facebookmetapixel
निवेशकों को मिलेगा 156% रिटर्न! सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड 2019-20 सीरीज-X पर RBI ने तय की नई रिडेम्पशन कीमतSBI ने ऑटो स्वीप की सीमा बढ़ाकर ₹50,000 कर दी है: ग्राहकों के लिए इसका क्या मतलब है?India’s Retail Inflation: अगस्त में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 2.07% पर, खाने-पीने की कीमतों में तेजी से बढ़ा दबावBank vs Fintech: कहां मिलेगा सस्ता और आसान क्विक लोन? समझें पूरा नफा-नुकसानचीनी कर्मचारियों की वापसी के बावजूद भारत में Foxconn के कामकाज पर नहीं होगा बड़ा असरGST कट के बाद दौड़ेगा ये लॉजि​स्टिक स्टॉक! मोतीलाल ओसवाल ने 29% अपसाइड के लिए दी BUY की सलाह₹30,000 करोड़ का बड़ा ऑर्डर! Realty Stock पर निवेशक टूट पड़े, 4.5% उछला शेयरG-7 पर ट्रंप बना रहे दबाव, रूसी तेल खरीद को लेकर भारत-चीन पर लगाए ज्यादा टैरिफ10 मिनट डिलीवरी में क्या Amazon दे पाएगी Blinkit, Swiggy को टक्कर? जानें ब्रोकरेज की रायसी पी राधाकृष्णन ने भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के तौर पर ली शपथ

Editorial: चौथाई सदी बाद

2025 तक ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाएं जी-6 के कुल आकार की 60 फीसदी तक पहुंच सकती हैं।

Last Updated- December 29, 2023 | 10:47 PM IST
quarter of a century later

पिछले सप्ताहांत की चौथाई सदी वाली बात पर आगे बढ़ते हुए लंबी अवधि के लिए जताए गए उन पूर्वानुमानों पर नजर डालना सही रहेगा, जिनकी बात इस शताब्दी की शुरुआत में दुनिया कर रही थी। गोल्डमैन सैक्स की विख्यात (कुछ लोग इसे कुख्यात भी कहेंगे) भविष्यवाणी थी कि चार उभरती ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाएं (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) बढ़ते-बढ़ते उन छह अर्थव्यवस्थाओं – अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली (जी-6) से आगे निकल जाएंगी, जो उस समय दुनिया में सबसे बड़ी थीं। वह भविष्यवाणी एक हद तक सही साबित हुई है।

गोल्डमैन ने कहा था कि जी-6 अर्थव्यवस्थाओं के सातवें हिस्से से भी छोटी ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाएं वृहद स्तर पर बढ़ते हुए 2025 तक उनके आधे आकार की हो जाएंगी। हैरत की बात है कि ब्रिक्स ने यह उपलब्धि पूरे एक दशक पहले यानी 2015 में ही हासिल कर ली। लेकिन उसके बाद से उनकी रफ्तार धीमी पड़ी है।

2025 तक ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाएं जी-6 के कुल आकार की 60 फीसदी तक पहुंच सकती हैं। माना जा रहा था कि मुद्रा का मूल्य बढ़ने से ब्रिक्स के आकार में काफी बढ़ोतरी होगी मगर ऐसा नहीं हुआ है। फिर भी ब्रिक्स समूह ने कुल मिलाकर उस भविष्यवाणी से ज्यादा हासिल कर लिया है।

इसकी बड़ी वजह चीन का दमदार प्रदर्शन रहा मगर ब्राजील और रूस ने बुरी तरह निराश किया। रूस को इस समय तक इटली से आगे निकलकर फ्रांस की बराबरी कर लेना था। मगर वह अब भी इन दोनों से छोटा है और ब्राजील का भी यही हाल है। इनमें भारत भविष्यवाणी के सबसे करीब पहुंचा है। इसकी अर्थव्यवस्था 2000 में जी-6 अर्थव्यवस्थाओं के कुल आकार की 2.4 फीसदी थी।

Also read: शहरी विकास के लिए व्यापक दृष्टिकोण जरूरी

पूर्वानुमान के मुताबिक 2023 तक इसे तीन गुना से ज्यादा होते हुए 8.5 फीसदी तक पहुंचना था। भारतीय अर्थव्यवस्था वास्तव में जी-6 की 8.4 फीसदी हो गई है। ज्यादातर लोग अब मानने लगे हैं कि चौथाई सदी ब्रिक्स की कम और भारत-चीन की ज्यादा रही। दिलचस्प है कि भारत की वृद्धि दर 2025 तक चीन की दर से आगे निकलने और उसके बाद और भी आगे जाने की बात कही गई थी, जो बाकी भविष्यवाणियों की तुलना में ज्यादा सटीक निकली।

गोल्डमैन ने चार कारकों को ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन की बुनियाद बताया था: वृहद आर्थिक स्थिरता, पूरी दुनिया को व्यापार और निवेश के मौके देना, मजबूत संस्थाएं और अच्छी शिक्षा। इन चार में से भारत केवल आर्थिक कसौटी पर ही खरा नहीं उतरा, उसने राजनीतिक स्थिरता हासिल की, खुद को पूरी दुनिया के लिए ज्यादा सुगम (कुछ मामलों में कदम वापस भी लिए) बनाया, अपनी आर्थिक संस्थाओं को मजबूत बनाया मगर राजनीतिक संस्थाओं का कुछ क्षरण हुआ और साक्षरता की दर सुधारने के साथ उच्च शिक्षा को भी बेहतर बनाया।

यह बात अलग है कि साक्षरता और उच्च शिक्षा के मोर्चों पर अभी सुधार की काफी गुंजाइश है। न तो रूस और न ही ब्राजील ऐसे दावे कर सकता है और चीन अपनी राह पर ही आगे बढ़ा है। भारत निस्संदेह इन सभी में सबसे गरीब देश है मगर भविष्य के लिहाज से सबसे ज्यादा संभावनाएं भी इसी में हैं, जैसा गोल्डमैन ने कहा था।

इस सदी के अगले 25 वर्षों को देखें तो स्थिति मोटे तौर पर ऐसी ही रहेगी, जिसमें भारत को और प्रमुखता मिलेगी। रूस ने प्रतिबंधों का फौरी असर तो झेल लिया है मगर उसके उत्पादों के लिए कुछ प्रमुख बाजारों के दरवाजे बंद हो गए हैं और भविष्य में उसे तकनीक नहीं मिलने से भी तकलीफ होगी। ब्राजील लंबे समय से वृद्धि और सुस्ती के झूले में झूलता रहा है। चीन परिपक्व हो रहा है और धीमा पड़ गया है मगर वैश्विक अर्थव्यवस्था के मुकाबले उसकी वृद्धि की रफ्तार तेज रहनी चाहिए। इन चारों में सबसे तेज वृद्धि भारत में होने की संभावना है।

Also read: खेती बाड़ी: भविष्य के लिए सहेजना होगा भूजल

अंत में: यह स्तंभ 1997 के उत्तरार्द्ध में दबाव के बीच शुरू किया गया था। उस समय बिज़नेस स्टैंडर्ड के संपादक के तौर पर मैं मानता था कि अखबार के संपादक को अपने नाम से स्तंभ नहीं चलाना चाहिए। उसे अपना अलग नजरिया रखने के बजाय अखबार के संपादकीयों के माध्यम से अपनी बात कहनी चाहिए।

किंतु शनिवार के अखबार को सप्ताहांत का अंक बनाने के लिए नए सिरे से डिजाइनिंग में जुटे साथियों ने साफ कह दिया कि अगर मैं नहीं लिखूंगा तो संपादकीय पृष्ठ का कुछ हिस्सा खाली ही जाएगा। इस तरह 26 से भी ज्यादा वर्ष पहले साप्ताहिक मंथन शुरू हुआ, जिसे आम संपादकीय टिप्पणियों से अलग बनाया गया।

पाठकों में यह लोकप्रिय हो गया, जो सुखद आश्चर्य भी रहा है और पुरस्कार भी। लगभग 1,300 लेख लिखते-लिखते आपके इस स्तंभकार की उम्र 47 वर्ष से 74 वर्ष हो गई है। उम्र और सक्रिय पत्रकारिता से अवकाश लेने के कारण हर हफ्ते कुछ ऐसा ढूंढना और कहना बहुत दुष्कर होता जा रहा है, जो सार्थक और अलग हो। इसलिए पिछले तीन-चार महीने से अखबार के संपादकीय नेतृत्व से बातचीत करने के बाद अब विदा लेने का समय आ गया है। पाठकों ने जिस ध्यान और नियम के साथ मेरा स्तंभ पढ़ा, उसके लिए मैं उनका आभारी हूं और हमेशा रहूंगा।

First Published - December 29, 2023 | 10:47 PM IST

संबंधित पोस्ट