facebookmetapixel
चेन्नई में अगली पीढ़ी का इंजन बनाएगी फोर्ड, 2029 से शुरू होगा उत्पादनBFSI Insight Summit 2025: जिम्मेदार टेक्नोलॉजी, मजबूत बाजार और निवेश में संतुलन पर जोरगुणवत्ता से भरी वृद्धि के दौर में आ रहा ब्रोकिंग: शीर्ष अधिकारीनिचले स्तर पर भारतीय बाजार, बनाए रखें निवेश: मार्केट एक्सपर्ट्सइक्विटी सबसे दीर्घावधि ऐसेट क्लास, इसे दीर्घकालिक दृष्टिकोण की जरूरत : देसाईबाजार अब संतुलित दौर में, निवेशकों को जल्दबाजी से बचना चाहिए; BFSI समिट में बोले शीर्ष फंड मैनेजरडिजिटल लेनदेन से अगले दौर की वृद्धि, उद्योग के दिग्गजनिवेशकों की जागरूकता जरूरी: अनंत नारायणजिम्मेदारी संग तकनीक के इस्तेमाल पर बाजार नियामक का जोर: सेबी चीफअचानक बंद नहीं हो सकते डेरिवेटिव: सेबी चेयरमैन पांडेय

Editorial: ‘ग्राहक प्रथम’ पर हो बैंकों का जोर

रिजर्व बैंक की एकीकृत लोकपाल योजना के तहत शिकायतों की संख्या 2022-23 और 2023-24 में 50 फीसदी सालाना बढ़ी।

Last Updated- March 18, 2025 | 10:04 PM IST
Banks
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा है कि बैंकों तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) जैसी विनियमित संस्थाओं को ग्राहक सेवा में सुधार करना होगा। यह बात उन्होंने रिजर्व बैंक लोकपाल के सालाना सम्मेलन में सोमवार को कही, जो ठीक ही है। रिजर्व बैंक की एकीकृत लोकपाल योजना के तहत शिकायतों की संख्या 2022-23 और 2023-24 में 50 फीसदी सालाना बढ़ी। लोकपाल द्वारा निपटाई गई शिकायतों में 25 फीसदी का ही इजाफा हुआ यानी अंतर काफी है।

मल्होत्रा ने ध्यान दिलाया कि 2023-24 में 95 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के ग्राहकों ने 1 करोड़ से ज्यादा शिकायतें कीं। उन्होंने सुझाव दिया कि बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों को हर हफ्ते कुछ समय निकालकर इसका निवारण करना चाहिए। उन्होंने शिकायतें कम करने के लिए व्यवस्था सुधारने की भी सलाह दी। मगर शिकायत निवारण की बेहतर प्रणाली भी जरूरी है।

बुनियादी बैंकिंग सेवाएं आज जरूरत बन गई हैं। चूंकि देश में डिजिटल भुगतान का चलन बहुत बड़े पैमाने पर हो गया है, इसलिए बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में सेवाओं की गुणवत्ता बहुत जरूरी हो गई है। गवर्नर ने सही कहा कि कड़े मुकाबले के इस दौर में ग्राहकों को सही सेवा नहीं दी तो वजूद बचाना भी मुश्किल हो जाएगा। वास्तव में पिछले कुछ वर्षों में बैंकों के लिए जमा जुटाना कठिन हो गया है और बैंकर मान रहे हैं कि उन्हें ग्राहकों को बेहतर उत्पाद और सेवाएं उपलब्ध कराने होंगे।

बेहतर सेवा देना बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के ही हित में है मगर वांछित स्तर पर ऐसा होता नहीं दिख रहा। ध्यान दें कि वस्तुस्थिति आंकड़ों से भी ज्यादा खराब हो सकती है। यह मानना गलत नहीं होगा कि कमजोर आय वर्ग के कई बैंक ग्राहक शिकायतें कर भी नहीं रहे होंगे क्योंकि उन्हें इसकी प्रक्रिया ही नहीं पता है। रिजर्व बैंक लोकपाल को 2023-24 में मिली 70 फीसदी शिकायतें शहरों और महानगरीय इलाकों से आईं।

बैंक और वित्तीय संस्थाएं उपभोक्ताओं की शिकायतों के निपटारे को प्राथमिकता दें मगर यह भी जरूरी है कि प्रक्रिया को सहज बनाकर ग्राहकों के लिए बैंकिंग आसान कर दी जाए। इसके लिए बैंकों और नियामक दोनों को साथ मिलकर काम करना होगा। ग्राहकों की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त बैंककर्मी नहीं होना भी समस्या का कारण हो सकता है।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2013 से 2024 के बीच सरकारी बैंकों के क्लर्कों की संख्या में 1.50 लाख से भी ज्यादा कमी आई है। इस दौरान सरकारी बैंकों के कुल कर्मचारी भी घट गए। हालांकि 2023-24 में रिजर्व बैंक लोकपाल के पास पहुंची शिकायतों में सरकारी बैंकों का हिस्सा कम हुआ फिर भी सबसे ज्यादा शिकायतें उन्हीं की थीं। सरकारी बैंक व्यावसायिक संस्था हैं और उन्हें कामकाज अधिक से अधिक कारगर बनाने की इजाजत होनी चाहिए। मगर यह तय करना भी जरूरी है कि ग्राहकों को तकलीफ नहीं हो।

निजी क्षेत्र के बैंक पिछले कुछ वर्षों से अपने कर्मियों की संख्या खूब बढ़ा रहे हैं और बैंकिंग परिसंपत्तियों में अपनी हिस्सेदारी भी बढ़ा रहे हैं, लेकिन उन्हें ग्राहकों की चिंता दूर करने के लिए और प्रयास करने होंगे। यहां एक और पहलू पर बात करनी होगी। केंद्र सरकार ने इसी हफ्ते संसद को बताया कि सरकारी बैंकों में निदेशक स्तर के 40 फीसदी पद रिक्त हैं। सरकार को अविलंब जरूरी नियुक्तियां कर देनी चाहिए। इतनी बड़ी तादाद में रिक्तियों को जायज नहीं ठहराया जा सकता और इससे ग्राहक सेवा समेत बैंक के समूचे प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। किंतु अकेले सरकारी बैंकों का दोष नहीं है। सभी देशवासियों को संतोषजनक बैंकिंग सेवाएं देने के लिए पूरी व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा।

First Published - March 18, 2025 | 10:02 PM IST

संबंधित पोस्ट