दीवाली के अवसर पर पड़ने वाले सप्ताहांत पर लंबी दूरी की ट्रेनों और विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर बेतहाशा भीड़ की तस्वीरों और वीडियो ने कई लोगों को स्तब्ध कर दिया। ट्रेनों के बाहर भारी भीड़ मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क के भीड़-भाड़ वाले समय की याद दिलाती है। बस ये ट्रेनें उपनगरीय न होकर अलग-अलग शहरों और राज्यों के बीच चलने वाली थीं।
सोशल मीडिया पर कई यात्रियों ने यह शिकायत दर्ज कराई कि उनके पास वैध टिकट और सीट आरक्षण उपलब्ध था लेकिन भारी भीड़ के कारण वे अपनी सीट तक नहीं पहुंच सके और कई अवसरों पर तो वे ट्रेनों में भी नहीं घुस सके।
भारतीय रेल ने दावा किया है कि ऐसा दीवाली और छठ पूजा के अवसर पर असाधारण भीड़ होने की वजह से हुआ है। देश के पूर्वी और उत्तरी इलाकों में रहने वाले कई प्रवासी इस अवसर पर घरों को लौटते हैं। इसके बावजूद यकीनी तौर पर इस भीड़ का अनुमान लगाया जा सकता था और इससे निपटने की व्यवस्था भी की जा सकती थी।
रेलवे ने दावा किया कि उसने त्योहार के अवसर पर 1,700 अतिरिक्त ट्रेनों का संचालन किया जिनमें 26 लाख अतिरिक्त बर्थ थीं। यदि ऐसा है तो बातें सही हैं: या तो ये आंकड़े वास्तविक मांग के समक्ष अत्यंत कमतर थे या फिर विशेष तौर पर चलाई गई ट्रेनों तथा बर्थ आदि का उन मार्गों पर किफायती आवंटन नहीं किया गया जहां यात्रियों की मांग अधिक थी।
सरकार सेवा और साफ-सफाई के स्तर पर बेहतर ट्रेनों की बात करती रही है। देश में रेल सेवाओं में ऐसा सुधार जरूरी है और लंबे समय से लंबित भी है। परंतु इस नतीजे से भी विमुख नहीं हुआ जा सकता है कि रेलवे ने यात्रियों की बढ़ती तादाद को लेकर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया है। सामान्य एवं अनारक्षित श्रेणी की यात्राओं के लिए तय प्रक्रियाओं की भी समीक्षा करने की आवश्यकता है।
अनारक्षित श्रेणी के यात्रियों की भारी भीड़ की वजह से आरक्षित यात्रियों का सफर नहीं कर पाने के लिए रेलवे की वह मौजूदा नीति जिम्मेदार है जिसके तहत सामान्य श्रेणी के टिकट ट्रेन के स्टेशन से निकलने के पहले तक जारी किए जाते हैं। इसके परिणाम सामान्य अवसरों पर भी 90 यात्रियों की क्षमता वाले अनारक्षित डिब्बे में इसके दोगुने या उससे भी अधिक यात्री सवार रहते हैं।
जानकारी के मुताबिक रेलवे लंबी दूरी की ट्रेनों में वातानुकूलित श्रेणी के डिब्बे बढ़ा रहा है तथा सामान्य श्रेणी के डिब्बों की तादाद कम की जा रही है। ऐसा शायद इसलिए कि वातानुकूलित डिब्बे अधिक लाभदायक हैं। यदि ऐसा है तो सामान्य अनारक्षित श्रेणी का किराया बढ़ाए जाने तथा उनके डिब्बे भी बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। परंतु जैसा कि अक्सर होता है कमजोर वर्ग के यात्री किरायों में मूल्य नियंत्रण की समस्या आड़े आ जाती है। अनारक्षित श्रेणी यात्रियों की चिंताओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
आंकड़े बताते हैं कि यात्रा करने वालों में उनकी हिस्सेदारी बहुत अधिक है। लोकप्रिय मार्गों पर आरक्षित सीटें अक्सर 90 दिन पहले खुलने के साथ ही बुक हो जाती हैं। ऐसे में इन मार्गों पर अधिक ट्रेनों की जरूरत है। रेलवे को पर्याप्त संख्या में सामान्य श्रेणी के शयनयान भी उपलब्ध कराने चाहिए क्योंकि सामान्य प्रवासी श्रमिक उन्हीं में यात्रा करना पसंद करते हैं।
यदि ऐसा नहीं किया गया तो या तो उन्हें मूल्य श्रृंखला में ऊपर लाया जाए तथा अधिक शुल्क लेकर अधिक सुविधाएं प्रदान की जाएं या फिर ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि डिब्बों में अधिक भीड़ न हो। सूरत स्टेशन पर मची भगदड़ में एक व्यक्ति की मौत हो गई। जब तक समझदारी भरे उपाय नहीं अपनाए जाएंगे, ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।