्योंकि उनके पास विमानन कंपनियों, एआरओ (मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल करने वाली संस्थाएं) या अंतरराष्ट्रीय विमानन संस्थाओं में काम करने के बेहतर अवसर होते हैं।
मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय के रूप में डीजीसीए के वित्तीय संसाधन भी सालाना बजट आवंटन पर निर्भर रहते हैं। अक्सर उसे अन्य मंत्रालयीन
प्राथमिकताओं से जूझना पड़ता है। इसकी वजह से अक्सर उसे कम फंडिंग मिलती है और बेहतरीन जांच उपकरणों, उन्नत प्रणालियों और प्रशिक्षण सुविधाओं या अहम आईटी अधोसंरचना आदि में निवेश की उसकी कोशिशें कमजोर पड़ जाती हैं। जबकि सुरक्षा निगरानी में इन सब की अहम भूमिका होती है। संसाधनों की बाधा और खरीद की सीमाएं दोनों ऐसी तकनीक को तेजी से अपनाने और लागू करने में दिक्कत पैदा करती हैं।
एक पारंपरिक सरकारी विभागीय ढांचे में संचालन अनिवार्य तौर पर कई तरह की मंजूरियों पर निर्भर होता है और धीमी निर्णय प्रक्रिया उत्पन्न करता है। विमानन के क्षेत्र में जहां हालात तेजी से बदल सकते हैं, वहां ऐसी देरी एजेंसी के प्रभाव को कम करती है। ये ढांचागत और परिचालन सीमाएं मिलकर समस्याओं को बढ़ाती हैं और नियामक की स्वायत्तता को लेकर भरोसा कमजोर होता है। वहीं बेहतरीन कार्य व्यवहार को अपनाने में धीमापन और सुरक्षा प्रबंधन में नवाचार की संभावना कम होती है। कुल मिलाकर ये बातें डीजीसीए के लिए उसके प्राथमिक उद्देश्य को हासिल करने की क्षमता पर असर डालती हैं।
विकसित देशों की ऐसी ही सरकारी एजेंसियों की बात करें तो अमेरिका में फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) नामक एक समकक्ष एजेंसी है। यह विमानों के डिजाइन, निर्माण, रखरखाव और परिचालन का नियमन करती है। यह सभी प्रकार के नागरिक विमानों, विमान चालकों, मैकेनिकों और विमान कंपनियों का प्रमाणन करती है और यह सुनिश्चित करती है कि वे उसके कठोर मानदंडों को पूरा करें। इसकी परिचालन शाखा यानी एयर ट्रैफिक
ऑर्गनाइजेशन (एटीओ) हवाई क्षेत्र का प्रबंधन करती है।
एफएए के पास अपने कर्मी और खरीद व्यवस्था है जो अधिकांश संघीय एजेंसियों का संचालन करने वाले नियमों से अलग है। यूके में समकक्ष एजेंसी का नाम है सिविल एविएशन अथॉरिटी यानी सीएए। यह विमानों के डिजाइन, निर्माण, रखरखाव और परिचालन का नियमन करती है। इसके काम में यूके में पंजीकृत विमानों का प्रमाणन, विमान चालकों, एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों का प्रमाणन और विमानन कंपनियों द्वारा सुरक्षा अनुपालन सुनिश्चित करवाना शामिल है।
नियामकीय सिद्धांत के अनुसार ही तथा नियामक और सेवा प्रदाता के बीच के अंतर को एक कदम आगे ले जाते हुए, विमानन क्षेत्र का परिचालन प्रबंधन पूरी तरह स्वतंत्र संस्था द्वारा किया जाता है जिसका नाम है: एनएटीएस। यह सार्वजनिक-निजी भागीदारी में काम करती है। यह ढांचागत अलगाव उनकी प्रशासनिक स्वायत्तता सुनिश्चित करता है। सीएए एक सार्वजनिक निकाय के रूप में यूके के सिविल सेवा नियमों से बंधा नहीं है और इसलिए उसने अपनी नीतियां तय की हैं और उसकी अपनी खरीद प्रक्रिया भी है जो सरकार से अलग है। एनएटीएस एक निजी कंपनी है वह पूर्ण व्यावसायिक स्वायत्तता के साथ संचालित होती है। उसने अपने अलग खरीद नियम तय किए हैं और उसकी रोजगार शर्तें सरकारी प्रारूप से पूरी तरह बाहर हैं।
संसद द्वारा एक नया व्यापक कानून बनाया जाना जरूरी है ताकि एक विमानन सुरक्षा प्राधिकरण (एएसए) का गठन किया जा सके। हमें भारतीय वित्तीय संहिता की तर्ज पर एक स्वच्छ, आधुनिक और व्यवस्थित मसौदा कानून की जरूरत है। नए संगठन को परिचालन की स्वायत्तता हासिल होनी चाहिए और उसका अपना गवर्निंग बोर्ड होना चाहिए जिसके पास स्पष्ट रूप से व्याख्यायित शक्तियां हों, जिसके पास सुरक्षा को बाकी चीजों पर प्राथमिकता देने का शासनादेश हो। बोर्ड का घटक और उसकी भूमिका राज्य की क्षमता हासिल करने की दृष्टि से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। बोर्ड को प्रबंधन टीम को भी जवाबदेह बनाना चाहिए और संगठन की समस्त गतिविधियां पारदर्शिता और जवाबदेही के लिहाज से अनुकूल होनी चाहिए।
उसके पास वित्तीय स्वायत्तता होनी चाहिए। उसकी फंडिंग के लिए हवाई सफर पर एक समर्पित उपकर लगाया जा सकता है या फिर एक खास आवंटन जो सालाना सरकारी आवंटन पर निर्भर न हो। इससे वह जरूरी अधोसंरचना, तकनीक और मानव संसाधन में निवेश करने में सक्षम होगा। उसे अपनी मानव संसाधन नीतियां तैयार करने की स्वायत्तता होनी चाहिए जिसमें नियुक्तियों में लचीलापन, प्रतिस्पर्धी वेतन और एक विशिष्ट विमानन सुरक्षा पेशेवर काडर तैयार करना शामिल हो।
अनुबंध प्रणाली जटिल तकनीकी दिक्कतों को हल करने में एक अहम बाधा बन कर सामने आ रही है। ऐसे में नई संस्था को सरकारी अनुबंधों के अनुभवों के आधार पर विकसित नए ज्ञान का इस्तेमाल करने वाला होना चाहिए। अगर भारत को एक प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था और प्रमुख हवाई परिवहन केंद्र बनना है तो एक ऐसा सुरक्षा नियमन ढांचा आवश्यक है जो विश्व स्तरीय हो, स्वायत्त हो और किसी भी तरह की कमजोरी से मुक्त हो।
(लेखक आईसीपीपी में मानद सीनियर फेलो और पूर्व अफसरशाह हैं)