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संपादकीय: इजरायल को कमजोर पड़ता समर्थन

हाल ही में रफा (Rafah) से इजरायल में दागे गए रॉकेटों से पता चलता है कि हमास अपनी पीठ पर ईरान का हाथ होने की वजह से मजबूत जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता रखता है।

Last Updated- May 31, 2024 | 9:32 PM IST
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सात महीने पहले शुरू हुई इजरायल-हमास जंग (Israel-Hamas war) अब गतिरोध के स्तर पर पहुंच गई है। वैसे तो दोनों में से कोई भी पक्ष अपने उद्देश्य के करीब भी नहीं पहुंचा है, लेकिन इजरायल की विफलताएं उसके पास मौजूद असंगत सैन्य शक्ति की वजह से काफी बढ़ गई हैं।

इजरायली सेना ने गाजा को मलबे में तब्दील कर दिया है, फिर भी न तो वे हमास को खत्म करने के करीब हैं और न ही, हमास द्वारा अक्टूबर 2023 में अचानक हमला कर बंधक बनाए गए इजरायली नागरिकों को छुड़ा पाए हैं। अमेरिका और यूरोप से आपूर्ति होने वाले अत्याधुनिक हथियारों से गाजा पर हमला करने के बावजूद 129 इजरायली नागरिक बंधक बने हुए हैं और काफी हद तक हमास नेतृत्व को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।

हाल ही में रफा (Rafah) से इजरायल में दागे गए रॉकेटों से पता चलता है कि हमास अपनी पीठ पर ईरान का हाथ होने की वजह से मजबूत जवाबी कार्रवाई करने की क्षमता रखता है। इस तरह इजरायल एक विषम गुरिल्ला युद्ध में फंस गया है।

साल 2020 के अब्राहम समझौते (अमेरिका, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच) के आधार पर एक पश्चिम एशियाई गठबंधन बनाने की अमेरिका की उम्मीदें विफल हो गई हैं क्योंकि फिलिस्तीनियों के साथ इजरायल के व्यवहार के खिलाफ अरब जगत में असंतोष की आवाज ने अरब शक्तियों को पीछे हटने के लिए मजबूर किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब इजरायल के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन तेजी से कमजोर पड़ रहा है।

हमास के हमले पर, जिसमें बच्चों सहित 1,200 लोग मारे गए थे और 252 लोग बंधक बनाए गए, करीब पूरी दुनिया की सहानुभूति हासिल कर चुका इजरायल अब गाजा में आक्रामक रुख अपना चुका है।

खबरों के मुताबिक इसकी वजह से 36,000 से ज्यादा आम फिलिस्तीनी लोग मारे जा चुके हैं (जिनमें करीब 15,000 बच्चे थे) और 80,000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इसे लेकर काफी आक्रोश है। रफा में इजरायल की सैन्य कार्रवाई की लगभग पूरी दुनिया में आलोचना हुई है, खासकर उस हमले के बाद जिसमें विस्थापित फिलिस्तीनी नागरिकों के लिए बनी एक टेंट सिटी जलकर तबाह हो गई।

इस महीने की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर फिलिस्तीन के संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने के प्रस्ताव को सही ठहराया और सिफारिश की कि सुरक्षा परिषद इस पर अनुकूल तरीके से विचार करे। इस प्रस्ताव के पक्ष में 143 (भारत सहित), विपक्ष में 9 वोट पड़े और 25 सदस्य देश अनुपस्थित रहे।

इसके बाद नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने औपचारिक रूप से फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दे दी। पिछले हफ्ते अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) ने युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोप में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और हमास नेता याह्या सिनवार, दोनों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट की मांग की थी।

आईसीसी के स्थापना कानून पर इजरायल के यूरोपीय सहयोगियों सहित 124 देशों के दस्तखत हैं। इसके मुताबिक अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ वारंट है और वह इन देशों की यात्रा पर जाता है तो वे उसे गिरफ्तार करने के लिए बाध्य हैं।

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने इजरायल के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका के द्वारा पिछले साल दाखिल एक मामले में इसी 30 मई को इजरायल को आदेश दिया कि वह गाजा पर अपने सैन्य हमले तत्काल बंद करे।

इसके पहले जनवरी महीने में भी आईसीजे ने इजरायल को आदेश दिया था कि वह गाजा में जंग को रोकने के लिए यथासंभव सभी उपाय करे। वैसे तो इस तरह के बढ़ते टकराव के माहौल में ऐसे आदेशों का पालन कठिन ही है, लेकिन इनमें काफी प्रतीकात्मक शक्ति जरूर है।

इस बीच, अमेरिका में जो बाइडन का फिर से राष्ट्रपति चुना जाना अधर में ही दिख रहा है, क्योंकि इजरायल को हमास के खिलाफ जंग में बिना शर्त समर्थन दिए जाने को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर ही मतभेद की स्थिति है।

अमेरिकी विश्वविद्यालय परिसरों में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से ऐसा लग रहा है कि सभी नस्ल के युवा मतदाताओं (यहूदी समुदाय सहित) में गाजा में इजरायली कार्रवाई को लेकर गहरी आपत्ति है।

जंग को लेकर इजरायली मंत्रिमंडल में भी फूट पड़ गई है, जिससे यह संभव है कि श्री नेतन्याहू और उनके साथियों को इसकी कीमत चुकानी पड़े। लेकिन गाजा की बरबादी और पश्चिमी तट से बड़े पैमाने पर फिलिस्तीनियों के निष्कासन के साथ, यह संभव है कि दो देशों में विभाजन का समाधान जमीन पर पस्त हो गया हो, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने नई चुनौतियां आ सकती हैं।

First Published - May 31, 2024 | 9:17 PM IST

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