कोविड-19 महामारी के कई साल बाद भी इस बीमारी का वायरस सक्रिय है। हॉन्गकॉन्ग, सिंगापुर और थाईलैंड में इस बीमारी के प्रसार के लिए जिम्मेदार वैरिएंट जेएन.1 को पहली बार अगस्त 2023 में पहचाना गया था। यह ओमिक्रोन वैरिएंट का ही एक प्रकार है, जो बहुत अधिक संक्रामक है। हाल के दिनों में कोविड के मामले तेजी से बढ़े हैं और भारत में भी अब तक इसके 257 सक्रिय मामले दर्ज हो चुके हैं, जिससे चिंता की लहर दौड़ गई है। हालांकि 1.4 अरब की आबादी वाले इस देश में यह संख्या बहुत मामूली लग सकती है लेकिन इस पर लापरवाही नहीं होनी चाहिए। स्वास्थ्य कर्मियों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले समूहों मसलन बुजुर्गों और बच्चों के लिए कोविड खासा दिक्कतदेह हो सकता है।
खबरों के मुताबिक सरकार हालात पर नजर बनाए हुए है। कोविड 19 का बार-बार सिर उठाना बताता है कि यह अब स्थानीय बीमारी में बदल चुका है। संक्रमण में हालिया इजाफे की कई वजह हो सकती हैं। इनमें टीके से मिली रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म होना, बूस्टर खुराक न लेना और सामूहिक प्रतिरक्षा का कमजोर पड़ना शामिल हैं। देश में टीकाकरण के प्रयास भी ढीले हो गए हैं। यह नया सब-वैरिएंट बताता है कि वायरस अपना रूप बदलने और खुद को ढालने में सक्षम है। ऐसे में मौजूदा टीकों की क्षमता भी सवालों के घेरे में है। प्रतिरक्षा कमजोर पड़ने की संभावना का भी सरकार द्वारा समुचित अध्ययन किया जाना चाहिए। टीकाकरण के शुरुआती दौर के बाद जहां मौत और अस्पताल में दाखिलों की तादाद में तेजी से कमी आई थी वहीं ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनसे मिला बचाव समय के साथ खत्म हो रहा है। इसका अर्थ है कि हमें वायरस के नए रूपों में सामने आने के साथ ही नई टीकाकरण नीति भी अपनानी होगी।
कई विकसित देश कोविड-19 टीके की बूस्टर खुराक हर साल लगाने की पेशकश कर रहे हैं, खास तौर पर उन समूहों को जो अधिक जोखिम में हैं। भारत को भी इसी मॉडल पर विचार करना चाहिए। बुजुर्गों को, गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों को और स्वास्थ्यकर्मियों को नियमित रूप से टीकाकरण में प्राथमिकता देनी चाहिए। ये टीके भी बदलते वैरिएंट के लिहाज से उन्नत होने चाहिए। एमआरएनए का विज्ञान ऐसा है कि उस पर आधारित टीकों को अपेक्षाकृत जल्दी बदला जा सकता है और टीके लगाने का बुनियादी ढांचा पहले से मौजूद है। कोविन ऐप को बड़े स्तर पर इस्तेमाल करने की क्षमता के कारण हम महामारी के दौरान लाखों लोगों को बहुत कम समय में टीका लगा सके। तैयारी केवल टीके तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। इसमें जागरूकता और लोगों के व्यवहार में बदलाव भी शामिल होना चाहिए। जागरूकता अभियान भयभीत करने के लिए नहीं बल्कि बचाव के सरल मगर कारगर व्यवहार पर जोर देने के लिए चलाए जाने चाहिए। भीड़-भाड़ वाली सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनें, नियमित रूप से हाथ साफ करें और कम हवादार जगहों पर जाने से बचें। इससे संक्रमण का प्रसार रुक सकता है। इन उपायों को अपनाने से काफी बदलाव आ सकता है, खास तौर पर जहां जनसंख्या का घनत्व अधिक है।
सकारात्मक बात यह है कि हालिया वैश्विक घटनाक्रम देखते हुए हम तैयारी को लेकर सचेत हैं। तीन सालों की गहन बातचीत के बाद एक वैधानिक रूप से बाध्यकारी महामारी समझौता मंजूर किया जा चुका है। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों की हालिया विश्व स्वास्थ्य असेंबली में मंजूर किया गया। यह समझौता कहता है कि टीके और जरूरी संसाधन सभी को उपलब्ध होने चाहिए और राष्ट्रीय स्तर पर तैयारी की पुख्ता योजना होनी चाहिए। हालांकि रोगाणु और डेटा साझेदारी से संबंधित पैथोजन एक्सेस ऐंड बेनिफिट शेयरिंग सिस्टम्स (पीएबीएस) पर बातचीत जारी है। भारत के लिए इन वैश्विक मानकों से जुड़ना और अंतरराष्ट्रीय ढांचे में सक्रिय भागीदारी करना बहुत अहम है। जरूरत इस बात की भी है कि जीनोम निगरानी को मजबूत किया जाए ताकि फैल रहे रोगाणुओं को पहचाना जा सके, उन्नत खुराकों के साथ टीकाकरण का दायरा बढ़ाया जा सके, बायोफार्मा क्षेत्र में निवेश किया जाए और व्यक्तिगत स्तर पर और साफ-सफाई तथा नियमित स्वास्थ्य जांच सुनिश्चित की जानी चाहिए।