facebookmetapixel
पीएम मोदी इस साल UNGA भाषण से होंगे अनुपस्थित, विदेश मंत्री जयशंकर संभालेंगे भारत की जिम्मेदारीस्विगी-जॉमैटो पर 18% GST का नया बोझ, ग्राहकों को बढ़ सकता है डिलिवरी चार्जपॉलिसीधारक कर सकते हैं फ्री लुक पीरियड का इस्तेमाल, लेकिन सतर्क रहेंGST 2.0: छोटे कारोबारियों को 3 दिन में पंजीकरण, 90% रिफंड मिलेगा तुरंतSwiggy ऐप पर अब सिर्फ खाना नहीं, मिनटों में गिफ्ट भी मिलेगाGST कटौती के बाद छोटी कारें होंगी 9% तक सस्ती, मारुति-टाटा ने ग्राहकों को दिया फायदा48,000 करोड़ का राजस्व घाटा संभव, लेकिन उपभोग और GDP को मिल सकती है रफ्तारहाइब्रिड निवेश में Edelweiss की एंट्री, लॉन्च होगा पहला SIFएफपीआई ने किया आईटी और वित्त सेक्टर से पलायन, ऑटो सेक्टर में बढ़ी रौनकजिम में वर्कआउट के दौरान चोट, जानें हेल्थ पॉलिसी क्या कवर करती है और क्या नहीं

चीन की कमजोरी अच्छा संकेत नहीं

अगर अमेरिकी राष्ट्रपति थोड़ा झुक जाते हैं तो भी विश्व अर्थव्यवस्था के सामने कठिनाइयां बनी रहेंगी। चीन की कमजोरी अच्छे संकेत नहीं देती है। बता रहे हैं

Last Updated- April 30, 2025 | 10:23 PM IST
China Flag
प्रतीकात्मक तस्वीर

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के ‘लिबरेशन डे’ की घोषणा के बाद से पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय संबंधों और आर्थिक शासन को लेकर चर्चाओं में व्यस्त है। अमेरिका ने जो टैरिफ लगाया है और चीन ने जो जवाबी टैरिफ लगाया उसके चलते दोनों देशों के बीच कारोबारी जंग के हालात बन गए और बाकी दुनिया के देशों में भी काफी उथलपुथल की स्थिति बन गई। अब जबकि इस शुल्क का अमेरिकी उपभोक्ताओं और कारोबार पर असर दिखने लगा है तो ट्रंप प्रशासन को घरेलू स्तर पर नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। अभी भी इस बात की संभावना है कि शायद चीन को रियायत देने की जगह नए टैरिफ को ही वापस ले लिया जाए। अगर अमेरिका टैरिफ को वापस लेता है तो कई लोग इसे चीन की जीत के रूप में देखेंगे। परंतु कहीं अधिक गहराई में कहानी ज्यादा जटिल है। अगर हम एक अप्रैल, 2025 के पहले की कारोबारी यथास्थिति को भी बहाल करते हैं तो चीन इस पूरे प्रकरण से बहुत कमजोर होगा। यह बात न केवल शेष विश्व बल्कि भारत के लिए भी बहुत अधिक प्रभावित करने वाली होगी।

इस कारोबारी जंग के शुरू होने के पहले ही चीन की अर्थव्यवस्था में दिक्कत शुरू हो चुकी थी। 2012 के बाद से ही राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सत्ता का केंद्रीकरण किया और तंग श्याओफिंग की राजनीतिक आधुनिकीकरण की उस परियोजना को रोक दिया जिसे 1978 से ही आगे बढ़ाया जा रहा था। लोकलुभावन भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का इस्तेमाल सत्ता पर काबिज रहने और तत्कालीन कुलीनों को समाप्त करने के लिए किया गया। निजी क्षेत्र के विरुद्ध सख्त कदम उठाए गए। अलीबाबा और टेंसेंट जैसी टेक क्षेत्र की कंपनियों के विरुद्ध की गई कार्रवाई इसका उदाहरण हैं। निजी ट्यूशन क्षेत्र को समाप्त कर दिया गया और प्रभावशाली उद्यमियों को गिरफ्तार किया गया। एक पार्टी के शासन और वफादारी की मांग आदि निजी क्षेत्र का भरोसा बढ़ाने वाले कदम नहीं हैं। राज्य की मनमानी शक्ति और राष्ट्रवाद के बीच कुलीनों का भरोसा कम होने के साथ ही भारी तेजी का दौर खत्म हो गया। चीन की सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान कई अहम गलतियां कीं। उसने 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का समर्थन किया। राष्ट्रवाद पर जोर देते हुए उसने 2017 और 2020 में भारत के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया। इन सबके बीच तीसरे वैश्वीकरण की स्थिति बनी जहां चीन के आर्थिक राष्ट्रवाद से जुड़े खराब व्यवहार के कारण उसके खिलाफ समन्वित कदम उठाने की शुरुआत हुई।

चीन की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अचल संपत्ति की पोंजी स्कीम का था जहां लाखों परिवारों ने आंख मूंदकर अचल संपत्ति खरीदी क्योंकि उन्हें यकीन था कि उनकी कीमतें जरूर बढ़ेंगी। यह क्षेत्र आर्थिक वृद्धि पर एक बोझ बन गया है। महत्त्वपूर्ण अचल संपत्ति डेवलपर दिवालिया होने के कगार पर हैं क्योंकि हजारों मकान खाली पड़े हैं या अधूरे हैं। ऐसे में स्थानीय सरकारों के राजस्व, जो जमीन पर निर्भर है, उसमें कमी आई और स्थानीय सरकारों के सामने वित्तीय संकट है। उम्रदराज होती आबादी और बढ़ती पेंशन देनदारी के कारण राजकोषीय समस्या को संभालना मुश्किल हो गया। अगर सरकार राजकोषीय दायित्वों को पूरा करने के लिए कर बढ़ाती है तो पहले ही मुश्किलों से जूझ रहा आवास बाजार और दिक्कतों में आ जाएगा। अगर सरकार अचल संपत्ति के दिग्गजों को उबारने का प्रयास करती है तो यह पहले से ही कमजोर अपनी राजकोषीय हालत को और खस्ता करने वाला कदम होगा। अचल संपत्ति चीन के लोगों की व्यक्तिगत संपत्ति का बड़ा हिस्सा है, इसलिए ये घटनाएं उसकी कीमतों पर और अंतत: खपत पर विपरीत असर डालेंगी। इस विषयांतर का लक्ष्य इस बात पर जोर देना है कि टैरिफ युद्ध चीन के लिए अहम है लेकिन वे अर्थव्यवस्था में गहराई से जड़े जमाए बैठी समस्याओं में ताजा बढ़ोतरी मात्र हैं जो शी चिनफिंग के नेतृत्व में राजनीतिक व्यवस्था में आए क्षरण से जुड़ी हैं।

आशावादी दृष्टिकोण से बात करते हैं जहां प्रतिक्रिया स्वरूप अपनाई गई व्यापार नीति दुनिया को नुकसान नहीं पहुंचाती और जहां अमेरिका में बढ़ती कीमतों के परिणामस्वरूप ट्रंप अचानक पीछे हट जाते हैं। क्या यह चीन के लिए जीत और इस देश में आशावाद की वापसी होगी? नहीं ऐसा नहीं है। अमेरिका को होने वाले निर्यात में अगर एक या दो महीने तक गिरावट आती है तो उसका अपना नुकसान है। वैश्विक वार्ताकारों के मुताबिक चीन के सामने अब अधिक मुश्किल हालात हैं। उदाहरण के लिए चीन द्वारा दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर रोक लगाने से निश्चित रूप से दूसरे देश चीन मुक्त आपूर्ति शृंखला बनाने के प्रयास करेंगे। उदाहरण के लिए ऐपल ने हाल ही में कहा कि अमेरिका में बेचे जाने वाले सभी आईफोन चीन में सब असेंबली के बाद अंतिम तौर पर तैयार करने के लिए भारत भेजे जाएंगे।

भारत के लिए इसका क्या अर्थ है? एक हद तक वैश्विक कंपनियों के लिए चीन प्लस 1 की रणनीति और चीन प्लस अमेरिका प्लस 1 की रणनीति भारत के अनुकूल रहेगी। इसका लाभ लेने के लिए भारत में हमें नीतिगत ढांचे में सुधार करना होगा ताकि हम वैश्वीकरण के लाभ ले सकें और अपने निजी क्षेत्र के लिए अधिक सुरक्षा हासिल कर सकें। वैश्विक उत्पादन व्यवस्था में उथलपुथल और चीन की अर्थव्यवस्था का पराभव वैश्विक वृद्धि पर असर डालेगा जो भारत को भी प्रभावित करेगा। भारत द्वारा चीन को किए जाने वाले निर्यात में जैविक रसायन, अयस्क, कपास और मशीनरी आदि शामिल हैं। ये क्षेत्र सीधे प्रभावित होंगे। आखिर में, चीन द्वारा अपने वृहद आर्थिक हालात को सुधारने की कोशिश में  एक अहम समस्या यह है कि सरकार सब्सिडी प्राप्त कारखानों द्वारा दुनिया भर में माल बेचने के माध्यम से ऐसा करने की कोशिश कर रही है। यह प्रत्यक्ष रूप से भारत में बेचे जाने वाले चीनी सामान या भारतीय निर्यात केंद्रों को बेचे जाने वाले चीनी सामान की दृष्टि से ज्यादा अहम बात होगी।

घरेलू स्तर पर चीन के तर्ज पर आयात प्रतिस्थापन, प्रत्यक्ष ऋण, सरकारी औद्योगिक नीति और सरकारी सब्सिडी आदि सभी का प्रतिरोध किया जाना चाहिए। प्रथम दृष्टया ये उपाय आकर्षक लगते हैं लेकिन ये आर्थिक विकास नहीं मुहैया कराते। इसके बजाय भारत को ऐसे उपाय अपनाने चाहिए जिनकी बदौलत वह नियामकीय अनिश्चितता कम कर सके, अनुबंधों का प्रवर्तन बढ़ा सके और निजी निवेश के लिए स्थिर माहौल तैयार कर सके। विदेशी कंपनियों को ध्यान में रखते हुए भारत को अपने यहां नियम आधारित, निवेशकों के अनुकूल नीतियां तैयार करनी चाहिए। इतना ही नहीं वित्तीय और वृहद नीतियों के मामले में भी भारत को चाहिए कि इनके जरिये एक तरल और सक्षम वित्तीय बाजार व्यवस्था तैयार कर सकें और वृहद आर्थिक स्थिरता कायम की जा सके।

जन संचार माध्यम जीत और हार के नाटक में आनंद लेता है। यदि ट्रंप चीन को कोई रियायत देने की जगह पीछे हटते हैं तो इसे अमेरिका पर चीन की जीत बताया जाएगा। हकीकत कहीं अधिक जटिल है। टैरिफ की जंग के नतीजे कुछ भी हों, चीन ढांचागत रूप से कमजोर है और कमजोर चीन वैश्विक माहौल को और कठिन बनाता है। भारत में हमें व्यापार नीति, वृहद अर्थव्यवस्था, वित्त और संस्थागत सुधारों के क्षेत्र में सरकार के स्तर पर क्षमता हासिल करनी होगी।

(लेखक क्रमश: एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता, और ट्रस्टब्रिज रूल ऑफ लॉ फाउंडेशन की सीईओ हैं)

First Published - April 30, 2025 | 10:13 PM IST

संबंधित पोस्ट