संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के निवेशकों को राहत देते हुए भारत ने उसके साथ द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) के कुछ प्रावधानों को शिथिल कर दिया है। इसमें निवेशकों के लिए विवाद की स्थिति में समाधान के स्थानीय उपायों का उपयोग करने की अवधि को पांच वर्ष से कम करके तीन वर्ष करना शामिल है। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर भारतीय न्याय व्यवस्था इस तय अवधि में किसी विवाद को हल कर पाने में नाकाम रहती है तो निवेशक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का सहारा ले सकते हैं।
यह भारत के बीआईटी मॉडल में एक बड़ा बदलाव है जिसमें स्थानीय समाधान उपायों के लिए पांच वर्ष की अवधि का प्रावधान है और यकीनन ऐसा करके निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास किया गया है। भारत-यूएई बीआईटी के दायरे में शेयर और बॉन्ड जैसे पोर्टफोलियो निवेश भी हैं।
उम्मीद है कि इससे संधि के दायरे का विस्तार होगा और पैसिव वित्तीय होल्डिंग वाले निवेशक इन्वेस्टर स्टेट डिस्प्यूट सेटलमेंट (आईएसडीएस) प्रणाली की मदद से विवादों को हल कर सकेंगे। अप्रैल 2020 से जून 2024 के बीच यूएई ने भारत में कुल 19 अरब डॉलर का निवेश किया। यह देश में आने वाले कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई का करीब तीन फीसदी था।
बीते वर्षों के दौरान मध्यस्थता संबंधी कई निर्णय भारत के खिलाफ गए हैं। इन निर्णयों में भारत की विदेशी परिसंपत्तियों, जिनमें राज्य के स्वामित्व वाली संपत्तियां शामिल हैं, को जब्त कर लिए जाने का खतरा भी शामिल रहा।
उदाहरण के लिए भारत ने मध्यस्थता संबंधी कुछ विपरीत निर्णयों को मानने से इनकार कर दिया। इसके कारण देवास और केयर्न कंपनियों ने तत्कालीन सरकारी कंपनी एयर इंडिया की विदेशी परिसंपत्तियों को जब्त करने की कार्रवाई की। एक अन्य चर्चित विवाद में वोडाफोन द्वारा 2007 में हचीसन से भारतीय मोबाइल सेवा प्रदाता की खरीद करने के बाद पूंजीगत लाभ कर के दावे को लेकर समस्या खड़ी हुई थी। कर कानूनों में अतीत से प्रभावी होने वाले बदलाव करने से हालात और अधिक जटिल हो गए।
आखिरकार आईएसडीएस मध्यस्थता प्रणाली के मेजबान देश के नियमन के बजाय निवेशकों के अनुकूल होने से जुड़ी चिंताओं के कारण भारत ने 2015 के आखिर में मॉडल बीआईटी ढांचे को अपनाया। इसमें विदेशी निवेशकों को भारत के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अपनाने के पूर्व कम से कम पांच साल तक स्थानीय उपायों का पालन करने, लगाए गए किसी भी कराधान उपाय को बाहर रखने तथा सर्वाधिक तरजीही मुल्क (एमएफएन) वाले हिस्से को बाहर रखने की आवश्यकता है।
संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन के आंकड़े दिखाते हैं कि अंतरराष्ट्रीय विवाद निस्तारण के 1,332 ज्ञात मामलों में से 361 सरकारों के पक्ष में गए जबकि 268 फैसले निवेशकों के पक्ष में गए। इससे यह धारणा ध्वस्त हो गई कि आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के मामले सरकार के बजाय निवेशकों के पक्ष में जाते हैं।
अतीत में कई देश मॉडल बीआईटी में स्थानीय उपचार प्रावधान समाप्त होने पर असहजता प्रकट कर चुके हैं। मध्यस्थता में विवेक कम करने की कोशिश के कारण मॉडल बीआईटी विदेशी निवेशकों के हितों के बचाव में नाकाम साबित हुई है। सरकार के नीतिगत हस्तक्षेप हालात को और जटिल बनाते हैं।
नीतियों में स्थिरता होनी चाहिए और वे ऐसी होनी चाहिए कि अनुमान लगाया जा सके। बार-बार नीतियों में बदलाव कारोबारी माहौल पर असर डालता है। भारत-यूएई बीआईटी में संशोधित प्रावधानों के कारण निकट भविष्य में भारत के विरुद्ध मध्यस्थता के मामले बढ़ने का जोखिम है लेकिन यह निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करेगा और अन्य देशों के लिए भी ऐसा ही किया जाना चाहिए। इसके अलावा भारत को अपनी न्यायिक व्यवस्था में भी सुधार करने की जरूरत है ताकि विवादों को तेजी से निपटाया जा सके। इससे कुल मिलाकर निवेशकों का भरोसा जीतने और कारोबारी सुगमता बढ़ाने में मदद मिलेगी।