बैंकों में जमा रकम का अंबार लगाने की होड़ लगी हुई है। वरिष्ठ बैंक अधिकारियों को भी याद नहीं कि जमा रकम के लिए बैंकों के बीच इतनी आपा-धापी कब दिखी थी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को वर्ष 1990 के मध्य में सावधि जमा पर ब्याज दर तय करने की छूट दी थी। बचत खातों पर ब्याज दर तय करने की आजादी 2011 में दी गई। चालू खाते पर बैंक ग्राहक को कोई ब्याज नहीं देते हैं। कैलेंडर वर्ष 2022 में बैंकिंग क्षेत्र में जमा रकम में 9.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। यह आंकड़ा ऋण आवंटन में 14.2 प्रतिशत बढ़ोतरी का करीब आधा है। 2021 में जमा रकम में 10.3 प्रतिशत का इजाफा हुआ, जो ऋण आवंटन में 9.2 प्रतिशत बढ़ोतरी से अधिक रहा।
चूंकि, जमा रकम का अंबार ऋण आवंटन की रकम से अधिक है इसलिए पूरे आंकड़ों पर विचार किया जाना चाहिए। 2022 में बैंकों में जमा रकम 14.9 लाख करोड़ रुपये बढ़ गई जबकि इसकी तुलना में ऋण आवंटन में 17.6 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ। पिछले वर्ष जमा पोर्टफोलियो का आकार 15.1 लाख करोड़ रुपये बढ़ा था, जबकि ऋण आवंटन की राशि 9.8 लाख करोड़ रुपये रही। बैंकों को कुल जमा का 22.5 प्रतिशत हिस्सा नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) एवं सांविधिक तरलता अनुपात के रूप में रखना पड़ता है। इस तरह वे शेष 77.5 प्रतिशत रकम ही ऋण के रूप में दे सकते हैं।
छमाही आय के आंकड़ों पर विचार करें तो 12 सार्वजनिक बैंकों में पिछले एक वर्ष के दौरान (सितंबर 2022 तक) केवल चार में जमा रकम में बढ़ोतरी की दर दो अंकों में रही। केवल एक बैंक को छोड़कर सभी सरकारी बैंकों में ऋण आवंटन की रफ्तार अच्छी रही है। निजी क्षेत्र के बैंकों की बात करें तो अधिकांश बैंकों में ऋण आवंटन की दर जमा रकम में बढ़ोतरी की तुलना में अधिक रही है।
इस स्थिति के पीछे कई कारण हैं। कोविड महामारी के प्रसार के बाद भारत सहित दुनिया के सभी देशों में नकदी बढ़ती गई। भारत में अर्थव्यवस्था सामान्य होने के बाद आरबीआई ने पिछले साल हालात सामान्य बनाने के प्रयास शुरू कर दिए। सितंबर 2021 में वित्तीय तंत्र में करीब 10 लाख करोड़ रुपये अधिशेष नकदी उपलब्ध थी। अब अधिशेष रकम कम होकर 1.8 लाख करोड़ रुपये रह गई है। अक्टूबर 2022 में वित्तीय तंत्र में अधिशेष नकदी सपाट या बिल्कुल खत्म हो गई।
पूंजी धीरे-धीरे गायब होने से भी वित्तीय तंत्र में अधिशेष नकदी में कमी आई। सितंबर 2021 के पहले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 642.45 अरब डॉलर था। जनवरी 2023 के दूसरे सप्ताह में मुद्रा भंडार कम होकर 572 अरब डॉलर रह गया। अमेरिकी मुद्रा डॉलर की तुलना में रुपये में कमजोरी से भी विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है।
तेजी से बढ़ता वित्तीयकरण भी बैंक जमा में कमी का एक कारण रहा है। दिसंबर 2022 में म्युचुअल फंड उद्योग में प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां 39.88 लाख करोड़ रुपये थी। तीन वर्ष पहले दिसंबर 2019 में यह रकम 26.54 लाख करोड़ रुपये थी। पिछले कुछ वर्षों में डीमैट खातों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है जो इस बात का संकेत है कि शेयरों में निवेश करने में बचतकर्ताओं की रुचि बढ़ रही है।
कई तरह के प्रोत्साहन देने के बाद भी बैंक प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) से जमा रकम खींच पाने में विफल रहे हैं। दूसरे देशों में ब्याज दरों में बढ़ोतरी इसकी मुख्य वजह रही है।
अब प्रश्न है कि आने वाला समय बैंकों एवं इनके ग्राहकों के लिए कैसा रहेगा? कुछ महीने पहले ऋण आवंटन की दर करीब 18 प्रतिशत थी जो अब कम होकर 14.9 प्रतिशत रह गई है। चालू वित्त वर्ष के अंत में यह इसी स्तर पर रहने की उम्मीद है और संभवतः अगले वित्त वर्ष के अंत में यह 14.9 प्रतिशत से भी नीचे जा सकती है। अगर जमा रकम में बढ़ोतरी तेजी से नहीं हुई तो बैंक ऋण आवंटन रोक सकते हैं।
बैंकिंग तंत्र ने सरकारी बॉन्ड में आरबीआई द्वारा तय शर्त से भी अधिक निवेश किया है। वे नकदी बहाल करने और ऋण आवंटन बढ़ाने के लिए बॉन्ड में निवेश का एक हिस्सा निकाल सकते हैं। हालांकि यह भी देखने वाली बात होगी कि अगले वित्त वर्ष में सरकार बाजार से कितनी रकम उधार लेती है। इक्रा के एक अनुमान के अनुसार वित्त वर्ष 2024 में केंद्र सरकार 14.8 लाख करोड़ रुपये उधार ले सकती है। केंद्र एवं राज्यों की संयुक्त उधारी 24.4 लाख करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंचने का अनुमान है।
अगर सरकार राजकोषीय घाटा कम करने के लिए बाजार से भारी भरकम उधारी लेना जारी रखती है तो बैंकों के पास बॉन्ड में निवेश करना ही होगा। इस बात पर भी नजर होगी कि आरबीआई तथाकथित खुला बाजार परिचालन (ओएमओ) के जरिये बॉन्ड खरीदती है या नहीं। सरकार अधिक उधार लेती है तो निजी निवेश कम हो जाता है। मोटे तौर पर वित्तीय तंत्र में नकदी का स्तर पूंजी बाहर निकलने, डॉलर-रुपया को लेकर आरबीआई के रवैये और व्यय करने को लेकर सरकार के रुख पर निर्भर करेगा। बैंक अगर ऋण की मांग पूरी नहीं कर पाए तो कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार में हलचल बढ़ सकती है।
फिलहाल बैंकों के पास जमा पर ब्याज बढ़ाने के सिवाय दूसरा कोई मजबूत विकल्प नजर नहीं आ रहा है। 2022 में क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ मुहिम, केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी और ऋण आवंटन पर ध्यान केंद्रित रहा मगर 2023 में जमा रकम पर विशेष ध्यान रहेगा। बैंकिंग क्षेत्र लंबे समय से बचतकर्ताओं को गंभीरता से नहीं ले रहे थे मगर अब यह स्थिति बदलनी होगी। संयोग से सावधि जमा में वृद्धि डिमांड डिपॉजिट (बचत एवं चालू खाता) से अधिक है।
बढ़ती ब्याज दरें इसका कारण हो सकती हैं। वित्तीय तंत्र से सस्ती नकदी गायब होने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद अब घरेलू बचतकर्ताओं को उनकी रकम पर अधिक ब्याज मिलना तय है। बैंकों में जमा रकम पाने के लिए लगी होड़ इसी ओर इशारा कर रही है।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं।)