पिछले कुछ समय से भारत से वस्तुओं के निर्यात में इलेक्ट्रॉनिक सामान की हिस्सेदारी आकर्षण का प्रमुख केंद्र रही है। इस वर्ष जून में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का निर्यात सालाना आधार पर 16.91 प्रतिशत बढ़ा। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में इसमें 21.64 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई। इलेक्ट्रॉनिकी विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि की असीम संभावनाएं हैं और इस खंड पर विशेष ध्यान देने एवं नीतिगत समर्थन से वैश्विक मूल्य श्रृंखला (जीवीसी) के साथ इसका जुड़ाव बढ़ सकता है।
देश में रोजगार के अवसर तेजी से उपलब्ध कराने की अदद जरूरत है और इसमें इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इस क्षेत्र में वर्ष 2018 से 2022 के बीच रोजगार में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। आर्थिक समीक्षा में भी इस बात का उल्लेख किया गया है।
परंतु, विश्व में 4.3 लाख करोड़ डॉलर के इलेक्ट्रॉनिकी बाजार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 2 प्रतिशत है। दुनिया में इस क्षेत्र पर चीन का खास दबदबा है और इन वस्तुओं के कुल निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 30 प्रतिशत रही है। वियतनाम और मलेशिया जैसे तेजी से उभरते बाजारों ने भी इस खंड में तुलनात्मक रूप से अपनी स्थिति मजबूत कर ली है और इलेक्ट्रॉनिकी जीवीसी में इनकी हिस्सेदारी 4 प्रतिशत पहुंच गई है।
इस परिप्रेक्ष्य में नीति आयोग की नई रिपोर्ट ‘इलेक्ट्रॉनिक्सः पावरिंग इंडियाज पार्टिसिपेशन इन जीवीसी’ में उल्लेख किया गया है कि देश में इलेक्ट्रॉनिकी क्षेत्र में उत्पादन 2017 से 2022 के बीच दोगुना हो गया और इसमें 13 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज दर से तेजी आई। यह वृद्धि दर अनुकूल अवसरों की ओर इशारा करती है, मगर और अधिक विस्तार एवं एकीकरण में चुनौतियां होने का भी संकेत देती है। वर्तमान समय में भारत में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन में मुख्यतः मोबाइल फोन, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर और दूरसंचार उपकरण बाजार में उतारने के लिए तैयार किए जाते हैं।
विनिर्माण में इस्तेमाल होने वाले पुर्जों के लिए आयात पर निर्भरता और डिजाइन की सीमित गुंजाइश के कारण मूल्य व्यवस्था में ऊपर उठने की देश की क्षमता प्रभावित हो जाती है। भारत में स्थानीय स्तर पर पुर्जों के विकास की क्षमता सीमित होने का प्रमुख कारण ऊंची शुल्क संरचना है। यहां औसत शुल्क दर 7.5 प्रतिशत है, जो चीन, वियतनाम, थाईलैंड और मलेशिया (जहां शुल्क 4 प्रतिशत से कम है) से अधिक है।
इसके अलावा, अतिरिक्त कर एवं अधिभार भी लगते हैं, जिनसे स्थानीय स्तर पर उत्पादन अधिक महंगा हो जाता है। ऊंचे शुल्कों के कारण विनिर्माता विदेश से पुर्जे मंगाने को अधिक तवज्जो देते हैं, जिसका सीधा असर देश में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण पर पड़ता है। कुल मिलाकर, ऊंचे शुल्क एवं सामग्री पर होने वाले खर्च, ढुलाई एवं वित्तीय लागत के कारण यह क्षेत्र 14-18 प्रतिशत संचयी लागत अक्षमता का सामना कर रहा है।
श्रम लागत कम होने के बावजूद कमजोर श्रम उत्पादकता के कारण भारत इसका लाभ लेने में सदैव जूझता रहा है। इन चुनौतियों को देखते हुए भारत में विनिर्माण, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्षेत्र पर नकारात्मक असर डालने वाले कारकों का समाधान खोजा जाना चाहिए। बड़े क्षेत्रीय या आर्थिक व्यापार गुटों से भारत का बाहर रहना एक प्रमुख बाधा रही है। इन संगठनों का हिस्सा बनने से कम शुल्कों, सरल नियमन एवं बढ़ी व्यापार क्षमताओं के कारण उत्पादन लागत कम हो सकती है।
सरकार के प्रयासों के बावजूद भारत कारोबार सुगमता में अपने प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में लगातार निचले पायदान पर है। क्षमताएं बढ़ाने के साथ ही भारत को इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के विनिर्माण में विविधता लानी होगी और इसमें लैपटॉप तथा दूरसंचार उपकरणों को शामिल करना होगा। इस समय देश में तैयार होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में स्मार्टफोन की 43 प्रतिशत हिस्सेदारी है। स्थानीय स्तर पर मूल्य व्यवस्था खड़ी की जा सकती है और उत्पाद तैयार करने में तेजी लाई जा सकती है।
प्रतिस्पर्द्धी देशों की तुलना में शुल्क भी तर्कसंगत बनाए जा सकते हैं। वित्त वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में सीमा शुल्क घटाने का प्रस्ताव एक स्वागत योग्य कदम है। बजट में सीमा शुल्क संरचना की समीक्षा से भारत में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का विनिर्माण और जोर पकड़ेगा। यदि इन सभी मुद्दों का त्वरित समाधान नहीं हुआ तो भारत उन कंपनियों को आकर्षित करने का अवसर खो देगा, जो चीन से इतर दूसरे देश में विनिर्माण संयंत्र लगाना चाह रहे हैं।
वियतनाम अपनी अनुकूल नीतियों और कम झंझटों वाले नियामकीय एवं राजनीतिक पहल से इन कंपनियों को खींच रहा है। नीति आयोग की रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि क्या कदम उठाने की आवश्यकता है। अब सरकार को यह तय करना है कि वह इलेक्ट्रॉनिकी विनिर्माण क्षेत्र में इन अवसरों का लाभ कैसे उठती है।