प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
आजकल जॉब के साथ-साथ फ्रीलांसिंग या पार्ट-टाइम काम करना आम हो गया है। घर बैठे लेग ग्राफिक डिजाइनिंग, कंटेंट राइटिंग या कंसल्टेंसी जैसे काम कर जमकर पैसे कमा रहे हैं, लेकिन टैक्स के मामले में यह थोड़ा पेचीदा हो जाता है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के मुताबिक, ऐसी कमाई ‘प्रॉफिट्स एंड गेन्स ऑफ बिजनेस/प्रोफेशन’ के तहत आती है। मतलब, सैलरी की तरह TDS ऑटोमैटिक नहीं कटता, बल्कि टैक्स का मैनेजमेंट खुद करना पड़ता है।
बजट 2025 के बाद नियम कुछ हद तक आसान हुए हैं। अब न्यू टैक्स रिजीम में स्लैब संरचना 0 से 4 लाख रुपये तक के हिस्से को 0% से शुरू होती है। इसके साथ 87A के रिबेट नियमों के कारण ज्यादातर टैक्सपेयर्स की टैक्स-लायबिलिटी लगभग 12 लाख रुपये तक NIL हो सकती है। (सैलरी वालों के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन के साथ यह सीमा कुछ मामलों में और बढ़ जाती है।) अगर आपकी कुल टैक्स-लायबिलिटी रिबेट के बाद शून्य है, तो ITR भरना जरूरी नहीं होता। लेकिन अधिक कमाई पर स्लैब रेट लागू होते हैं।
चलिए, स्टेप-बाय-स्टेप देखते हैं कि फ्रीलांसर्स पर टैक्स कैसे लागू होता है।
फ्रीलांसर की कमाई को टैक्स लगाने से पहले सबसे जरूरी है सही कैलकुलेशन। चूंकि यह बिजनेस/प्रोफेशन हेड में आता है, इसलिए आप अपनी कमाई में से खर्चे घटा सकते हैं। इसमें लैपटॉप, इंटरनेट बिल, सॉफ्टवेयर सब्सक्रिप्शन, क्लाइंट मीटिंग का ट्रैवल जैसे खर्चे शामिल हो सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि खर्च तभी मान्य होंगे जब उनके रिकॉर्ड हों।
एक आसान विकल्प है प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन स्कीम (Section 44ADA)।
यह छोटे फ्रीलांसर्स के लिए बहुत सुविधाजनक है क्योंकि पूरी अकाउंटिंग की जरूरत नहीं होती। हालांकि, न्यू टैक्स रिजीम में डिडक्शन सीमित होते हैं। स्टैंडर्ड डिडक्शन 75,000 रुपये (बजट 2025) ही रहेगा। इसलिए पहले ओल्ड और न्यू रिजीम की तुलना कर लेना बेहतर है।
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फ्रीलांसर्स के लिए TDS का नियम थोड़ा अलग है।
अगर क्लाइंट विदेशी है, तो TDS नहीं कटता, लेकिन आपको अपना टैक्स खुद जमा करना होता है।
अगर सालाना टैक्स लायबिलिटी 10,000 रुपये से अधिक होती है, तो अडवांस टैक्स देना जरूरी है
देरी होने पर ब्याज लगता है।
अगर आप किसी फ्रीलांसर को हायर करते हैं, तो Section 194C लागू होगा।
गलती से बचने के लिए Form 26AS और AIS जरूर चेक करें।
फ्रीलांसर्स को ITR चुनते समय सावधानी रखनी होती है:
गलत फॉर्म से रिटर्न रिजेक्ट हो सकता है, इसलिए ऐसे सॉफ्टवेयर या पोर्टल का उपयोग करें जो ऑटोमेटिक गाइड करें। GST को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
ब्लॉगिंग, डिजाइनिंग, डिजिटल सर्विस, सब GST के दायरे में आते हैं। बजट 2025 में इस पर बड़ा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन कंप्लायंस सख्त जरूर हुआ है। पार्ट-टाइम कमाने वालों में कई लोग इसे हॉबी-इनकम समझकर छोड़ देते हैं, लेकिन यदि यह रेगुलर इनकम है, तो GST applicability जांचना जरूरी हो जाता है।