facebookmetapixel
60/40 की निवेश रणनीति बेकार…..’रिच डैड पुअर डैड’ के लेखक रॉबर्ट कियोसाकी ने निवेशकों को फिर चेतायाTCS में 26% तक रिटर्न की उम्मीद! गिरावट में मौका या खतरा?किसानों को सौगात: PM मोदी ने लॉन्च की ₹35,440 करोड़ की दो बड़ी योजनाएं, दालों का उत्पादन बढ़ाने पर जोरECMS योजना से आएगा $500 अरब का बूम! क्या भारत बन जाएगा इलेक्ट्रॉनिक्स हब?DMart Q2 Results: पहली तिमाही में ₹685 करोड़ का जबरदस्त मुनाफा, आय भी 15.4% उछलाCorporate Actions Next Week: अगले हफ्ते शेयर बाजार में होगा धमाका, स्प्लिट- बोनस-डिविडेंड से बनेंगे बड़े मौके1100% का तगड़ा डिविडेंड! टाटा ग्रुप की कंपनी का निवेशकों को तोहफा, रिकॉर्ड डेट अगले हफ्तेBuying Gold on Diwali 2025: घर में सोने की सीमा क्या है? धनतेरस शॉपिंग से पहले यह नियम जानना जरूरी!भारत-अमेरिका रिश्तों में नई गर्मजोशी, जयशंकर ने अमेरिकी राजदूत गोर से नई दिल्ली में की मुलाकातStock Split: अगले हफ्ते शेयरधारकों के लिए बड़ी खुशखबरी, कुल सात कंपनियां करेंगी स्टॉक स्प्लिट

Editorial: 25% टैरिफ पर तार्किक ढंग से निर्णय ले भारत, संवाद और संतुलन जरूरी

मौजूदा परिदृश्य अनिश्चित नजर आ रहा है और भारत को अब दुर्भाग्यपूर्ण हकीकत से निपटने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

Last Updated- August 10, 2025 | 11:18 PM IST
Donald Trump

अमेरिका द्वारा भारतीय आयात पर 25 फीसदी के जवाबी शुल्क के बाद 25 फीसदी का ही अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने से देश मुश्किल हालात में पहुंच गया है। व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने गत सप्ताह कहा कि अतिरिक्त शुल्क राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं को देखते हुए लगाया गया है क्योंकि भारत लगातार रूस से कच्चे तेल का आयात कर रहा है। जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भी रेखांकित किया, व्यापक विचार यह है कि भारत द्वारा रूसी तेल का आयात यूक्रेन युद्ध में रूस के लिए मददगार हो रहा है।

अगर ऐसा है तो अमेरिका को पहले चीन को निशाना बनाना चाहिए था। वह न केवल भारत की तुलना में अधिक तेल और गैस रूस से खरीद रहा है बल्कि कई अन्य तरीकों से भी उसकी मदद कर रहा है। परंतु अमेरिका ने ऐसा नहीं किया। शायद वह डर रहा है कि चीन की ओर से इसका तगड़ा प्रतिरोध होगा। ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन इस सप्ताह मिलकर यूक्रेन युद्ध पर चर्चा करने वाले हैं। भारत ने इसका स्वागत किया है हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि वहां किसी तरह का हल निकलने पर जुर्माने की धमकी खत्म होगी या नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गत सप्ताह पुतिन से विस्तार से बातचीत की।

मौजूदा परिदृश्य अनिश्चित नजर आ रहा है और भारत को अब दुर्भाग्यपूर्ण हकीकत से निपटने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। हम अपने सबसे बड़े निर्यात बाजार को यूं हाथ से जाने नहीं दे सकते। वर्ष 2024-25 में भारत ने 86.5 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुएं अमेरिका को निर्यात कीं और हमारा व्यापार अधिशेष 41 अरब डॉलर रहा। इलेक्ट्रॉनिक्स और औषधि उत्पादों को फिलहाल शुल्क से छूट प्रदान की गई है लेकिन कुछ कहा नहीं जा सकता है कि कब इन पर भी ऐसी ही शुल्क दर थोप दी जाएंगी।

भारत अमेरिका को कई कम मार्जिन वाली चीजों का निर्यात करता है और ऐसे में ये क्षेत्र पूरी तरह कारोबार से बाहर हो जाएंगे। जैसा कि हमने इस समाचार पत्र में गत सप्ताह प्रकाशित भी किया था, उदाहरण के लिए वस्त्र उद्योग के कई वैश्विक ब्रांडों ने अपने भारतीय आपूर्तिकर्ताओं से कहा है कि वे तब तक अपने ऑर्डर रोक कर रखें जब तक कि शुल्क को लेकर स्पष्टता नहीं आ जाती है। भारत ने 2024 में अमेरिका को 10.8 अरब डॉलर मूल्य के कपड़े एवं वस्त्र निर्यात किए। अन्य क्षेत्रों पर भी प्रभाव पड़ेगा और बड़े पैमाने पर रोजगार नष्ट होने की भी आशंका है।

यह सही है कि ट्रंप ने इस विषय में किसी भी बातचीत से इनकार किया है लेकिन भारत को निरंतर बातचीत के प्रयास जारी रखने चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत को यह तय करने का अधिकार है कि वह किसी देश के साथ किस तरह का रिश्ता रखेगा लेकिन इसके साथ ही उसे असाधारण हालात से भी निपटने की तैयारी रखनी चाहिए ताकि उसके हितों की रक्षा हो सके। यह ध्यान देने लायक है कि भारत का रूस के साथ बहुत गहरा और पुराना रिश्ता है।

इसके रिश्ते को दरकिनार नहीं किया किया जा सकता है। बहरहाल, मौजूदा हालात से निपटने के लिए भारत अपने तेल आयात को टुकड़ों में रूस से बंद कर सकता है। हाल में ऐसा देखा भी गया है। भारत ने रूसी तेल का आयात इसलिए शुरू किया था क्योंकि पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण वह रियायती दरों पर उपलब्ध था। परंतु यह रियायत भी काफी कम हुई है। इस समाचार पत्र द्वारा किया गया विश्लेषण बताता है कि भारत ने जनवरी 2022 से जून 2025 के बीच केवल 15 अरब डॉलर की राशि बचाई।

नोमूरा के एक शोध में गत सप्ताह इस बात को रेखांकित किया गया कि चालू वर्ष में प्रति बैरल केवल 2.2 डॉलर की छूट मिल रही है। अगर भारत अपने आयात को बदलता है तो इसकी सालाना अतिरिक्त लागत करीब 1.5 अरब डॉलर की होगी। बहरहाल, यह बदलाव वैश्विक तेल कीमतों को बढ़ा सकता है, हालांकि उपलब्ध क्षमता और मांग के कारण यह इजाफा बहुत सीमित रहेगा। चूंकि भारत का चालू खाते का घाटा बहुत अधिक नहीं है इसलिए इस बदलाव का प्रबंधन किया जा सकता है। वास्तव में अमेरिकी बाजारों के लगभग बंद हो जाने का चालू खाते के घाटे पर अधिक असर हो सकता है। यह वृद्धि और रोजगार पर असर डाल सकता है। ऐसे में भारत के लिए बेहतर यही होगा कि वह अमेरिका के पूरी तरह विरुद्ध हो जाने के बजाय तार्किक ढंग से निर्णय ले।

First Published - August 10, 2025 | 11:18 PM IST

संबंधित पोस्ट