इस माह जारी भूजल स्रोत आकलन रिपोर्ट-2023 प्रथम दृष्टया इस महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन की स्थिति पर आश्वस्त करने वाली तस्वीर पेश करती है। हालांकि रिपोर्ट में भूजल के बेतहाशा दोहन से उभरती चिंताजनक स्थिति और कई कृषि प्रधान एवं शहरी इलाकों में इसकी गुणवत्ता जैसे पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि भूजल संचयन और दोहन योग्य पानी की मात्रा बढ़ी है, जबकि इसके निकाले जाने की मात्रा घटी है। नतीजतन, धरातलीय जल क्षेत्र में सुधार हुआ है।
यह अच्छा संकेत है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई और शहरों में पीने के लिए मुख्यत: भूजल का ही उपयोग होता है। गांवों में सिंचाई के लिए 60 प्रतिशत और पीने के लिए 80 प्रतिशत पानी जमीन से ही निकाला जाता है। इसी प्रकार शहरों में पीने की 50 प्रतिशत जरूरत भूजल से पूरी होती है।
पुनर्भरण वाला संसाधन होने के बावजूद अत्यधिक दोहन के कारण कई क्षेत्रों में पानी का संकट होता जा रहा है। भूगर्भ में जल संचयन मुख्यत: वर्षा, नहरों, नदियों, तालाबों और अन्य जल स्रोतों से होता है। यही नहीं, भूजल स्तर बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी अटल भूजल योजना समेत वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण के अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
केंद्रीय भूजल बोर्ड और राज्यों के सहयोग से तैयार आकलन रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2023 में कुल जल संचयन 449.53 अरब घन मीटर रहा। यह साल 2022 में 437.60 अरब घन मीटर से 11.48 अरब घन मीटर अथवा 2.6 प्रतिशत अधिक रहा। नतीजतन, इस साल दोहन किए जाने लायक जल की मात्रा बढ़ गई है।
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रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल जहां 398.08 अरब घन मीटर पानी दोहन योग्य था, इस साल यह बढ़कर 407.21 अरब घन मीटर पहुंच गया। इसी दौरान जमीन से निकाले जाने वाले पानी की दर 60.08 प्रतिशत से घटकर 59.26 प्रतिशत पर आ गई है। चिंताजनक बात यह है कि प्रति 100 ब्लॉक में से 11 में सीमा से अधिक जल का दोहन हो रहा है।
राजस्थान के जैसलमेर और पंजाब के संगरूर एवं मलेरकोटला जैसे कुछ स्थानों पर तो वार्षिक संचयन से तीन गुना अधिक जल दोहन हो रहा है। कुल मिलाकर विभिन्न राज्यों के 94 जिलों में पानी के दोहन की मात्रा संचयन से बहुत अधिक है। इनमें उत्तर-पश्चिम, मध्य और दक्षिणी क्षेत्र शामिल हैं, जहां अनाज की पैदावार अधिक होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन क्षेत्रों में से अधिकांश में भविष्य में भूजल की बहुत अधिक किल्लत होने की संभावना है।
जल स्रोतों पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा इस साल मार्च में पेश एक और रिपोर्ट में भूजल संकट के लिए जिम्मेदार कई कारकों को चिह्नित किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देशभर में 14 प्रतिशत भूजल आकलन इकाइयों से अत्यधिक दोहन हुआ, जबकि इनमें 4 प्रतिशत अत्यधिक गंभीर श्रेणी में आंकी गईं।
इस समिति द्वारा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान समेत 11 राज्यों में सिंचाई के लिए आवश्यक कुल पानी का 80 से 90 प्रतिशत जमीन से लिया जाता है। पंजाब में यह आंकड़ा सबसे अधिक 97 प्रतिशत है। अधिक पानी चाहने वाली धान और गन्ने जैसी फसलें इन्हीं इलाकों में अधिक उगाई जाती हैं। सिंचाई, घरेलू उपयोग, पेयजल आपूर्ति एवं सिंचाई के लिए बिजली जैसी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए भूजल पर निर्भरता अत्यधिक दोहन के सबसे बड़े कारण हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भूजल भंडारण कम करने के लिए सिर्फ लापरवाही जिम्मेदार नहीं है, मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक घटनाओं के कारण विषाक्त तत्त्व मिलने से भी यह दूषित हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई क्षेत्रों में भूजल पीने योग्य नहीं रह गया है। कई जगहों पर प्रदूषित भूजल को घरेलू उपयोग में लाने के कारण लोगों में अनेक गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं।
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संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार 23 राज्यों के 370 जिलों में फ्लोराइड के मिश्रण के कारण भूजल दूषित हो गया है, जबकि 27 राज्यों के 341 जिलों में लौह तत्त्व अधिक पाया गया है। इसके अतिरिक्त, 14 राज्यों के 90 से अधिक जिलों के भूजल में शीशे की मात्रा बहुत अधिक है और 25 राज्यों के 230 जिलों में भूजल में खतरनाक स्तर तक आर्सेनिक पाया गया है। यही नहीं, 18 राज्यों के 249 जिलों के भूजल में बहुत ज्यादा खारापन है। महत्त्वपूर्ण बात यह कि रिपोर्ट में प्रदूषित जल वाले बड़े शहरों में दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद और हैदराबाद का नाम भी शामिल किया गया है।
वास्तव में, भूजल के दीर्घकालिक इस्तेमाल और इसकी गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए नियम-कानूनों की कोई कमी नहीं है। केंद्र सरकार ने मॉडल भूजल (सतत प्रबंधन) विधेयक प्रसारित किया है, ताकि इसकी मदद से राज्यों को अपने जल संबंधी कानूनों में सुधार करने में मदद मिल सके।
यह विधेयक भूजल संचयन जोन का सीमांकन करने और विषाक्तता एवं लवणता की समस्या से निपटने के लिए अधिक ध्यान देने की जरूरत वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करता है। हालांकि लगभग 15 राज्यों ने पानी से संबंधित अपने कानूनों में सुधार नहीं किया है।
इसलिए भूजल दोहन और वर्षा जल संचयन को ध्यान में रखकर इस विशाल प्राकृतिक संसाधन की सेहत सुधारने के लिए प्रभावी एवं खूब सोचे-विचारे नियम-कानून लागू करने की जरूरत है। यही नहीं, जिन क्षेत्रों में तेजी से भूजल घट रहा है, वहां अधिक पानी चाहने वाली फसलों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। इस मामले में बिल्कुल ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिए।