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Editorial: इलेक्ट्रिक वाहनों का उदय: नई कारों ने ऑटो सेक्टर की चुनौतियों को किया उजागर

इस परिवर्तन से जुड़ी गति, दक्षता, उपयोगिता और स्थानीय मूल्य सरकार द्वारा अभी लिए जा रहे निर्णयों पर निर्भर करेगी।

Last Updated- July 23, 2025 | 10:20 PM IST
Electric Cars

विदेशी स्वामित्व वाली इलेक्ट्रिक वाहन कंपनियां भारत में सहजता से विस्तार कर रही हैं। वियतनाम की कार निर्माता कंपनी विनफास्ट ने अपने वीएफ6 और वीएफ7 मॉडल्स के लिए बुकिंग शुरू कर दी है। खबरों के मुताबिक उसने भारत के 27 शहरों में शोरूम खोलने के लिए डीलर्स के साथ समझौते किए हैं। ईलॉन मस्क की टेस्ला भी भारत में आ चुकी है और वह भी मुंबई स्थित शोरूम से अपने मॉडल वाई के लिए ऑर्डर ले रही है। दोनों कंपनियां अलग-अलग रणनीति अपनाती नजर आ रही हैं। टेस्ला ने स्थानीय फैक्टरी में निवेश का निर्णय नहीं लिया है इसकी वजह से उसे आयातित मॉडल वाई पर शुल्क चुकाना पड़ रहा है और भारत में कार की कीमत अमेरिका की तुलना में करीब 77 फीसदी अधिक है। वहीं विनफास्ट अपनी कार की बुकिंग केवल 21,000 रुपये में कर रही है। उसने अभी कार की कीमत का खुलासा नहीं किया है। परंतु उसने दावा किया है कि वह अगले पांच साल में तमिलनाडु के तूतुक्कुडि संयंत्र में करीब दो अरब डॉलर की राशि व्यय करेगी। उसने इस बात पर भी जोर दिया है कि वह अपने संयंत्र का इस्तेमाल न केवल घरेलू मांग पूरी करने में करेगी बल्कि आसपास के निर्यात बाजारों का भी ध्यान रख सकेगी। ऐसे में उसे शुल्क में छूट की सरकारी योजना का लाभ भी मिलेगा।

इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में हो रही वृद्धि भारतीय वाहन उद्योग और सरकार दोनों के लिए चुनौतियां भी ला रही है। इंपीरियल कॉलेज लंदन और ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के सस्टेनेबल फाइनैंस ग्रुप के अर्थशास्त्री एक अध्ययन में कहते हैं कि भारत के मौजूदा वाहन निर्माताओं पर इसका अलग-अलग असर होगा। टाटा मोटर्स जैसी कुछ कंपनियों को इलेक्ट्रिक वाहन बनाने से फायदा होगा तो वहीं अन्य, मसलन मारुति आदि को नुकसान हो सकता है। परंतु व्यापक समस्या इस तथ्य में निहित है कि इलेक्ट्रिक वाहन बुनियादी तौर पर इंटर्नल कंबस्चन इंजन (आईसीई) आधारित यानी पेट्रोल-डीजल कारों से अलग होते हैं।

आईसीई कारों की उत्पादन प्रक्रिया कहीं अधिक विस्तृत है जहां मूल्य और लाभ दोनों आपूर्ति श्रृंखला के अलग-अलग स्तरों पर अर्जित किए जाते हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मूल्य संवर्धन अधिक केंद्रित है। उदाहरण के लिए बैटरियों के उत्पादन में। इसका भारत के वाहन कलपुर्जा क्षेत्र पर काफी प्रभाव पड़ सकता है। सरकार के लिए एक साथ कई और कभी-कभी विरोधाभासी आवेग हैं। पहला भाव निस्संदेह संरक्षणवाद का है जिससे निजात पानी चाहिए। दूसरा, एक स्वाभाविक आवश्यकता देश में कम कार्बन उत्सर्जन वाले वाहनों की जरूरत का है ताकि स्थानीय प्रदूषण और राष्ट्रीय स्तर पर उत्सर्जन में कमी की जा सके। इसी वजह से सरकार न केवल ईवी खरीदने वालों को प्रोत्साहन दे रही है बल्कि उसने विदेशी ईवी आयात पर भारी शुल्क लगाया है। तार्किक रूप से तो उसे भारत-आधारित इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन में निवेश का स्वागत करना चाहिए। लेकिन उसने उभरती हुई इलेक्ट्रिक वाहन महाशक्ति, चीन से निवेश को न्यूनतम रखने का भी विकल्प चुना है। शीर्ष ईवी निर्माता कंपनी बीवाईडी ने भारत में विनिर्माण में 1 अरब डॉलर का निवेश करने का निश्चय किया था लेकिन जानकारी के मुताबिक सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी।

ईवी नीति को लेकर अधिक एकीकृत रुख की आवश्यकता होगी क्योंकि भारत के भीतर बाजार बदल रहा है। अन्य चीजों के अलावा चार्जिंग अधोसंरचना उपलब्धता और स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों को बड़े पैमाने पर अपनाने से इलेक्ट्रिक ग्रिड पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी सवाल पूछे जाएंगे।

क्या सभी कंपनियों के लिए चार्जिंग आवश्यकताओं को मानकीकृत किया जाना चाहिए, यह भी एक पेचीदा सवाल है जिस पर दुनिया भर के नियामक जूझ रहे हैं। यात्री वाहनों का एक बड़ा उपभोक्ता और संभावित रूप से एक प्रमुख उत्पादक होने के नाते,  भारत अपरिहार्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाएगा। हालांकि, इस परिवर्तन से जुड़ी गति, दक्षता, उपयोगिता और स्थानीय मूल्य, सरकार द्वारा अभी लिए गए निर्णयों पर निर्भर करेंगे।

First Published - July 23, 2025 | 10:15 PM IST

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