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भारतीय रुपये का डिजिटलीकरण

डिजिटल मुद्रा और सुरक्षित वायरलेस कनेक्टिविटी का पूरा इंतजाम नोटबंदी से पहले होना चाहिए था। बता रहे हैं जैमिनी भगवती

Last Updated- January 02, 2023 | 11:52 PM IST
भारतीय-रुपये-का-डिजिटलीकरण
बिनय सिन्हा

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 1 दिसंबर को एक डिजिटल रुपये (डीआर) की पेशकश की जिसे केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) के नाम से भी जाना जाता है। आरबीआई ने चार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को डिजिटल रुपये का प्रायोगिक परीक्षण करने के लिए अधिकृत किया है। भुगतान के लिए नकदी जमा करने के बजाय भारतीय लोग अन्य व्यक्तियों और संस्थाओं के साथ हिसाब चुकता करने के लिए डीआर का उपयोग करने में सक्षम होंगे।

इसके बाद नकद रकम का भुगतान करने के लिए किसी व्यक्ति, सूक्ष्म, मध्यम और लघु उद्यमों (एमएसएमई) या अन्य को अपने खातों से अपने बैंकों या एटीएम में जाकर नकद रकम निकालने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके बजाय वे इस सुविधा को देने के लिए अधिकृत बैंकों के साथ इस सेवा के लिए पंजीकरण कराने के बाद डीआर भेज सकते हैं या हासिल कर सकते हैं। अच्छी बात यह है कि डिजिटल रुपये के उपयोगकर्ताओं को किसी भी बैंक में खाता खोलने की आवश्यकता नहीं है।

ऐसे में एक विवादास्पद सवाल यह उठता है कि कोई भी डिजिटल रुपये में एक बड़ी राशि क्यों रखेगा जबकि यह नकद रकम के ही बराबर है लेकिन बचत खातों की शेष राशि की तरह इस पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा? हालांकि दूसरी ओर डीआर का उपयोग करने का एक फायदा यह है कि बैंक खाते के बिना भी इसे हासिल किया जा सकता है। लेकिन बैंकों को इसमें फायदा होगा क्योंकि उन्हें डीआर बैलेंस पर कोई ब्याज नहीं देना होगा। डीआर के इस्तेमाल से आरबीआई की वित्तीय लागत की बचत के साथ-साथ नोटों की छपाई में और समय-समय पर इन्हें हटाने में लगने वाले निरीक्षण समय की बचत होगी।
नवंबर 2016 में की गई नोटबंदी के कुछ उद्देश्यों में से एक बेहिसाब नकदी की जमाखोरी को खत्म करना भी था।

उस समय देश में भारतीय रुपये की कुल मात्रा लगभग 15 लाख करोड़ रुपये थी जबकि 2 दिसंबर, 2022 तक, देश में रुपये वाली मुद्रा की कुल नकद राशि 32 लाख करोड़ रुपये थी। दूसरे शब्दों में दिसंबर 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी नवंबर 2016 की तुलना में 2.13 गुना थी। इसी अवधि में भारत में मौजूदा बाजार दर पर आधारित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 1.7 गुना बढ़ गया। इसका मतलब यह दर्शाना नहीं है कि नवंबर 2016 और दिसंबर 2022 के बीच जीडीपी में वृद्धि की तुलना में प्रचलन वाले रुपये की मात्रा में अधिक वृद्धि कहीं से भी अनुचित है। इस तुलना का मकसद यह बताना है कि नोटबंदी के कुछ उद्देश्य पूरे नहीं हुए हैं जिनमें से एक अर्थव्यवस्था में नकदी की मात्रा को नियंत्रित करके अवैध मौद्रिक हस्तांतरण कम करना है।

डिजिटल रुपये का उपयोग करने के फायदों की बात करें तो नकद रुपये के वर्तमान उपयोगकर्ता फटे नोटों या नकली नोटों और रकम नहीं मिलने से जुड़ी शिकायत किए बिना ही डीआर में बड़े पैमाने पर भुगतान करने या पाने में सक्षम होंगे। बेशक नकदीरहित लेनदेन पेटीएम और गूगल पे जैसे आसानी से इस्तेमाल होने वाले माध्यमों के जरिये ही संभव हैं। डिजिटल रुपया और पूंजी हस्तांतरण के अन्य साधनों के बीच अंतर यह है कि डिजिटल रुपया के माध्यम को छोड़कर अन्य सभी माध्यमों के लिए पैसा भेजने वाले और भुगतान पाने वाले दोनों का बैंक खाता होना जरूरी है।

जो लोग डिजिटल रुपये का इस्तेमाल करना चाहते हैं उन्हें केवल बैंकों के साथ डिजिटल रुपया बैलेंस रखने की आवश्यकता होगी, जिसे पूंजी का भुगतान करने या प्राप्त करने के लिए इस सुविधा का इस्तेमाल करने के साथ ही डेबिट या क्रेडिट किया जाएगा। बैंकों को इसके लिए भरोसे का माहौल बनाने के लिए डीआर के आदान-प्रदान के लिए एक सुरक्षित प्रणाली तैयार करने की आवश्यकता होगी। हालांकि, यह सुविधा तभी काम करेगी जब उपयोगकर्ताओं के पास आसानी से इंटरनेट की बाधारहित सुविधा मौजूदा हो।

हालांकि यह भी बताया जा रहा है कि इंटरनेट कनेक्टिविटी के बिना लेनदेन की अनुमति दी जा सकती है लेकिन इसके परिणामस्वरूप पर्याप्त डीआर क्रेडिट बैलेंस के बिना भी कई डीआर भुगतान हो सकते हैं। डीआर के इस्तेमाल का प्रसार वास्तविक रूप से केवल तभी किए जाने की उम्मीद की जानी चाहिए जब यह पूरे देश में बेहतर बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ मौजूद होगा।
इसके बाद, समय के साथ डिजिटल रुपये के इस्तेमाल का प्रसार भारत के भीतर और यहां तक कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी इन देशों के अधिकारियों के साथ तालमेल बिठाने के माध्यम से संभव है।

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के विस्तार प्रयासों और केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे प्रचार-प्रसार के चलते डिजिटल रुपये के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और नकली नकदी वाली गतिविधियों में कमी लाने में मदद मिल सकती है। यह संभावना है कि जो व्यक्ति या अन्य लोग डीआर का उपयोग करना सीख सकते हैं, उनके पास शायद इन निर्दिष्ट बैंकों में बचत खाते भी होंगे और उन्हें यह पता भी होगा कि बैंक खातों के बीच पूंजी कैसे हस्तांतरित की जाती है। ऐसे व्यक्तियों और एमएसएमई को लग सकता है कि डीआर का उपयोग करने का कोई अतिरिक्त लाभ नहीं है और संभावित उपयोगकर्ता लेनदेन की निगरानी को लेकर सावधान हो सकते हैं हालांकि दावा यह किया जाता है कि डीआर के इस्तेमाल के कोई सबूत नहीं रहते हैं।

जांच एजेंसियों के लिए बड़े मूल्य वाले डीआर हस्तांतरण के प्रेषकों-रिसीवरों की निगरानी करने के कई तरीके भी हो सकते हैं। इस संदर्भ में नवंबर 2016 की नोटबंदी के बाद जमा की गई भारी मात्रा की नकदी से यह स्पष्ट हुआ कि कुछ व्यक्ति और छोटे कारोबार गुमनाम रहने और वस्तु तथा सेवा कर या अन्य कर देनदारियों से बचने के लिए नकदी का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं।
दुर्भाग्य से भारत में कई लोग आमतौर पर चार्टर्ड अकाउंटेंट की सहायता से कर अधिकारियों की नजर में आने से बचने के लिए कई अनूठे तरीके ढूंढते हैं। नतीजतन, आरबीआई की डीआर पहल नकदी के इस्तेमाल को कम करने के पूरक कदमों के बिना अब भी बिलकुल नया कदम है।

बड़े नकदी हस्तांतरण को हतोत्साहित किया जा सकता है और सभी अधिक मूल्य वाले नोटों को क्रमिक आधार पर वापस लेकर डिजिटल रुपया को बढ़ावा दिया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर 100 रुपये से ऊपर के सभी नोटों को तीन साल की अवधि में वापस ले लिया जा सकता है। इसके बाद, 100 रुपये के नोटों के बड़े बंडलों को कहीं ले आना-ले जाना मुश्किल होगा और इसकी वजह से योजनाबद्ध तरीके से कैमरे की निगरानी का इंतजाम किया जा रहा है।

यह संभावना है कि पड़ोसी देशों में सब्सिडी वाले उर्वरकों की तस्करी में कमी जैसे फायदे मिलेंगे जिसका भुगतान संभवतः बड़े मूल्य वाले नकद नोटों में किया जाता है। नोटबंदी के दावे को हासिल करने में डिजिटल रुपया भी कारगर हो सकता है क्योंकि इसके बाधाकारी परिणाम नहीं देखने को मिलेंगे। दरअसल डिजिटल रुपया बड़े मूल्य वाली नकदी के बराबर भुगतान के लिए विकल्प देगा।
एमएसएमई और कोई भी व्य​क्ति जो बड़ी तादाद में नकद भुगतान करना चाहते हैं या देना चाहते हैं वे पूरे भरोसे के साथ इस बात का दावा नहीं कर पाएंगे कि जब उनके पास डिजिटल रुपया का विकल्प आसानी से मौजूद है तब उन्हें नकद रुपये का इस्तेमाल क्यों करना चाहिए।

(लेखक पूर्व भारतीय राजदूत, वर्ल्ड बैंक ट्रेजरी के विशेषज्ञ और सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस के विशिष्ट फेलो हैं)

First Published - January 2, 2023 | 10:33 PM IST

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