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क्लाइमेट फाइनेंस अब पहुंच के भीतर, COP30 में मजबूत प्रतिबद्धता की उम्मीद

हाल के अध्ययनों ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 1 से 4 लाख करोड़ डॉलर की जलवायु फंडिंग की आवश्यकताओं का अनुमान लगाया है

Published by
जनक राज   
Last Updated- November 18, 2025 | 11:08 PM IST

ब्राजील के बेलेम में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप30) जारी है। इस सम्मेलन में वैज्ञानिक और तकनीकी मुद्दों पर चर्चा के अलावा, इस बार के विमर्श का एक बड़ा मुद्दा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूलन के लिए जरूरी संसाधनों पर केंद्रित होने की उम्मीद है। हालांकि इस तरह की फंडिंग लागतों के अनुमान, समय के साथ कम हुए हैं, लेकिन अब भी बहुत ज्यादा हैं जिसका अर्थ यह है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं से उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को बड़े वित्तीय हस्तांतरण की आवश्यकता है।

हाल के अध्ययनों ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 1 से 4 लाख करोड़ डॉलर की जलवायु फंडिंग की आवश्यकताओं का अनुमान लगाया है। यह आंकड़ा इतना चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है कि सम्भवतः जितनी कार्रवाई की जा सकती थी, उससे भी कम कार्रवाई हो सकेगी। साथ ही, ये अनुमान ‘टॉप-डाउन’ दृष्टिकोण पर आधारित हैं और सेक्टर तथा क्षेत्रीय विवरणों की बेहतर समझ के लिए इनका विश्लेषण करना कठिन है।

‘नौ जी20 ईएमई की जलवायु वित्त आवश्यकताएं: पहुंच 1 के भीतर’ शीर्षक वाले हमारे अध्ययन में 9 जी20 उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि अर्जेंटीना, ब्राजील, चीन, इंडोनेशिया, भारत, मेक्सिको, रूस, दक्षिण अफ्रीका और तुर्किये की वर्ष 2030 तक की जलवायु वित्त आवश्यकताओं का अनुमान लगाया गया है। हमारे अनुमान की कई बारीकियां हैं और इसमें सामान्य परिस्थितियों में जरूरी निवेश से अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन से जुड़े बचाव के लिए आवश्यक निवेश की बात शामिल है।

इस अध्ययन से पता चलता है कि इन 9 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं को वर्ष 2022 और 2030 के बीच चार क्षेत्रों (बिजली, सड़क परिवहन, स्टील और सीमेंट) के लिए 2.2 लाख करोड़ डॉलर का अतिरिक्त जलवायु फंड चाहिए होगा, जिसका वार्षिक औसत 255 अरब डॉलर होता है। यह इन 9 अर्थव्यवस्थाओं के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.6 फीसदी के बराबर है जो एक व्यवहारिक दायरे में है। यदि यह मान लिया जाए कि अध्ययन में शामिल नहीं किए गए बाकी 50 प्रतिशत क्षेत्रों में उत्सर्जन में कमी की लागत इन अनुमानों के अनुरूप है तब भी कुल वार्षिक लागत केवल 0.5 लाख करोड़ डॉलर से थोड़ी अधिक होगी।

उत्सर्जन में कमी पर अधिकांश चर्चा, ऊर्जा माध्यमों के बदलाव की आवश्यकताओं पर केंद्रित रही है। इसके विपरीत, हमारे अध्ययन में पाया गया है कि 1.2 लाख करोड़ डॉलर (कुल आवश्यकता का 52 फीसदी) का सबसे बड़ा हिस्सा स्टील क्षेत्र के लिए जरूरी है और इसके बाद सड़क परिवहन (460 अरब डॉलर) और सीमेंट (450 अरब डॉलर) जैसे क्षेत्र का स्थान है। स्टील और सीमेंट ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें उत्सर्जन कम करना कठिन है और इनके लिए मुख्य रूप से कार्बन कैप्चर एवं स्टोरेज (सीसीएस) तकनीक का उपयोग आवश्यक है, जिसे लगाना महंगा है लेकिन इस स्तर पर यही एकमात्र व्यवहारिक तकनीकी विकल्प उपलब्ध है। ऐसे में उन्हें कुल अनुमानित जलवायु फंड के सबसे बड़े हिस्से की जरूरत है।

बिजली क्षेत्र के लिए केवल 150 अरब डॉलर की आवश्यकता का अनुमान है, जिसमें स्टोरेज (पंप और बैटरी स्टोरेज) के लिए 28 अरब डॉलर शामिल हैं, लेकिन इसमें अतिरिक्त ग्रिड लागत शामिल नहीं है। हमारे अनुमान बाकी सभी अनुमानों से कम हैं क्योंकि पहली बात यह है कि हमारे अध्ययन ने सामान्य परिस्थितियों में जीवाश्म-ईंधन आधारित बिजली स्रोतों पर पूंजीगत व्यय में होने वाली बचत को ध्यान में रखा है जिस पर किसी दूसरे अध्ययन में विचार नहीं किया गया है। दूसरा, उत्पादन के बढ़ते पैमाने, अनुसंधान एवं विकास और तकनीकी सफलताओं के कारण अक्षय ऊर्जा की पूंजीगत लागत में तेजी से गिरावट आई है। इस प्रकार, सामान्य धारणा के विपरीत, ऊर्जा माध्यमों के बदलाव के लिए इन सभी 9 अर्थव्यवस्थाओं के चार क्षेत्रों में से सबसे कम जलवायु फंड की आवश्यकता है।

डीजल-पेट्राेल इंजन वाहनों से इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलाव के लिए सड़क परिवहन क्षेत्र के लिए जलवायु फंड का अनुमान 5 अरब डॉलर है। इसका मुख्य कारण यह है कि चीन में वर्ष 2022 और 2030 के बीच वाहन बिक्री में 15 फीसदी की गिरावट आ सकती है। हालांकि, 9 अर्थव्यवस्थाओं को चार्जिंग से जुड़े बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए ऐसा अनुमान है कि 465 अरब डॉलर के बड़े पूंजीगत खर्च की आवश्यकता होगी। इस बड़ी लागत का एक बड़ा हिस्सा चीन के कारण है जो तेज रफ्तार वाले चार्जिंग स्टेशन बना रहा है जिसकी लागत अन्य जगहों पर तैयार किए गए धीमी गति के चार्जर से लगभग सात गुना अधिक है।

अर्थव्यवस्था के स्तर पर, चीन की जलवायु फंड जरूरतें 1,340 अरब डॉलर (सभी 9 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की कुल जरूरत का 61 फीसदी या सालाना 155 अरब डॉलर यानी उसकी जीडीपी का 0.7 फीसदी हिस्सा) की हैं जो सबसे अधिक है। इसका मुख्य कारण स्टील और सीमेंट उत्पादन में उसकी दबदबे वाली हिस्सेदारी है। भारत के लिए आवश्यक जलवायु वित्त का अनुमान लगभग 470 अरब डॉलर (55 अरब डॉलर सालाना या जीडीपी का 1.3 फीसदी) है जो चीन के बाद 9 उभरती अर्थव्यवस्थाओं में दूसरी सबसे बड़ी आवश्यकता है। चीन और भारत को छोड़कर, शेष सात अर्थव्यवस्थाओं के लिए जलवायु वित्त आवश्यकताएं वर्ष 2022-2030 के लिए अनुमानत: 390 अरब डॉलर या सालाना 45 अरब डॉलर (जीडीपी का 0.3-0.7 फीसदी) है।

अध्ययन से पता चलता है कि 9 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए बिजली, स्टील और सीमेंट क्षेत्र के लिए अनुमानित जलवायु फंड से 33 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। 9 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में प्रति टन कार्बन डाइऑक्साइड को खत्म करने की औसत लागत अनुमानित स्तर पर 53 डॉलर है।

प्रति यूनिट लागत के मामले में बिजली क्षेत्र कार्बन घटाने के लिए सबसे महंगा है(66 डॉलर प्रति टन कार्बन डाइऑक्साइड), इसके बाद स्टील क्षेत्र (53 डॉलर प्रति टन कार्बन डाइऑक्साइड) और फिर सीमेंट क्षेत्र (49 डॉलर प्रति टन कार्बन डाइऑक्साइड)
का स्थान है।

संक्षेप में, हमारे अध्ययन के अनुमान अन्य अध्ययनों की तुलना में बहुत कम हैं लेकिन ये व्यवहारिकता के दायरे में हैं। कॉप 30 का समापन उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में उत्सर्जन में कमी के लिए जरूरी संसाधनों के प्रबंधन की अपेक्षाओं से जुड़े आशावाद की भावना के साथ होना चाहिए।


(लेखक सीएसईपी, नई दिल्ली में क्रमश: मानद अध्यक्ष और वरिष्ठ फेलो हैं)

First Published : November 18, 2025 | 9:54 PM IST