जैसा कि इस समाचार पत्र में सोमवार को प्रकाशित हुआ था, केंद्र सरकार बैंक जमा बीमा के स्तर को मौजूदा 5 लाख रुपये से बढ़ाने पर विचार कर रही है। हालांकि अंतिम निर्णय अभी तक नहीं लिया गया है लेकिन इस सीमा को बढ़ाकर 10 लाख रुपये किया जा सकता है। जमा राशि का बीमा जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम द्वारा किया जाता है जो वाणिज्यिक और सहकारी बैंकों में हर प्रकार के जमा को कवर करता है।
सरकार द्वारा जमा पर बीमा की सीमा बढ़ाने पर विचार किया जाना वास्तव में स्वागतयोग्य कदम है। मौजूदा अनुमानों के मुताबिक बीमाकृत बैंकों के 98 फीसदी खातों को बीमा सुरक्षा हासिल है जबकि सुलभ जमा खातों में से केवल 43 फीसदी ही सुरक्षित हैं। ऐसे में बीमा की सीमा बढ़ाने से जमा अधिक सुरक्षित होगा।
चूंकि नीति निर्माता अभी भी सीमा बढ़ाने की प्रक्रिया में हैं इसलिए बेहतर होगा कि वे ग्राहकों के बीच प्रौद्योगिकी को तेजी से अपनाए जाने के साथ-साथ हालिया वैश्विक घटनाक्रम को भी ध्यान में रखें। यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि बैंकिंग अभी भी एक अस्थिर कारोबार है। यह भी एक वजह है जिसके चलते जमा का बीमा किया जाता है। बैंक ज्यादातर अल्पावधि के जमा के आधार पर लंबी अवधि के ऋण देते हैं। अगर सभी जमाकर्ता एक साथ अपनी राशि वापस मांगें तो शायद कोई भी बैंक उनका पैसा वापस करने की स्थिति में नहीं होगा। ऐसे में किसी बैंक के नाकाम होने की खबर मात्र भी उसकी नाकामी की वजह बन सकती है।
जमा बीमा यह सुनिश्चित करता है कि जमाकर्ता अपने पैसे की निकासी की हड़बड़ी न करें क्योंकि ऐसा होने पर तनाव के समय हालात खराब हो सकते हैं। हालांकि, अगर बीमा की सीमा बहुत कम रहती है तो वांछित उद्देश्य ही पूरा नहीं होगा। इसी वजह से इस सीमा में नियमित रूप से इजाफा किया जाता है। इसकी सीमा को वर्ष 2020 में एक लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया गया था।
तकनीक के व्यापक रूप से अपनाए जाने को देखते हुए अब यह संभव हो गया है कि बैंकों के ग्राहक अपने फंड को दिन में किसी भी समय, बिना बैंक शाखा गए हस्तांतरित कर सकें। इससे संकट के समय समस्या बहुत बड़ी हो सकती है। ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि जमा बीमा की सीमा में इजाफा किया जाए ताकि किसी बैंक की नाकामी की स्थिति में जमाकर्ताओं को नुकसान का जोखिम खत्म किया जा सके। यह न केवल व्यक्तिगत जमाकर्ताओं के नज़रिये से महत्त्वपूर्ण है बल्कि यह बैंकिंग की स्थिरता बढ़ाने में भी मददगार साबित होगा। एक परस्पर जुड़ी वित्तीय व्यवस्था में घबराहट बहुत तेजी से फैल सकती है और अच्छे से अच्छे बैंक में नकदी संकट की शुरुआत कर सकती है।
वर्ष 2023 के सिलिकन वैली बैंक संकट का उदाहरण लिया जा सकता है। तब घबराहट फैलने के कारण संबंधित अधिकारियों ने घोषणा की थी कि प्रत्येक जमा की रक्षा की जाएगी। इसके चलते व्यापक बैंकिंग संकट से बचने में मदद मिली। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी जमाकर्ताओं को आश्वस्त करने के लिए हस्तक्षेप किया था।
जमा बीमा की सीमा में महत्त्वपूर्ण इजाफा करने की बुनियादी वजह यह है कि व्यक्तिगत जमाकर्ताओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे धनराशि जमा करने के पहले बैंकों की बैलेंस शीट का विश्लेषण करेंगे। बैंक खाता एक बुनियादी आधुनिक आवश्यकता है। जमा की सुरक्षा भी सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए। इसे बैंकिंग नियामक की मदद से अंजाम दिया जा सकता है। लेकिन यह अपवाद केवल बैंक खातों के लिए होना चाहिए न कि अन्य वित्तीय योजनाओं के लिए जहां जमाकर्ता उच्च रिटर्न की आशा में अधिक जोखिम उठाने का इच्छुक हो। एक संभावित अस्थिर बैंकिंग व्यवस्था अर्थव्यवस्था के सहज कामकाज में बाधक हो सकती है और दीर्घकालिक आर्थिक संभावनाओं पर असर डाल सकती है।
वहीं दूसरी ओर बहुत ज्यादा बीमा स्तर बैंक प्रबंधन को उच्च जोखिम लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है क्योंकि जमा की सुरक्षा की गारंटी होती है। यह एक वास्तविक आशंका है और बेहतर नियमन और निगरानी के जरिये इसे हल करना होगा। एक बड़ी अर्थव्यवस्था में बैंकों का दबाव में आना अभी भी संभव है। बहरहाल, व्यक्तिगत जमाकर्ताओं से इसकी कीमत चुकाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।