जापान की चार कार निर्माता कंपनियों का अगले पांच वर्षों में थाईलैंड में यूटिलिटी वाहनों सहित इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण का प्रमुख केंद्र बनाने के लिए 4.3 अरब डॉलर तक का निवेश करने का इरादा है। थाईलैंड दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (आसियान) का दूसरा सबसे बड़ा देश है और जापान के साथ उसके काफी लंबे समय से बेहतर औद्योगिक संबंध रहे हैं।
हालांकि इन दिनों थाईलैंड जापान और चीन के बीच औद्योगिक और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का रणक्षेत्र बनता दिख रहा है। चीन की बड़ी कार निर्माता कंपनियों ने इलेक्ट्रिक वाहनों की आपूर्ति श्रृंखला पर अपना दबदबा बनाना शुरू कर दिया है और इनका दावा है कि वे भविष्य में थाईलैंड पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगी।
इस तरह के घटनाक्रम को देखते हुए निस्संदेह जापान की तरफ से प्रतिक्रिया मिल रही है जहां कई अरसे से टोयोटा और होंडा जैसी दिग्गज वाहन कंपनियों का दबदबा रहा है।
हालांकि, भारतीय नजरिये से देखा जाए तो यह सवाल उठता है कि क्या इसी तरह के निवेश भारत के वाहन क्षेत्र में भी तेजी से और विश्वसनीय तरीके से किए जा रहे हैं। निश्चित रूप से यह तथ्य है कि भारत में कार निर्माण क्षेत्र को संघर्ष नहीं करना पड़ रहा है। यह क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है और अधिकांश वर्षों में अकेले अपने दम पर भारत के विनिर्माण उत्पादन में आधे से अधिक का योगदान देता है।
ऐसे में इन बातों को ही ध्यान में रखते हुए यह सवाल उठाया जा सकता है कि क्या हाल के निवेश इस क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए पर्याप्त थे जिस क्षेत्र में अब हाइब्रिड, इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ-साथ हाइड्रोजन ईंधन-सेल वाले वाहनों की तेज वृद्धि देखे जाने की उम्मीद है।
भारत, थाईलैंड की तरह अपने भू-राजनीतिक कारणों से चीन की वाहन कंपनियों से बड़े निवेश की उम्मीद नहीं कर सकता है। लेकिन कम से कम इसके मजबूत ऐतिहासिक संबंध जापान के वाहन क्षेत्र के साथ हैं। इन्हीं संबंधों की वजह से भारत में पैसा लगाने के बारे में सोचते वक्त संभावित विदेशी निवेशक सहज महसूस कर सकते हैं।
अकादमिक शोध में इस क्षेत्र के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और उत्पादन वृद्धि के बीच एक बड़ा संबंध पाया गया है। वर्ष 2021-22 की आर्थिक समीक्षा में इस क्षेत्र के लिए FDI में निरंतर वृद्धि की उम्मीद जताई गई थी क्योंकि वर्ष 2021 के अप्रैल-सितंबर की अवधि के दौरान ही इस क्षेत्र में 4.9 अरब डॉलर का FDI मिला था।
वर्ष 2021-22 के पूरे वर्ष के दौरान FDI 7 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया लेकिन फिर वर्ष 2022-23 में इसमें तेज गिरावट देखी गई और यह 1.9 अरब डॉलर के स्तर पर सिमट गया। हालांकि यह भी कोई कम संख्या नहीं हैं, लेकिन यह भारत की वास्तविक क्षमता को नहीं दर्शाता है।
इस क्षेत्र के लिए भारत की औद्योगिक नीति काफी हद तक बड़ी कंपनियों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) पर केंद्रित रही है। वर्ष 2021 में ही वाहन पीएलआई की अधिसूचना दी गई थी, लेकिन अभी तक इसका कोई वितरण नहीं किया गया है। इस योजना के 67 आवेदकों में से केवल दो कंपनियां ही सब्सिडी की पात्रता प्रक्रिया पूरा करने में सफल रही हैं जो विदेशी कंपनियां नहीं बल्कि भारतीय कंपनियां हैं।
हालांकि इस क्षेत्र में निवेशकों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए पीएलआई जैसी प्रणाली की सहूलियत ही काफी नहीं है। भारत को विनिर्माण और निर्यात के एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरने के लिए अन्य तरीकों पर विचार करना चाहिए।
इस क्षेत्र के कारोबारी माहौल में सुधार की जरूरत है। इसके अलावा, देश की व्यापार नीति के तहत आपूर्ति श्रृंखला में भारत को जोड़ने पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए व्यापार समझौते काफी अहम होंगे।
भारत ने जापान, कोरिया और आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं, लेकिन अब उसे बड़े बाजारों, खासतौर पर यूरोपीय संघ के साथ भी ऐसे ही मुक्त व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाना चाहिए। आम चुनाव से पहले यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने का समय नजदीक आ रहा है। इस समझौते को अगले कुछ महीने में अंतिम रूप देना ही राष्ट्रीय स्तर की प्राथमिकता होनी चाहिए।