इस समाचार पत्र में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय एक बैठक आयोजित करने जा रहा है। उसमें इस पर विचार किया जाएगा कि कैसे छह खास उत्पाद श्रेणियों में निर्यात मूल्य बढ़ाया जा सकता है। इसमें खास तौर पर पश्चिमी देशों के अलावा रूस, चीन और इंडोनेशिया समेत 20 प्रमुख बाजारों को ध्यान में रखा जाएगा। नीति निर्माता और प्रशासक देश के निर्यात को बढ़ाने के लिए जितनी ऊर्जा लगा रहे हैं और जिस रुचि का प्रदर्शन कर रहे हैं वह काबिले तारीफ है।
यह भी अच्छी खबर है कि राजदूतों समेत देश के राजनयिकों को इस रणनीति पर चर्चा के लिए प्राय: आमंत्रित किया गया है। हालांकि देश के राजनयिकों के समूह के सबसे वरिष्ठ लोगों का मानना है कि व्यापार संवर्धन का काम उनके कामों के अन्य पहलुओं के बाद आना चाहिए। ऐसा माना जा सकता है कि इस प्रयास की वजह देश के वाणिज्यिक निर्यात में हाल के समय में आई गिरावट है। पिछले महीने यह दो वर्षों के अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। ऐसे में एक लक्षित निर्यात नीति को जरूरी माना जा रहा है।
यह बात पहले ही स्पष्ट है कि देश के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए क्या-क्या करने की आवश्यकता है? सरकार को सुधार के इसी एजेंडे पर आगे बढ़ना है और आधुनिक व्यापार की प्रकृति को ध्यान में रखकर चलना है। उदाहरण के लिए जिन 20 देशों की सूची बनाई गई है उनमें से कई यूरोपीय संघ के सदस्य हैं। उस क्षेत्र में निर्यात बढ़ाने का स्वाभाविक तरीका यह है कि एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएं। इस पर लंबे समय से बातचीत जारी है। बिना व्यापार संतुलन के निर्यात बढ़ाने का विचार पुराना हो चुका है।
अगर निर्यात बढ़ाना है तो संभावित विदेशी साझेदारों को भारतीय बाजार में पहुंचने देना होगा। अन्य क्षेत्रों में मसलन अमेरिका आदि के साथ मुक्त व्यापार समझौता होता नहीं दिखता। खास तौर पर डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल को देखते हुए यह मुश्किल लगता है। ऐसे में इन क्षेत्रों को निर्यात बढ़ाने का सवाल किफायत, प्रतिस्पर्धी क्षमता और लागत में कमी पर निर्भर करता है। प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने के लिए भारत को वैश्विक मूल्य श्रृंखला में शामिल होना होगा। उसके लिए स्थिर व्यापार और कर नीति की आवश्यकता है। देश में करों और टैरिफ को लेकर परिवर्तनशीलता और आयात की गुणवत्ता तय करने के लिए मनमाने गुणवता मानक आदेशों ने भी वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत के प्रवेश को बाधित किया है। ऐसे में अमेरिका जैसे बाजारों में निर्यात बढ़ाने की उसकी क्षमता भी प्रभावित हुई है।
यकीनन कारोबारी मित्रता के लिए प्रशासनिक से लेकर न्यायिक सुधारों तक जमीनी सुधार भी जरूरी हैं। परंतु खास तौर पर व्यापार के लिए नए समझौतों पर तथा अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पर सरकार की नीति स्पष्ट होनी चाहिए। बुनियादी बातों पर ध्यान देने की जरूरत है, किसी नई रणनीति की नहीं। ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि जब भी बैठक हो, उसमें सरकार के पास यह फीडबैक भी जाना चाहिए। व्यापार नीति सुधार लंबे समय से लंबित हैं। इस दिशा में हाल के दिनों में जो काम किया गया है वह लक्ष्य तय करने अथवा खास कंपनियों मसलन ऐपल आदि को लुभाने का रहा है। यह टिकाऊ साबित हो भी सकता है और नहीं भी। निर्यात मूल्य में इजाफा करने का इकलौता तरीका यही है कि कोई भी कंपनी चाहे वह छोटी हो या बड़ी, उसे न्यूनतम नियामकीय या प्रशासनिक हस्तक्षेप के साथ वैश्विक कच्चे माल और वैश्विक बाजारों तक पहुंच मिल सके। यह समझ देश की व्यापार नीति की बुनियाद को बदल देगी और निर्यात को एक स्थायी ऊंचाई प्रदान करेगी।