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बैंकिंग क्षेत्र को बजट का करना चाहिए स्वागत

Last Updated- February 03, 2023 | 10:20 AM IST
Finance Minister Nirmala Sitharaman

प्रत्येक वर्ष फरवरी में राजकोषीय-मौद्रिक मोर्चे पर दो महत्त्वपूर्ण आयोजन होते हैं। यह वर्ष भी कोई अपवाद नहीं है। बुधवार को संसद में वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश होने के बाद अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति नीतिगत दरों की समीक्षा करेगी। यह चालू वित्त वर्ष में समिति की आखिरी बैठक होगी।
वित्त वर्ष 2023 में नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (महंगाई समायोजन के बिना जीडीपी) की वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। यह मंगलवार को संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा में व्यक्त अनुमानों से कम होगी।

बजट में वित्त वर्ष 2023 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.4 प्रतिशत तक सीमित रखने के लक्ष्य में कोई बदलाव नहीं किया गया है। अगले वित्त वर्ष में इसे कम कर 5.9 प्रतिशत तक लाने का प्रस्ताव दिया गया है। आने वाले वर्षों में राजकोषीय घाटा और बड़े अंतर (सालाना औसतन 70 आधार अंक) से कम किए जाने का लक्ष्य है।

वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2026 तक राजकोषीय घाटा 4.5 प्रतिशत से कम करने का संकल्प दोहराया है। सरकार बाजार से उधारी लेने के अलावा लघु बचत योजनाओं और विनिवेश से प्राप्त रकम (61,000 करोड़ रुपये) के साथ यह लक्ष्य हासिल करेगी।

आखिर, सरकार कितनी रकम उधार लेगी? बाजार से सकल उधारी 15.4 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है और सभी समायोजन के बाद शुद्ध उधारी 11.8 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर रहेगी। सरकार का यह अब तक का सर्वाधिक बड़ा उधारी कार्यक्रम होगा मगर यह बाजार के अनुमानों के अनुरूप ही है। वित्त वर्ष 2020 में सालाना सकल उधारी 6.5 लाख करोड़ रुपये थी, जो वित्त वर्ष में बढ़कर 13.7 लाख करोड़ रुपये हो गई थी।

अगले वर्ष उधारी कम होकर 11.28 लाख करोड़ रुपये हो गई मगर वित्त वर्ष 2023 में यह फिर बढ़ कर 14.21 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गई। सरकार अब तक 12.71 लाख करोड़ रुपये उधार ले चुकी है। राज्यों ने भी बाजार से 5.09 लाख करोड़ रुपये उधार लिए हैं। अगर इन दोनों आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो बाजार से कुल उधारी बढ़कर 17.80 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी। वित्त वर्ष में कितनी रकम उधार ली जाएगी यह जानने के लिए इंतजार करना होगा।

वास्तविक उधारी रकम कितनी रहती है यह दो कारकों- विनिवेश से प्राप्त और लघु बचत योजनाओं में जमा होने वाली रकम- पर निर्भर करेगी। बैंकों में जमा रकम बढ़ने के कारण चालू वित्त वर्ष में लघु बचत जमा योजनाओं में रकम अपेक्षाकृत कम आई है। सरकार की अनुमानित उधारी को देखते हुए बॉन्ड बाजार ने राहत की सांस ली है। 10 वर्ष की अवधि वाले बॉन्ड पर प्रतिफल कम होकर 7.28 प्रतिशत रह गया है, जो मंगलवार को 7.40 प्रतिशत तक पहुंच गया था।

वित्तीय तंत्र से सस्ती एवं अधिशेष नकदी निकलने के बाद अब हालात थोड़े बदल गए हैं। पिछले एक दशक में ऋण आवंटन सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचने और जमा रकम पाने के लिए बैंकों के बीच मची होड़ के बाद भी हालात काफी बदले हैं। इन तमाम बातों के बावजूद सरकार के उधारी कार्यक्रम से बाजार पर शायद ही कोई खास असर होगा। खासकर, ऐसे समय में जब दुनिया भर में केंद्रीय बैंक दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला अब रोकने की स्थिति में पहुंच गए हैं। हालांकि कुछ खास बीमा पॉलिसियों पर नए कर प्रावधान से बीमा कंपनियों के बीच सरकारी बॉन्ड को लेकर उत्साह ठंडा पड़ सकता है। चालू वित्त वर्ष में बीमा कंपनियां और म्युचुअल फंड कंपनियां दोनों ही सरकारी बॉन्ड की खरीदारी में आगे रही हैं।

बजट में कुछ अन्य ऐसे प्रावधान हैं जिनसे बैकिंग क्षेत्र पर असर हो सकता है। कृषि क्षेत्र के लिए ऋण आवंटन 11 प्रतिशत बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये किया जा रहा है। पशुपालन, दुग्ध उद्योग और मत्स्य पालन पर विशेष ध्यान दिया गया है। सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों के लिए ऋण गारंटी योजना में बदलाव किए जा रहे हैं। इन उद्यमों के लिए आवंटित कोष में 9,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त राशि जमा की जाएगी। इससे गिरवी मुक्त ऋण का आकार बढ़ कर 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा और ऋण पर ब्याज भी 1 प्रतिशत अंक तक कम हो जाएगा।

बजट में नो योर कस्टमर (केवाईसी) प्रक्रिया सरल बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। एक राष्ट्रीय वित्तीय सूचना पंजी (रजिस्ट्री) की स्थापना करने का प्रस्ताव है, जो वित्तीय एवं संबद्ध सूचनाओं के केंद्रीय रिपॉजिटरी के रूप में काम करेगी। जून 2018 में मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान आरबीआई ने एक सार्वजनिक साख पंजी (पब्लिक क्रेडिट रजिस्ट्री) की स्थापना करने की घोषणा की थी। मेरा अनुमान है कि बजट में प्रस्तावित रजिस्ट्री का ढांचा वैसा ही रहेगा, बस नाम बदल दिया जाएगा। यह एक केंद्रीकृत सूचना भंडार होगा जिसके तहत विभिन्न सूचना भंडारों से वित्तीय एवं गैर-वित्तीय जानकारियां एकत्र की जाएंगी। इस पहल का मकसद उन सभी जरूरी बातों का लेखा-जोखा तैयार करना होगा जिनमें नियामक, ऋणदाता संस्थान, क्रेडिट ब्यूरो, रेटिंग एजेंसियों और यहां तक कि उधार लेने वालों की भी रुचि होगी।

बजट में नियमन तैयार करने में सार्वजनिक परामर्श लिए जाने की भी बात की गई है। वित्तीय क्षेत्र के नियामकों से वर्तमान नियमों की समीक्षा करने का आग्रह किया जा रहा है। इसका मकसद इन नियमों को सरल बनाना और अनुपालन आसान बनाने के साथ ही इस पर आने वाले खर्च को कम करना है। ऐसा लगता है कि आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) की तर्ज पर यह कदम उठाया जा रहा है। ओईसीडी नियामकीय नीति एवं सरकारी तंत्र को अधिक समावेशी बनाने और नियमन तैयार करने, इनकी समीक्षा एवं इन्हें लागू करने में जवाबदेही सुनिश्चित करने लिए सार्वजनिक स्तर पर परामर्श करने की हिमायत करता है।

बैंकिंग क्षेत्र को किसी तरह की शिकायत नहीं होनी चाहिए। पूंजीगत आवंटन में 33 प्रतिशत बढ़ोतरी से ऋण आवंटन बढ़ना चाहिए। दूसरी तरफ, व्यक्तिगत आय कर में कटौती बचत और खुदरा ऋण आवंटन में इजाफा करने में मदद कर सकती है। बजट के बाद अब 8 फरवरी को मौद्रिक नीति समिति की बैठक का इंतजार है।

 

First Published - February 3, 2023 | 10:20 AM IST

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