प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
अमेरिकी प्लेटफॉर्म उदाहरण के लिए व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक (मेटा) और एक्स का भारत के डिजिटल क्षेत्र में दबदबा है। करोड़ों लोग इनका इस्तेमाल करते हैं, इसके बावजूद इनका अधिकांश आर्थिक मूल्य विदेश चला जाता है। अगर प्रति उपयोगकर्ता राजस्व का अनुमान लगाया जाए तो मेटा के 90 करोड़ भारतीय उपभोक्ता ही करीब 45 अरब डॉलर सालाना का आर्थिक मूल्य तैयार करते हैं। गूगल, एमेजॉन और माइक्रोसॉफ्ट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भारत की डिजिटल मौजूदगी का मूल्य 100 अरब डॉलर से अधिक है जो विदेश जा रहा है।
इसके विपरीत चीन ने शुरुआती दौर में ही विदेशी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और अलीबाबा, टेनसेंट, बायडू, वीबो और बाइटडांस जैसी स्वदेशी कंपनियां विकसित कीं। ऐसा करके उसने 1.4 अरब उपयोगकर्ताओं से जुड़े मूल्य को अपने देश में बनाए रखा। आज बाइटडांस (155 अरब डॉलर) और अलीबाबा (137 अरब डॉलर) जैसी कंपनियां रिलायंस और टाटा जैसे भारत के सबसे बड़े कारोबारी घरानों को टक्कर दे रही हैं। अगर भारत ने शासन और समावेशन के लिए तकनीक पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय उसी दिशा में कदम बढ़ाया होता जैसा कुछ अन्य देशों ने किया, तो आज जो राजस्व, नौकरियां और नवाचार विदेश में केंद्रित हैं, वे भारत की अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते थे।
अर्थशास्त्र से इतर उपयोगकर्ताओं के डेटा पर नियंत्रण भी एक बड़ी रणनीतिक ताकत है। आंकड़े उन सामाजिक रुझानों और राजनीतिक मिजाज के बारे में बताते हैं जो बाजार और लोकतंत्र को आकार देते हैं। कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल बताता है कि कैसे फेसबुक के आंकड़े चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं जबकि गूगल और एमेजॉन डेटा का इस्तेमाल आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और वाणिज्य पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए करते हैं।
यहां तक कि व्हाट्सऐप द्वारा अमेरिकी एजेंसियों को कथित रूप से पिछले दरवाजे से पहुंच मुहैया कराने की खबरें भी भारत की संप्रभुता को लेकर गंभीर चिंताएं उत्पन्न करती हैं। भारत, जहां लगभग एक अरब इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, उसके लिए अपने डेटा पर संप्रभुता सुनिश्चित करना केवल आर्थिक लक्ष्य नहीं, बल्कि डिजिटल स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा का एक मूल स्तंभ है।
चीन की सरकार नियंत्रित व्यवस्था के उलट भारत में इंटरनेट पूरी तरह खुला और वैश्विक संपर्क वाला है। चीन की राज्य-नियंत्रित फायरवॉल प्रणाली के विपरीत, भारत एक खुला और वैश्विक रूप से जुड़ा हुआ इंटरनेट संचालित करता है। ग्रेट फायरवॉल जैसा मॉडल न तो भारत के लोकतंत्र के अनुकूल है, और न ही उन करोड़ों भारतीयों के लिए जो पहले से वैश्विक प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय हैं। भारत का मार्ग प्रतिस्पर्धा का होना चाहिए, न कि बंदीकरण का। ऐसा मार्ग जिसमें स्थानीय रूप से विकसित प्लेटफॉर्म बनाए जाएं जो उपयोगकर्ताओं को उनकी पसंद से आकर्षित करें, और ऐसा नवाचार, सुरक्षा, और स्थानीय प्रासंगिकता के आधार पर हो।
भारत की सबसे बड़ी चुनौती उन वैश्विक डिजिटल प्लेटफार्म्स के शक्तिशाली नेटवर्क प्रभावों में निहित है, जहां उपयोगकर्ताओं को उसी प्लेटफॉर्म पर बने रहने से अधिक लाभ मिलता है। यही बात नए प्रतिस्पर्धियों के लिए रास्ता बंद कर देती है। फिर भी, पिछले एक दशक में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया है जब जोमैटो, जोहो, पेटीएम, फोनपे और रेजरपे जैसी भारतीय मूल की डिजिटल कंपनियों ने उभरकर अपनी पहचान बनाई है। इन सफलताओं से स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत के डिजिटल उद्यम अब वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती देने और डिजिटल अर्थव्यवस्था की शीर्ष पंक्ति में अपनी जगह बनाने के लिए तैयार हैं। आज कई शक्तियां एक साथ मिलकर इस परिवर्तन को वास्तविकता में बदलने की दिशा में काम कर रही हैं।
भारत के 90 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के रूप में मौजूद भारी भरकम डिजिटल आधार पर काफी ध्यान केंद्रित है लेकिन वास्तविक कहानी तो इसके आगे है। अगले एक दशक में 50 करोड़ और भारतीय ऑनलाइन होंगे क्योंकि आय, शिक्षा और संपर्क सभी बढ़ रहे हैं। यह अगली लहर भारतीय कंपनियों के लिए एक विशाल और अब तक अप्रयुक्त बाजार का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे वे स्थानीयकृत, किफायती और सांस्कृतिक रूप से अनुकूल समाधान के माध्यम से हासिल कर सकती हैं।
जैसे-जैसे स्थानीय प्लेटफॉर्म्स का विस्तार हो रहा है, वे उन उपयोगकर्ताओं को आकर्षित कर रहे हैं जो पहले वैश्विक प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर थे। यह बदलाव अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। उदाहरण के लिए, नायिका ने नव-धनाढ्य, नई पीढ़ी के ब्रांड-प्रेमी उपयोगकर्ताओं को वैश्विक ई-कॉमर्स दिग्गजों से अपनी ओर खींचा है। भारत की भाषाई विविधता जो एक समय डिजिटलीकरण को अपनाने में बाधा थी, अब वह एक रणनीतिक बढ़त है। घरेलू प्लेटफॉर्म वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ सकते हैं। स्थानीय भाषाओं और सांस्कृतिक सामग्री को लेकर भारतीय स्टार्टअप्स उन बाजारों तक पहुंच सकते हैं जो अब तक अनछुए हैं।
वर्षों से डिजिटल दबदबा नेटवर्क प्रभाव पर निर्भर रहा। ज्यादा उपयोगकर्ताओं का मतलब था बेहतरीन प्लेटफॉर्म। वह तर्क अब खत्म हो रहा है। एआई अब पैमाने पर सीख को तरजीह देता है। जैसा कि अमेरिकी अर्थशास्त्री हाल वैरियन ने 2019 में कहा था, एआई बेहतर आंकड़ों से खुद में सुधार करता है न कि सिर्फ संख्याओं से।
बोस्टन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेम्स बेस्सेन ने दिखाया है कि ओपन-सोर्स एआई ने स्टार्टअप्स के लिए अपनाने की बाधाओं को कम कर दिया है। इस युग में लाभ अब डेटा की गहराई और विविधता तथा एल्गोरिदम की रचनात्मकता से प्राप्त होता है। भारत की विस्तृत, युवा और विविध जनसंख्या के कारण उसके पास सबसे समृद्ध उपयोगकर्ता डेटा सेट्स में से एक है, और वह इस बदलाव का लाभ उठाने के लिए सर्वोत्तम स्थिति में है। जहां पैमाने से बुद्धिमत्ता की ओर, और नेटवर्क से ज्ञान की ओर बदलाव हो रहा है।
कुछ दशक पहले भारत के डिजिटल स्टार्टअप्स वैश्विक स्तर हासिल करने के लिए जरूरी निवेशक जुटाने में संघर्ष करते थे। आज देसी कंपनियों ने साबित किया है कि वे नवाचार कर सकती हैं, बड़े पैमाने पर काम कर सकती हैं और एक परिपक्व व्यवस्था में प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं। यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस यानी यूपीआई, आधार और ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स ने उद्यमिता के लिए एक मजबूत बुनियाद पैदा की है। यह भारत के लिए उपयुक्त समय है कि वह नए वैश्विक डिजिटल प्लेटफॉर्म तैयार करे। देश की नई पीढ़ी साहसी है, जोखिम लेने वाली है और महत्त्वाकांक्षी भी है। जेनजी का आत्मविश्वास और रचनात्मकता नवाचार को बढ़ावा दे रही है और भारत दुनिया के बेहतरीन डिजिटल उपक्रम तैयार कर रहा है।
ये रुझान भारत से उत्पन्न होने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की बात को मजबूती देते हैं। सरकार इसे बढ़ावा दे सकती है। दो करोड़ से अधिक कर्मचारियों वाला भारत का सरकारी क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े संगठित उपभोक्ता समूहों में से एक है। अगर ये आंशिक तौर पर भी भारतीय प्लेटफॉर्म को अपनाएं तो जबरदस्त प्रभाव पैदा हो सकता है।
भारत अपनी डिजिटल यात्रा के एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है जहां वह दुनिया के सबसे बड़े उपयोगकर्ता आधार से आगे बढ़कर डिजिटल शक्ति का प्रमुख उत्पादक बनने की दिशा में अग्रसर है। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान (एनआईसी) द्वारा सभी ‘गव डॉट इन’ ईमेल और डेटा को जोहो के भारतीय सर्वरों पर होस्ट करने का निर्णय, या अरट्टई को मेसेंजर ऐप के रूप में अपनाना, डिजिटल संप्रभुता की दिशा में एक निर्णायक कदम है। एक आत्मविश्वासी नई पीढ़ी के नवप्रवर्तकों के साथ, भारत के पास आत्मविश्वास है, जिससे वह अपनी डिजिटल नियति को रचनात्मकता के साथ आकार दे सकता है।