मुंबई में अपने घर के निकट जिस पार्क में मैं रोज सुबह एक घंटे पैदल चलता हूं उसके प्रवेश द्वार पर वर्दी में खड़े एक सुरक्षा कर्मी ने मुझसे कहा, ‘सर, क्या मैं आपसे बात कर सकता हूं?’ मैं उसे देखकर चकित था। क्या मैं कोई ऐसी गैरकानूनी वस्तु ले जा रहा हूं जिसे लेकर वह मुझे टोकना चाहता है?
या फिर शायद पार्क में आने जाने का समय बदल गया है और बैठकों में समय से पहले पहुंच जाने की अपनी आदत के अनुरूप ही मैं पार्क में भी तय समय से बहुत जल्दी आ रहा हूं?
या फिर या यह पार्क जो सालाना 100 रुपये शुल्क पर सभी लोगों के लिए उपलब्ध है, वह अपना शुल्क बढ़ाने जा रहा है और इस सुरक्षा कर्मी से मुझे अवगत कराने को कहा गया है? ‘बिल्कुल। आप क्या कहना चाहते हो मुझे बताओ।’ मैंने उस सुरक्षा कर्मी से कहा।
‘मेरा बेटा एक प्रतिभाशाली संगीतकार है और वह इसी काम से आजीविका कमाने के तरीके खोज रहा है…, मैं चाहता हूं कि आप उसे सलाह दें कि वह इससे आजीविका कैसे कमाए।’ मुझे यह सुनकर सुखद आश्चर्य हुआ कि एक सुरक्षा कर्मी का बेटा संगीतकार बनना चाहता है।
मैंने अपनी भावनाओं को छिपाते हुए उससे कहा कि वह मुझे इस बारे में सोचने के लिए एक दिन का समय दे, मैं उसे अपनी राय जरूर बताऊंगा। आजकल मैं रोज सुबह टहलते वक्त संगीत अवश्य सुनता हूं लेकिन मेरा संगीत उद्योग से किसी तरह का संपर्क नहीं है। ऐसे में उस युवा को कोई भी सलाह देने के पहले मुझे थोड़ा शोध करना पड़ा।
मैं यह सहज ही देख सकता था कि कैसेट टेप, जिन्होंने मेरे कॉलेज के दिनों से अभी हाल तक (विकिपीडिया के मुताबिक सन 2000 में हर महीने भारत में 4.9 करोड़ कैसेट टेप बिके जिनमें से एक तिहाई पायरेटेड थे) बाजार पर कब्जा रखा, उनकी जगह अब इंटरनेट पर संगीत की स्ट्रीमिंग ने ले ली थी।
इसके बाद मुझे झटका सा लगा: एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल भारत में हर तीन मिनट में 10 लाख गानों की स्ट्रीमिंग होती है यानी रोज 48 करोड़ स्ट्रीम। आंकड़ों को लेकर काम करने वाली वेबसाइट स्टेटिस्टा के मुताबिक इससे सालाना 90 करोड़ रुपये का राजस्व आता है।
खेद की बात है कि पुराने दौर की तरह इंटरनेट के दौर में भी एक दर्जन से भी कम कंपनियां ही भारतीय स्ट्रीमिंग बाजार में दबदबा रखती है। इससे भी अधिक दुख की बात है कि उनका मौजूदा कारोबारी मॉडल उनके बड़े घाटे की वजह है।
मैं चकित होकर सोचने लगा कि आखिर हमारे उस सपने का क्या हुआ जिसमें हमने सोचा था कि वर्ल्ड वाइड वेब सूचनाओं की साझेदारी को लोकतांत्रिक बनाएगा।
माना जा रहा था कि यह हर व्यक्ति को इस बात की आजादी देगा कि वह अपने विचारों को साझा कर सके और लेनदेन कर सके। ऐसे में इस पर आधा दर्जन कंपनियों का दबदबा कैसे कायम हुआ?
इस दबदबे की एक वजह यह है कि भारत तथा दुनिया के अन्य देशों के आर्थिक नीतिकारों ने इंटरनेट और वेब के एक खास पहलू पर समुचित ध्यान नहीं दिया और वह है नेटवर्क प्रभाव की शक्ति। इसके चलते इस उद्योग पर छह कंपनियों का दबदबा कायम हो गया क्योंकि उनके पास नेटवर्क के एक हिस्से को सब्सिडी देने की आर्थिक क्षमता थी।
नेटवर्क प्रभाव के दौर में प्रतिस्पर्धा को नियमित करने के नए तरीके भी दुनिया के किसी प्रतिस्पर्धा नीति संबंधी कानून में नहीं सामने आए हैं। परंतु संगीत उद्योग में एक खामोश क्रांति घटित हो रही है। उदाहरण के लिए क्रिएटर इकॉनमी का विकास। इस पर नजर डालना जरूरी है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में विस्तारित हो सकती है।
दो प्रौद्योगिकियां इसे रेखांकित करती हैं: नॉन-फंजिबल टोकंस (एनएफटी) और ब्लॉकचेन। एनएफटी को किसी भी मीडिया से जोड़ा जा सकता है जबकि आमतौर पर एनएफटी की जो सामग्री होती है वह दरअसल चित्र, वीडियो, संगीत या किसी अन्य रूप में होती है।
इस एनएफटी को ब्लॉकचेन पर भंडारित किया जाता है। किसी गीत या तस्वीर या आलेख में उकेरा गया एनएफटी उसके स्वामित्व को पुष्टि योग्य बनाता है और बिचौलियों मसलन गैलरीज या रिकॉर्ड लेबल की जरूरत को खत्म करता है और क्रिएटर (रचनाकार) को यह अवसर देता है कि वह अपनी सामग्री को सीधे श्रोताओं को बेच सकें।
इस तरह क्रिएटर अपने काम का अधिक मुनाफा रख सकेंगे। ब्लॉकचेन का इस्तेमाल यह सुनिश्चित करता है कि भंडारण का विकेंद्रीकरण इस प्रकार किया जाए कि कोई एक व्यक्ति या समूह नियंत्रण न रखे बल्कि सभी उपयोगकर्ता सामूहिक नियंत्रण रखते हैं।
एनएफटी और ब्लॉकचेन का इस्तेमाल करके आदर्शवादी उद्यमियों को क्रिएटर इकॉनमी की मदद करनी चाहिए और वे ऐसा कर सकते हैं। इससे जो आर्थिक तंत्र उभरेगा वह क्रिएटरों को यह अवसर देगा कि वे डिजिटल प्लेटफॉर्म का फायदा उठाएं और अपनी खुद की सामग्री, उत्पाद ओर सेवाओं का वितरण करें। क्रिएटर इकॉनमी रचनाकारों और उनके दर्शकों या श्रोताओं के बीच सीधा रिश्ता कायम करने में मदद करती है।
इसका दूसरा पहलू यह है कि वह रचनात्मकता को लोकतांत्रिक बनाती है: इसमें प्रवेश की दिक्कतें उल्लेखनीय रूप से कम होंगी, लोग न्यूनतम लागत पर क्रिएटर बन सकेंगे। यह लोकतंत्रीकरण आवाजों और क्रिएटरों के मामले में विविधता बढ़ाएगा और पारंपरिक मीडिया ढांचे को चुनौती मिलेगी।
तीसरा पहलू रचनात्मक स्वतंत्रता का है: क्रिएटरों के पास यह स्वतंत्रता होगी कि वे ऐसी सामग्री तैयार कर सकें जो उनके नजरिये और उनके मूल्यों के अनुकूल हो। इससे नए श्रोता और दर्शक आकर्षित होंगे जिन्हें विश्वसनीय और विशिष्ट सामग्री की जरूरत होगी जो पारंपरिक मीडिया में उपलब्ध नहीं होती।
इन बातों के परिदृश्य में उस सुरक्षा कर्मी के बेटे की बात करें तो उसके पास भी इस बात का पूरा अवसर होगा कि वह अपनी रचनात्मक प्रतिभा के लिए समुचित बाजार तलाश कर सके। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि क्रिएटर इकॉनमी का यह मॉडल मीडिया से परे भी जा सकता है।
इसका इस्तेमाल वित्तीय, विधिक, चिकित्सा, शिक्षा, प्रौद्योगिकी तथा अन्य सेवाओं में किया जा सकता है। परंतु क्रिएटर इकॉनमी को उभारने के लिए पर्याप्त विधायी नवाचारों की भी आवश्यकता होगी। शायद अब वक्त है कि वर्ल्ड वाइड वेब के निर्माता टिम बर्नर्स ली की बात को सुनने की।
उनका कहना है, ‘यह बात समझी जा सकती है कि कई लोग डरे हुए हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि क्या वाकई वेब एक सकारात्मक शक्ति है। परंतु बीते 30 वर्षों में वेब में बहुत बदलाव आया है।
यह मानना अकल्पनीय होगा कि वेब को अगले 30 वर्षों में बेहतरी के लिए नहीं बदला जा सकता है। अगर हम अभी एक बेहतर वेब बनाने की कोशिश छोड़ देंगे तो यह वेब की नहीं बल्कि हमारी नाकामी होगी।’
(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)