संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के 2030 के एजेंडे के एक हिस्से, सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में छह वर्ष से भी कम समय शेष रह गया है। ऐसे में इसके 17 लक्ष्यों और 169 संबद्ध लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत को अभी बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है।
इन वैश्विक लक्ष्यों को 2015 में अपनाया गया था और ये गरीबी उन्मूलन, लैंगिक न्याय हासिल करने, पृथ्वी को सुरक्षित रखने तथा सभी के वास्ते शांति और समृद्धि हासिल करने की दिशा में कदम उठाने के लिए एक सार्वजनिक आह्वान हैं। इस संदर्भ में हाल में जारी भारत में एसडीजी की प्रगति रिपोर्ट डेटा आधारित प्रमाण पेश करती है। यह बताती है कि एसडीजी और उससे जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने की प्रक्रिया में भारत की प्रगति मिलीजुली रही है।
एसडीजी1 के तहत भारत ने हाल के वर्षों में गरीबी उन्मूलन के मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है। रिपोर्ट के अनुसार बहुआयामी गरीबी में 9.89 फीसदी की कमी आई और यह 2015-16 से 2019-21 के बीच घटकर 14.96 फीसदी रह गई। नीति आयोग की एक हालिया रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि 2022-23 में यह और गिरकर 11.28 फीसदी रह जाएगी। भविष्य में गरीबी के स्तर में और कमी लाने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता होगी तथा लोगों की खर्च योग्य आय बढ़ानी होगी।
अन्य क्षेत्रों में जीवन स्तर सुधारने के लिए सरकार के निरंतर हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि एक ओर जहां मांओं और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है तथा कुपोषण, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आई है, वहीं 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं तथा पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में खून की कमी के मामलों में इजाफा हुआ है।
एसडीजी 4 यानी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मामलों में उच्चतर माध्यमिक शिक्षा में नामांकन, व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण में भागीदारी दर, दिव्यांग बच्चों के नामांकन, शिक्षक-छात्र अनुपात और स्कूल बुनियादी ढांचे के मामले में 2015-16 से अब तक काफी सुधार हुआ है। बहरहाल, कक्षा पांचवीं और आठवीं की पढ़ाई पूरी करने वाले बच्चों की तादाद महामारी के पहले के स्तर से नीचे आ गई है। यह बताता है कि महामारी ने अर्थव्यवस्था को किस तरह प्रभावित किया है।
इसके अलावा महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़ने के साथ ही वेतन की असमानता, दहेज के मामले और अपराधों की तादाद भी बढ़ी है। इनमें महिलाओं पर यौन अपराध शामिल हैं। ये कारक बताते हैं कि स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक संरक्षण के क्षेत्र में सरकारी व्यय बढ़ाने की आवश्यकता है। बहरहाल, रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि कुल सरकारी व्यय में अनिवार्य सेवाओं पर होने वाला व्यय महामारी के पहले के स्तरों से कम हुआ है।
टिकाऊ और कार्बन निरपेक्ष वृद्धि की तलाश में भारत ने ग्लास्गो में 2021 के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज 26 में यह लक्ष्य तय किया था कि 2070 तक उसे ‘नेट जीरो’ उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना होगा। यह रिपोर्ट नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ी हिस्सेदारी और बेहतर औद्योगिक पर्यावरण अनुपालन के साथ सकारात्मक संकेत देती है।
बहरहाल, प्रति व्यक्ति जीवाश्म ईंधन खपत में इजाफा और वन क्षेत्र में इजाफा नहीं होने ने इस प्रगति का प्रतिकार करते हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए आवंटित सरकारी व्यय के अनुपात में भी मामूली सुधार हुआ है। यह 2015-16 से 2022-23 के बीच केवल 0.3 फीसदी बढ़ा है। इससे संकेत मिलता है कि सरकार को और कदम उठाने की आवश्यकता है।
शांति, न्याय और मजबूत संस्थानों से संबंधित एसडीजी16 शांति, प्रभावी शासन और पारदर्शी न्याय व्यवस्था चाहता है। इसके विपरीत रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं और बच्चों पर अपराध हर वर्ष बढ़ रहे हैं। भारत प्रति एक लाख आबादी पर 1.93 अदालतों और 1.53 न्यायाधीशों के साथ वैश्विक मानकों से बहुत पीछे है।
आंकड़े यह भी बताते हैं कि सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारियों के जवाब देने का प्रतिशत कम हुआ है। कुल मिलाकर जहां भारत स्वस्थ गति से बढ़ रहा है, वहीं वृद्धि के लाभ आबादी के कुछ हिस्सों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। अगर आर्थिक वृद्धि कुछ जगहों पर केंद्रित होगी तो इससे लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था की संभावनाओं पर असर होगा। बेहतर होगा कि सरकार आने वाले वर्षों में तय लक्ष्य पाने के लिए उन क्षेत्रों पर जोर दे जहां हम अभी पीछे हैं।