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बजट 2026 में राजकोषीय अनुशासन और विकास के बीच संतुलन जरूरी

उम्मीद है कि बजट विकास प्रक्रिया को गति प्रदान करने के लिए सुधारों की रफ्तार को तेज करने में मदद करेगा

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एम गोविंद राव   
Last Updated- November 17, 2025 | 11:09 PM IST

वर्ष 2026-27 की बजट प्रक्रिया अक्टूबर में आरंभ हुई जब इससे संबंधित सर्कुलर जारी हुआ और बजट पूर्व बैठकें आरंभ हुईं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा थोपे गए शुल्कों के कारण बढ़ी अनिश्चितता और अस्थिरता तथा इसकी वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती, साथ ही ट्रंप द्वारा आठ युद्धों को रोकने के दावे के बावजूद अंतरराष्ट्रीय संघर्षों के जारी रहने के चलते बजट को गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करना होगा। उसे राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए राजकोषीय मजबूती जारी रखनी होगी ताकि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और ऋण के अनुपात में कमी लाई जा सके और उसे वर्ष 2031 तक केंद्र सरकार के जीडीपी के 50-52 फीसदी तक लाया जा सके।

इसके अलावा उसे अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 फीसदी के दंडात्मक शुल्क से प्रभावित प्रमुख क्षेत्रों को भी राहत दिलानी होगी। खासतौर पर इसलिए क्योंकि इनमें से कई क्षेत्र श्रम गहन हैं। उदाहरण के लिए कपड़ा, चमड़ा, रत्न एवं आभूषण, समुद्री उत्पाद और रसायन। उम्मीद की जानी चाहिए कि जब तक बजट पेश किया जाएगा, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता हो चुका होगा। उस समय व्यापारिक माहौल को लेकर कुछ स्पष्टता आएगी। रूसी तेल आयात को कम करने से कच्चे तेल की आयात लागत बढ़ सकती है और बजट व्यय में बढ़ोतरी हो सकती है।

अनिश्चित वैश्विक माहौल के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बेहतर रहा है और अप्रैल-जून तिमाही में 7.8 फीसदी की वृद्धि हासिल हुई जो बीती पांच तिमाहियों में सबसे अधिक है। तृतीयक क्षेत्र के मजबूत प्रदर्शन से इस प्रभावशाली वृद्धि को और गति मिली जिसमें 9.3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र 7.5 फीसदी की दर से बढ़ा। मांग के क्षेत्र में वृद्धि प्रमुख रूप से पारिवारिक खपत व्यय और केंद्र सरकार के अग्रिम रूप से पूंजीगत व्यय के भरोसे हुई। देश भर में जलाशयों की बेहतरीन हालत के मद्देनजर कृषि उपज अच्छी होने की उम्मीद है। माल एवं सेवा कर में सुधार ने विनिर्माण परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स यानी पीएमआई को सितंबर के 57.7 से बढ़ाकर अक्टूबर में 59.2 तक पहुंचा दिया।

हालांकि सेवा क्षेत्र के पीएमआई में मामूली कमी आई और यह सितंबर के 60.9 से कम होकर अक्टूबर में 58.9 रह गया। इस आशाजनक प्रदर्शन के चलते रिजर्व बैंक ने वर्ष के लिए वृद्धि अनुमान को 6.5 फीसदी से बढ़ाकर 6.8 फीसदी कर दिया है। मुद्रास्फीति की अनुकूल स्थिति को देखते हुए, रिजर्व बैंक संभवतः 3 से 5 दिसंबर की बैठक में नीतिगत दर में 25 आधार अंकों की और कटौती कर सकता है।

कुल मिलाकर कहें तो, वैश्विक आर्थिक वातावरण के सुस्त और अस्थिर स्वरूप के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में प्रतीत होती है। हालांकि, वृद्धि के परिदृश्य में कुछ अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि ट्रंप के शुल्क के प्रभावों का पूरा असर अभी सामने आना बाकी है, और पिछले वित्त वर्ष के आधार प्रभाव के कम होने के साथ वृद्धि की गति भी धीमी पड़ सकती है। हालांकि बड़ी चिंता का मसला निवेश अनुपात है। यह करीब 30 फीसदी के स्तर पर ठहरा हुआ है। यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सरकारी निवेश में वृद्धि से ही संभव हुआ और बुनियादी ढांचे में सुधार एवं कम ब्याज दरों के कारण निजी निवेश के आने की उम्मीद कारगर नहीं हुई।

वर्ष 2047 तक विकसित देश बनने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वृद्धि दर को तेज करना आवश्यक है, जिसके लिए निवेश अनुपात में पर्याप्त वृद्धि और वृद्धिशील पूंजी उत्पादन अनुपात (आईसीओआर) में कमी अनिवार्य है। इस मुद्दे को जितना जल्दी संभव हो, उतनी शीघ्रता से संबोधित करना होगा।

वर्ष की पहली छमाही में बजट कार्यान्वयन की प्रगति में कोई विशेष आश्चर्य नहीं देखा गया। महालेखा नियंत्रक द्वारा सितंबर तक के अनुमानित संचयी आंकड़ों के अनुसार, राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 36.5 फीसदी रहा। राजस्व संग्रह बजट अनुमान का 49.5 फीसदी और कुल व्यय 45.5 फीसदी रहा। सरकार ने राजस्व व्यय को नियंत्रित रखा, जो कि अनुमानित राशि का लगभग 43.7 फीसदी है। इसके विपरीत, पूंजीगत व्यय को अग्रिम रूप से खर्च किया गया, जिससे यह बजट अनुमान के 51.8 फीसदी तक पहुंच गया।

वर्ष के शेष भाग में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी बढ़ाने का दबाव हो सकता है, साथ ही अब तक रोक कर रखे गए राजस्व व्यय को जारी करने की आवश्यकता भी हो सकती है।इसके अलावा, कॉरपोरेट टैक्स में वृद्धि धीमी रही है, और इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीएसटी संरचना में बदलाव के प्रभाव सामने आने के साथ-साथ कर राजस्व में कमी देखी जा सकती है। हालांकि यह स्थिति राजकोषीय घाटे को प्रभावित नहीं कर सकती, क्योंकि सरकार अन्य स्रोतों से, विशेष रूप से रिजर्व बैंक के लाभांश से, राजस्व जुटाने में सक्षम हो सकती है।

अगले वर्ष का राजकोषीय गणित चुनौतीपूर्ण है। हालांकि सरकार ने ऋण-जीडीपी अनुपात को लक्ष्य बनाया है लेकिन संभव है कि वह मुख्यत: राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4 फीसदी तक रखने का लक्ष्य लेकर चले। निजी निवेश में कमी के साथ सरकार को वृद्धि की गति बनाए रखने के लिए उच्च पूंजीगत व्यय जारी रखना होगा।

चुनावी रियायतों के कारण राज्यों के व्यय की गुणवत्ता में चिंताजनक गिरावट देखी गई है, और राज्यों द्वारा पूंजीगत व्यय पर खुद का धन लगाने का अनुपात भी घटा है, विशेषकर यदि हम केंद्र सरकार द्वारा बिना ब्याज के दिए गए दीर्घकालिक ऋण को घटाकर देखें। संभवतः यह खाद्य सब्सिडी को बेहतर ढंग से लक्षित करने का उपयुक्त समय है।

यदि हम यह दावा करते हैं कि गरीबी दर में उल्लेखनीय कमी आई है, तो 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न देना जारी रखने का कोई ठोस कारण नहीं रह जाता। हमारे पास सब्सिडी को बेहतर ढंग से लक्षित करने के लिए आवश्यक तकनीक और जानकारी उपलब्ध है। हालांकि, राजनीतिक कारणों से ऐसा होना संभव नहीं लगता।

राजस्व के मोर्चे पर वांछित यही है कि सरकार आय कर में अधिक स्पष्टता लाए। दो अलग-अलग आयकर संरचनाओं को जारी रखना तर्कसंगत नहीं है। एक जिसमें उच्च दर पर कर लगाने की प्राथमिकता है और दूसरी जिसमें कम दर पर कर लगाया जाता है। सर्वोत्तम दृष्टिकोण एक ऐसी कर प्रणाली अपनाना है जिसका आधार व्यापक हो और जिसमें कोई कर वरीयता न हो और दरें कम तथा कम भिन्नता वाली हों।

इसका उद्देश्य राजस्व जुटाना होना चाहिए, न कि कई लक्ष्यों को एक साथ साधना। ऐसी प्रणाली सरलता सुनिश्चित करती है, संग्रह और अनुपालन की लागत को घटाती है, और अनचाही विकृतियों को जन्म नहीं देती। यह भी उचित होगा कि घरेलू और विदेशी कंपनियों के बीच भिन्न व्यवहार को समाप्त किया जाए। हालांकि सरकार यह दावा करती है कि व्यवसाय चलाना उसका कार्य नहीं है, फिर भी विनिवेश की प्रक्रिया धीमी रही है, और अब समय आ गया है कि इस प्रक्रिया को तेज किया जाए।

वास्तव में, सरकार को विनिवेश से भी आगे बढ़कर सभी व्यावसायिक उपक्रमों का निजीकरण करना चाहिए, चाहे वे लाभ में ही क्यों न हों। सरकार का कार्य शासन करना है, व्यवसाय चलाना नहीं। आशा है कि आगामी बजट विकास प्रक्रिया को तेज करने के लिए सुधारों की आकांक्षा की लौ को नए सिरे से प्रज्वलित करेगा।

(लेखक कर्नाटक क्षेत्रीय असंतुलन निवारण समिति के अध्यक्ष हैं। वह राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान के निदेशक तथा चौदहवें वित्त आयोग के सदस्य रह चुके हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published : November 17, 2025 | 11:09 PM IST