संघ लोक सेवा आयोग ने संयुक्त सचिव और निदेशक/उप सचिव स्तर के 45 पदों के लिए तीन वर्ष की अवधि के अनुबंध के वास्ते आवेदन आमंत्रित किए हैं। इस अवधि को बढ़ाकर पांच वर्ष तक किया जा सकता है। यह दिखाता है कि केंद्र सरकार अफसरशाही में लैटरल एंट्री (बाहरी प्रवेश) को लेकर निरंतर प्रतिबद्ध है।
विभिन्न विभागों और मंत्रालयों मसलन इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, वन एवं जलवायु परिवर्तन तथा वित्तीय सेवा विभाग आदि में आमंत्रित ये रिक्तियां विशेषज्ञों के लिए हैं। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार वित्तीय सेवा विभाग में एक संयुक्त सचिव खोज रही है ताकि डिजिटल इकॉनमी, फिनटेक और साइबर सुरक्षा पर ध्यान दिया जा सके।
ऐसी कई वजह हैं जिनके चलते सरकार को चुनिंदा पदों पर विशेषज्ञों को नियुक्त करना चाहिए और इस विचार को लेकर कई बार चर्चा हो चुकी है। उदाहरण के लिए छठे वेतन आयोग ने कहा था कि व्यवस्था में सुधार के लिए वरिष्ठ पदों पर लैटरल एंट्री के अलावा अधिक परिणामोन्मुखी रुख अपनाया जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त नीति आयोग के तीन वर्षीय एजेंडे और शासन को लेकर सचिवों के क्षेत्रीय समूह ने 2017 में अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की थी कि नई प्रतिभाओं को लाने और जनशक्ति की उपलब्धता बढ़ाने के लिए मध्यम और वरिष्ठ स्तर पर लोगों शामिल किया जाए।
सरकार ने इस माह के आरंभ में संसद में जो जवाब दिया था उसके मुताबिक बीते पांच सालों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उपसचिव के स्तर पर ऐसी 63 नियुक्तियां की गई हैं। फिलहाल ऐसे 57 अधिकारी विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में पदस्थ हैं।
लैटरल एंट्री की शुरुआत की वजह सबको पता है। अर्थव्यवस्था का आकार और जटिलता बढ़ने के साथ प्रभावी नीतिगत हस्तक्षेप करने के लिए अक्सर विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी की आवश्यकता होगी। सरकार के शीर्ष पदों पर अक्सर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पदस्थ रहते हैं। हालांकि कुछ अधिकारी समय के साथ विषय विशेष का ज्ञान हासिल कर लेते हैं।
इस सेवा की आम मांग सामान्य प्रकृति की जानकारी रखने की है जो आवश्यक नहीं कि नीति निर्माण के बदलते परिदृश्य में हमेशा कारगर ही साबित हो। चाहे जो भी हो, आईएएस अधिकारियों की कुल तादाद स्वीकृत स्तर से काफी कम है। नीति निर्माण के स्तर पर नियुक्तियों में अन्य सेवाओं के अधिकारियों को शामिल करके टैलेंट पूल बढ़ाने की जरूरत है। यह काम कुछ हद तक किया भी जा रहा है। निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए ऐसे पदों को खोलने से उपयुक्त उम्मीदवार मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।
इसके अलावा चूंकि निजी क्षेत्र के लोगों को सीमित समय के लिए प्रवेश मिलेगा इसलिए सरकार जरूरत के मुताबिक निरंतर नई प्रतिभाओं को शामिल कर सकती है। उसे जरूरत पड़ने पर कार्यकाल बढ़ाने का विकल्प भी खुला रखना चाहिए। राज्य सरकारों को भी निजी क्षेत्र की प्रतिभाओं को इसी तरह नियुक्त करना चाहिए।
बहरहाल सरकार की इस योजना के कामयाब होने के लिए यह आवश्यक है कि मौजूदा अफसरशाही उनके साथ सहयोग के साथ काम करे। इसके लिए तथा लैटरल एंट्री पाने वालों को व्यवस्था में स्वीकार्य बनाने के लिए सरकार को कम से कम दो काम करने होंगे: पहला, नियमित रूप से निजी क्षेत्र के लोगों को शामिल करके इस व्यवस्था का संस्थानीकरण करना होगा। दूसरा, उसे इस विषय में उपयुक्त संवाद करना होगा और दिखाना होगा कि कैसे इस व्यवस्था से लाभ हो रहा है।
विपक्ष ने आरक्षण का हवाला देते हुए इस कदम की आलोचना की है जिससे बचा जाना चाहिए था। ये सीमित अवधि के और विशेषज्ञता वाले पद हैं और आरक्षण की बाध्यता इसके उद्देश्य को प्रभावित कर सकती थी। बहरहाल अगर सरकार अफसरशाही के विभिन्न स्तरों पर नियम के मुताबिक आरक्षण का उचित प्रतिनिधित्व बरकरार रखे तो बेहतर होगा।