facebookmetapixel
Editorial: कौशल विकास में निजी-सरकारी तालमेल और निगरानी की चुनौतीस्वतंत्र नियामक संस्थाओं को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाना लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरीट्रंप का H-1B वीजा कदम: अमेरिकी कंपनियों के लिए महंगा, भारत की अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारीयूएन में ट्रंप का हमला: भारत-चीन को बताया रूस-यूक्रेन युद्ध का मेन फाइनेंसरRBI का निर्देश: बिना दावे की रा​शि का तेजी से हो निपटान, 3 महीने की दी मोहलतH-1B वीजा फीस बढ़ने से रुपये पर दबाव, डॉलर के मुकाबले 88.75 के नए निचले स्तर पर आया रुपयाजियो ब्लैकरॉक म्युचुअल फंड ने लॉन्च किया फ्लेक्सीकैप फंड, कम खर्च में एक्टिव इक्विटी में एंट्रीसेंसेक्स नए शिखर से 5% दूर, BSE 500 के 300 से ज्यादा शेयर 20% से ज्यादा गिरेअर्निंग डाउनग्रेड की रफ्तार थमी, सरकारी कदमों से शेयर बाजार को सहारा मिलने की उम्मीद : मोतीलाल ओसवालकिर्लोस्कर विवाद पर सेबी का बयान: लिस्टेड कंपनियों के खुलासे बाध्यकारी नहीं

Editorial: फेडरल रिजर्व ने घटाई ब्याज दरें, ट्रंप के दबाव और वैश्विक बाजारों पर नजर

फेडरल रिजर्व ने बुधवार को नीतिगत ब्याज दर 25 आधार अंक घटाकर 4.0-4.25 फीसदी के दायरे में कर दी

Last Updated- September 18, 2025 | 10:53 PM IST
US Fed rate

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) की बैठक पर पूरी दुनिया के वित्तीय बाजारों की नजरें टिकी रहती हैं। मगर इस बार उनकी दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही थी। फेडरल रिजर्व ने बुधवार को नीतिगत ब्याज दर 25 आधार अंक घटाकर 4.0-4.25 फीसदी के दायरे में कर दी है। पहले यह 4.25 से 4.50 फीसदी के दायरे में थी।

वित्तीय बाजार ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद लगाए बैठा था। मगर एफओएमसी ने नीतिगत दर घटाने के निर्णय पर जिस तरह मतदान किया और भविष्य के लिए जो इशारे किए उनमें सभी की काफी दिलचस्पी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय व्हाइट हाउस में आर्थिक सलाहकार स्टीफन मिरान भी मंगलवार को शुरू हुई एफओएमसी की बैठक में शामिल थे।

सोमवार रात अमेरिकी संसद के ऊपरी सदन सीनेट में मिरान को फेडरल रिजर्व बोर्ड में भेजने के प्रस्ताव पर मुहर लग गई थी। मिरान फिलहाल व्हाइट हाउस से अवकाश पर हैं और केंद्रीय बैंक में कार्यकाल खत्म होने पर दोबारा अपने पुराने पद पर लौट सकते हैं। जैसा कि अनुमान जताए जा रहे थे, मिरान ने एफओएमसी बैठक में बहुमत का साथ नहीं दिया क्योंकि वह नीतिगत दर में 50 आधार अंक की कटौती के पक्ष में थे।

जो भी हो, मिरान की उपस्थिति फिलहाल फेडरल रिजर्व के लिए एकमात्र असमान्य बात नहीं है। वास्तव में फेडरल रिजर्व में उन्हें भेजा जाना एक बड़ी योजना का हिस्सा है। ब्याज दरें तेजी से नहीं घटाने के लिए फेडरल रिजर्व और इसके अध्यक्ष जेरोम पॉवेल लगातार अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के निशाने पर रहे हैं।

ट्रंप ने केंद्रीय बैंक की एक गवर्नर लिसा कुक को भी हटाने की कोशिश की थी मगर न्यायालय ने उन्हें अपने पद पर बने रहने और एफओएमसी की बैठक में शामिल होने की अनुमति दे दी। ट्रंप फेडरल रिजर्व की कार्य प्रणाली पर अधिक से अधिक नियंत्रण रखना चाहते हैं। बाजार में मध्यम अवधि में काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि ट्रंप की यह योजना क्या रंग दिखाती है।

एक स्वतंत्र केंद्रीय बैंक लंबे समय से अमेरिकी वित्तीय प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है। अमेरिकी वित्तीय तंत्र का वैश्विक वित्तीय बाजारों एवं पूंजीगत प्रवाह पर दूरगामी असर होता है। फेडरल रिजर्व या अमेरिकी बाजारों पर विश्वास डिगने से पूरी दुनिया के वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल मच सकती है और इसके दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं। निकट अवधि में होने वाली संभावित बातों का जिक्र करें तो फेडरल रिजर्व द्वारा जारी अनुमानों के अनुसार वह इस साल होने वाली दो और बैठकों में ब्याज दर में 25-25 आधार अंक की कमी कर सकता है।

इसके बाद अगले वर्ष ब्याज दर में एक और कटौती हो सकती है। अमेरिकी श्रम बाजारों में दिख रही कमजोरी नीतिगत दर में कमी की एक बड़ी वजह रही है। मुद्रास्फीति को लेकर अनुमानों की जहां तक बात है तो जून की तुलना में 2026 के लिए इसे 20 आधार अंक बढ़ाकर 2.6 फीसदी कर दिया गया है। यह फेडरल रिजर्व के मध्यम अवधि के 2 फीसदी लक्ष्य से काफी अधिक है।

फिलहाल यह देखना बाकी है कि विभिन्न देशों से आयात पर शुल्क लगाने का अमेरिका में मुद्रास्फीति पर क्या असर दिखता है। मुद्रास्फीति ऊंचे स्तरों पर बनी रही तो आने वाली तिमाहियों में यह फेडरल रिजर्व के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। हालांकि, फिलहाल वित्तीय हालात आसान रहने चाहिए। उदाहरण के लिए इस महीने 10 वर्ष की अवधि के अमेरिकी सरकारी बॉन्ड पर यील्ड में 20 आधार से ज्यादा कमी आ गई है।

वैश्विक स्तर पर वित्तीय हालात तुलनात्मक रूप से सहज रहने से भारत में निवेश बढ़ना चाहिए मगर आने वाली तिमाहियों में पूंजी की आमद भारत और अमेरिका के बीच व्यापार पर चल रही वार्ता पर भी काफी हद तक निर्भर रहेगी। दोनों देशों के बीच व्यापार पर जारी मौजूदा बातचीत के अनुकूल परिणाम निकलने और अमेरिकी में ब्याज दरें कम रहने से भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार के लिए निकट अवधि में अनिश्चितता निश्चित रूप से काफी कम हो जाएगी।

First Published - September 18, 2025 | 10:50 PM IST

संबंधित पोस्ट