प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
केंद्रीय बजट 2026-27 से पहले, देश को औद्योगिक घरानों ने सरकार से आग्रह किया है कि नए आयकर अधिनियम के तहत कंपनी के कारोबार को अलग करने की प्रक्रिया (डिमर्जर) को कर मुक्त बनाया जाए, विशेष तौर पर उन मामलों में जिनमें सहयोगी कंपनियों में 25 प्रतिशत या उससे अधिक शेयरधारिता वाले निवेशों का हस्तांतरण शामिल है। एक सूत्र के अनुसार, इससे संभवतः कुछ कंपनियों को 2026 में सार्वजनिक सूचीबद्धता की योजना बनाने में मदद मिल सकती है।
उद्योग प्रतिनिधियों का मानना है कि इन मुद्दों पर स्पष्टता बनने से कारोबार करने में आसानी होगी, इससे कंपनियों के वैध पुनर्गठन को बढ़ावा मिलेगा और भविष्य में कर विवाद भी कम होंगे। उन्होंने सरकार को बताया है कि भारतीय व्यापारिक समूहों ने ऐतिहासिक रूप से बड़ी नए संयंत्र लगाने वाली परियोजनाओं की फंडिंग करने के लिए अपनी सूचीबद्ध परिचालन कंपनियों पर भरोसा किया है। नियामकों के मुताबिक कई क्षेत्रों में कुछ कारोबारों को मुख्य परिचालन इकाई के अंतर्गत चलाने के बजाय अलग-अलग कंपनियों के माध्यम से चलाने की आवश्यकता होती है। इस चर्चा से वाकिफ एक व्यक्ति ने कहा, ‘इन उपक्रमों को निवेश के रूप में रखा जाता है और कारोबार को अलग करने के नियमों में इन्हें भी निवेश की तरह ही माना जाना चाहिए।’
मौजूदा कानून के तहत, कंपनी के विभाजन में ‘व्यावसायिक उपक्रम’ का हस्तांतरण शामिल होना चाहिए। हालांकि, कंपनी के विभाजन में केवल रणनीतिक निवेश शामिल होते हैं मसलन सहयोगी कंपनियों में इक्विटी हिस्सेदारी और इसमें स्वीकार नहीं किए जाने का जोखिम भी होता है क्योंकि केवल निवेश को अक्सर प्रावधान के उद्देश्य से ‘उपक्रम’ नहीं माना जाता है। उद्योग का तर्क है कि भारत में कंपनियों को मजबूत करने और इक्विटी लेखांकन मानकों के बावजूद, कानून स्पष्ट रूप से ऐसे निवेश विभागों को ‘उपक्रम’ के रूप में मान्यता नहीं देता है, जिसका नतीजा मुकदमेबाजी और अनिश्चितता की स्थिति बननी होती है।
औद्योगिक घरानों ने आयकर अधिनियम में संशोधन की भी मांग की है ताकि सहायक या सहयोगी कंपनी में व्यावसायिक नुकसान को बढ़ने से बचाया जा सके, खासतौर पर जहां अदालत द्वारा मंजूर किए गए कंपनी के विभाजन के कारण शेयरधारिता 49 प्रतिशत से अधिक बदल जाती है।