राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (UGC-NET) को लेकर उत्पन्न हुए विवाद उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए राष्ट्रव्यापी परीक्षाएं आयोजित कर पाने की राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) की क्षमताओं पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं।
2017 में एक स्वायत्त संस्था के रूप में एनटीए की स्थापना इस इरादे के साथ की गई थी कि यह वैश्विक मानकों को ध्यान में रखते हुए एक बेहतर वैज्ञानिक परीक्षा प्रणाली विकसित कर सकेगी और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा ऐसी अन्य परीक्षाएं कराते आ रहे अन्य संस्थानों का स्थान ले सकेगी।
यह कॉमन मैनेजमेंट एडमिशन टेस्ट और इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा जैसी परीक्षाओं के साथ दुनिया में प्रतिस्पर्धी परीक्षा करने वाली सबसे बड़ी संस्थाओं में से एक है। यह विडंबना ही है कि एनटीए भी उन्हीं समस्याओं से ग्रस्त नजर आ रही है जिनका मुकाबला करने के लिए इसकी स्थापना की गई थी।
वर्ष 2018 में इसकी शुरुआत के साथ ही समस्याएं भी नजर आनी शुरू हो गई थी। उदाहरण के लिए किसी अभ्यर्थी के स्थान पर दूसरे व्यक्ति का परीक्षा में बैठना और शीर्ष स्थान हासिल करना, गलत अंक मिलना, गलत माध्यम में प्रश्न पत्र का वितरित होना वगैरह।
इनमें से कई समस्याएं चिकित्सा स्नातक, दंत चिकित्सा, आयुष और अन्य पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए होने वाली नीट की ताजा परीक्षा में भी सामने आईं और संबंधित विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा। इन शिकायतों में 4 जून को घोषित परीक्षा परिणाम में अनियमितता और गड़बड़ी शामिल है। याद रहे कि उसी दिन लोक सभा चुनाव के नतीजे भी आए थे।
इनमें अहम प्रश्नचिह्न था कई विद्यार्थियों का अस्वाभाविक रूप से पूर्णांक हासिल करना। इनमें कई हरियाणा के एक ही सेंटर से परीक्षा देने वाले थे। इसके अलावा यह भी सामने आया कि प्रश्न पत्र की दिक्कतों की वजह से कुछ बच्चों को ‘ ग्रेस मार्क्स’ यानी कृपांक दिए गए। इससे पारदर्शिता को लेकर सवाल उठे।
बिहार और गोधरा में पर्चा लीक होने की खबरें भी आईं। उसके बाद केंद्र सरकार ने कृपांक रद्द कर दिए और इस माह के अंत में उन बच्चों की पुन: परीक्षा कराने को कहा है। शिक्षण में प्रवेश स्तर के रोजगार और पीएचडी में दाखिले के लिए यूजीसी-नेट की ताजा परीक्षा को शिक्षा मंत्रालय ने उस समय रद्द कर दिया जब गृह मंत्रालय की ओर से खबर आई कि इस परीक्षा में भी गड़बड़ी हुई है।
दिलचस्प है कि पेपर लीक होने की दोनों घटनाएं उस समय हुई हैं जब बमुश्किल कुछ माह पहले संसद ने इस देशव्यापी समस्या से निपटने के लिए कानून पारित किया।
एनटीए की कमियां इस समस्या का एक पहलू हैं। परंतु मौजूदा विवाद बड़े सवालों की ओर भी संकेत करता है जो शिक्षा व्यवस्था के ढांचे से संबद्ध है। उनमें से ताजा सवाल यह है कि क्या देशव्यापी स्तर पर फैली परीक्षाओं का केंद्रीकरण व्यावहारिक विकल्प है?
उदाहरण के लिए नीट की परीक्षा में 24 लाख बच्चे बैठे और यूजीसी-नेट में नौ लाख विद्यार्थी शामिल हुए। इन सबने 300 शहरों में परीक्षाएं दीं। व्यापक समस्या देश की स्कूली व्यवस्था और उच्च शिक्षा के संस्थानों की अपर्याप्त संख्या में निहित है। उदाहरण के लिए नीट की परीक्षा में बैठने वाले बच्चे 1,09,000 एमबीबीएस सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे।
ऐसे में मध्य वर्ग और निम्न वर्ग के माता-पिता अपने जीवन भर की पूंजी और बचत बच्चों को महंगी कोचिंग कक्षाओं में डालने में लगा देते हैं ताकि वे इन परीक्षाओं में पास हो सकें। इन परीक्षाओं में नाकाम होने वाले बच्चों की आत्महत्या का सीधा संबंध इस दबाव से है जो उन पर हावी रहता है। कुल मिलाकर भारतीय छात्र-छात्राओं के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है। कम से कम एनटीए को अपनी कमियों को तत्काल दूर करने की जरूरत है।