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Editorial: इकॉनामी से आ रहे खुशनुमा संकेत

अर्थव्यवस्था वर्ष की दूसरी छमाही में बेहतर स्थिति में आ गई। खासतौर पर अंतिम तिमाही में।

Last Updated- June 01, 2025 | 10:22 PM IST
Indian Economy

गत सप्ताह जारी राष्ट्रीय लेखा आंकड़ों ने अधिकांश अर्थशास्त्रियों को सकारात्मक रूप से चौंकाया। वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी वास्तविक अर्थों में 6.5 फीसदी बढ़ी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने भी अपने दूसरे अग्रिम अनुमानों में इसके इसी स्तर पर रहने की बात कही थी। दूसरी तिमाही में वृद्धि दर के 6 फीसदी से नीचे रहने के कारण चिंता की स्थिति बनी।

बहरहाल, अर्थव्यवस्था वर्ष की दूसरी छमाही में बेहतर स्थिति में आ गई। खासतौर पर अंतिम तिमाही में। चौथी तिमाही के दौरान सकल मूल्यवर्धन 6.8 फीसदी रहा और इसमें कृषि, विनिर्माण और सेवा जैसे क्षेत्रों का योगदान रहा। विनिर्माण क्षेत्र इस तिमाही में भी केवल 4.5 फीसदी की दर से बढ़ा।

मांग की बात करें तो पूरे साल के दौरान निजी अंतिम खपत व्यय 7.2 फीसदी बढ़ा जबकि इससे पिछले साल यह 5.6 फीसदी बढ़ी थी। निवेश में केवल 7.1 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि इससे पिछली तिमाही में यह 8.8 फीसदी बढ़ा था। वर्ष की शुरुआत धीमी निवेश गतिविधि से हुई लेकिन दूसरी छमाही में इसने गति पकड़ ली।

यह सही है कि वृद्धि 6.5 फीसदी रही लेकिन यह भी ध्यान देने लायक है कि यह 2023-24 के 9.2 फीसदी के मुकाबले काफी कम है। इसके अलावा 2021-22 में कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से इस वर्ष विस्तार की गति सबसे धीमी रही। वर्ष के दौरान कई अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि महामारी के झटके से उबरने के बाद वृद्धि सामान्य स्तर पर लौट आई है। चालू वर्ष के लिए कृषि क्षेत्र से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। मॉनसून जल्दी आ गया है और बारिश के सामान्य से बेहतर रहने की उम्मीद है। उच्च कृषि उत्पादन न केवल वृद्धि में सीधा योगदान करेगा बल्कि ग्रामीण आय में भी इजाफा करेगा। इससे मांग को समर्थन मिलेगा। कुल मिलाकर निजी खपत में सुधार के संकेत हैं लेकिन यह देखने की बात होगी कि यह टिकाऊ है या नहीं। चाहे जो भी हो, उच्च कृषि उत्पादन और कम खाद्य मुद्रास्फीति मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी को नीतिगत राहत का अवसर देंगे।

विश्लेषकों का अनुमान है कि एमपीसी मौजूदा चक्र में नीतिगत ब्याज दरों में 50 से 100 आधार अंकों की और कटौती करेगी। वास्तविक कमी इस बात पर निर्भर करेगी कि एमपीसी आने वाली तिमाहियों में मुद्रास्फीति में किस प्रकार के उभार की उम्मीद करती है और संभावित वृद्धि को लेकर क्या अनुमान लगाती है। अगर मुद्रास्फीति के परिणाम लक्ष्य के करीब रहते हैं तो एमपीसी शायद नीतिगत समायोजन के साथ वृद्धि को गति दे।

बहरहाल, काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि बाहरी माहौल क्या करवट लेता है? अमेरिका और अन्य जगहों पर उच्च बॉन्ड प्रतिफल भी एमपीसी के विकल्पों को प्रभावित कर सकते हैं। वास्तव में बाहरी वित्तीय और आर्थिक अनिश्चितताएं भारतीय अर्थव्यवस्था को कई प्रकार से प्रभावित करेंगी। अमेरिका की एक अदालत ने डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा आपात उपायों का इस्तेमाल करके लगाए गए उच्च शुल्कों पर रोक लगाने का निर्णय दिया है। बहरहाल, एक अन्य अदालत ने उन्हें अस्थायी राहत प्रदान की है। इस बीच ट्रंप ने स्टील और एल्युमीनियम पर शुल्क दोगुना करने की घोषणा की है।

ट्रंप प्रशासन के कदमों से उत्पन्न वैश्विक व्यापार और आर्थिक अनिश्चितता जारी रह सकती है। इस बीच विभिन्न देश अमेरिका के साथ व्यापार समझौतों पर चर्चा करेंगे। इस बात की संभावना नहीं है कि ट्रंप अपनी टैरिफ योजना को त्यागेंगे। ऐसे में कानूनी जटिलताएं अनिश्चितता में और इजाफा करेंगी। ऐसे हालात में निर्यात और निवेश पर असर हो सकता है। इसका असर वृद्धि पर भी पड़ेगा। गत सप्ताह के आंकड़े यह भी बताते हैं कि सरकार गत वित्त वर्ष के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब रही। इस वर्ष भी उससे यही उम्मीद है। उच्च पूंजीगत व्यय आवंटन से वृद्धि को इस वर्ष भी मदद मिलती रहेगी। ऐसे में वृद्धि को सबसे बड़ा जोखिम बाहरी होगा। भारत इस माहौल से कैसे निपटता है और सुधारों का क्रियान्वयन करके कारोबारी चक्र में कैसे सुधार करता है,  इससे ही मध्यम अवधि में हमारी वृद्धि का दायरा क्या होगा।

First Published - June 1, 2025 | 10:22 PM IST

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