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नौकरी गंवाने का सिलसिला जारी रहने के आसार

Last Updated- December 15, 2022 | 2:32 AM IST

अगस्त के साप्ताहिक आंकड़ों से ऐसा संकेत मिलता है कि इस महीने में कामगारों की हालत काफी बिगड़ी है। सभी तीनों मापदंडों- श्रम भागीदारी दर, बेरोजगारी दर और रोजगार दर में गिरावट दर्ज की गई है। अप्रैल की तीव्र गिरावट के बाद अगले तीन महीनों में लगातार रोजगार की संख्या बढ़ी थी लेकिन अगस्त का महीना रोजगार में गिरावट के संकेत दे रहा है।
श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) 30 अगस्त को समाप्त सप्ताह में गिरकर 39.5 फीसदी पर आ गई जो मध्य जून के बाद का निम्नतम स्तर है। लॉकडाउन की शुरुआत होने के पहले मार्च में एलपीआर 42-43 फीसदी पर थी। वित्त वर्ष 2019-20 में औसत एलपीआर 42.7 फीसदी थी। लेकिन अप्रैल में आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप रहने से यह नाटकीय रूप से गिरकर 35.6 फीसदी रह गई। हालांकि उसके बाद से इसमें सुधार देखा गया। मई में यह थोड़े सुधार के साथ 38.2 फीसदी और जून में 40.3 फीसदी पर पहुंच गई। लेकिन जून के आखिर में यह सुस्त पडऩे लगी और जुलाई के महीने में इसका असर भी दिखा। जुलाई में एलपीआर मामूली सुधार के साथ 40.7 फीसदी दर्ज की गई।
अगस्त में सिर्फ एक हफ्ते की असामान्य बढ़त को छोड़कर बाकी समय एलपीआर में गिरावट ही रही है। 30 अगस्त तक 30 दिनों का गतिमान माध्य 40.7 फीसदी रहा। संभावना है कि अगस्त का एलपीआर जुलाई के स्तर से थोड़ा कम ही रहेगा या फिर उसी स्तर पर टिका रह सकता है। जुलाई स्तर की तुलना में इसमें सुधार की संभावना तो नहीं ही दिख रही है।
अगस्त में बेरोजगारी दर के भी जुलाई के 7.5 फीसदी स्तर से कम होने के आसार कम ही हैं। बेरोजगारी दर के साप्ताहिक आंकड़ों में अगस्त में कुछ हद तक उठापटक रही है। पहले दो हफ्तों में बेरोजगारी दर क्रमश: 8.7 फीसदी और 9.1 फीसदी रही। तीसरे हफ्ते में यह 7.5 फीसदी पर आ गई लेकिन अंतिम हफ्ते में फिर से 8.1 फीसदी की ऊंचाई पर जा पहुंची। इस तरह अगस्त में औसत बेरोजगारी दर 8.3 फीसदी रही है। अगस्त में बेरोजगारी दर का 30 दिनों का गतिमान माध्य भी 8.3 फीसदी ही है।
बेरोजगारी दर के ये आंकड़े जुलाई 2020 में दर्ज 7.4 फीसदी के स्तर से खासे अधिक हैं। इस तरह पूरी आशंका है कि अगस्त में निम्न श्रम भागीदारी दर के साथ-साथ बढ़ी हुई बेरोजगारी दर की दोहरी मार पड़ी है।
इसका परिणाम रोजगार दर में गिरावट के रूप में सामने आया है। रोजगार दर भारत जैसे देश के लिए श्रम बाजार का सबसे अहम संकेतक है। यह बेरोजगारी दर से भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। बेरोजगारी दर का आशय रोजगार करने के इच्छुक लेकिन रोजगार पाने में असमर्थ लोगों के अनुपात से है। यह अनुपात काम करने के इच्छुक लोगों की संख्या रूपी विभाजक पर निर्भर करता है। बेरोजगारी दर इस विभाजक में होने वाले बदलाव के बारे में कुछ भी बताने में असमर्थ होती है। भारत में समस्या यह है कि बहुत कम लोग ही वास्तव में काम करने के इच्छुक हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मॉडल पर आधारित अनुमानों के मुताबिक वर्ष 2019 में वैश्विक रोजगार दर 57 फीसदी थी। उसी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में रोजगार दर 47 फीसदी रही थी। पश्चिम एशिया के बाहर के बाहर महज तुर्की, इटली, ग्रीस एवं दक्षिण अफ्रीका की ही हालत भारत से खराब रही थी।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर निगरानी रखने वाली संस्था सीएमआईई के सीपीएचएस के मुताबिक 2019-20 में भारत की रोजगार दर आईएलओ के अनुमानों से कहीं अधिक खराब थी। इसने 39.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। आईएलओ के आंकड़े सरकारी आंकड़ों पर निर्भर होते हैं और रोजगार को परिभाषित करने में काफी नरम होते हैं। वहीं सीएमआईई के अनुमान अधिक सख्त, कम मनमाने एवं मन को सुकून देने वाले होते हैं।
रोजगार दर हमें वास्तव में काम में लगी कामकाजी उम्र वाली जनसंख्या के अनुपात के बारे में बताती है। यह अनुपात 30 अगस्त को समाप्त सप्ताह में गिरकर 36.3 फीसदी पर आ गया। इसके पहले के दस हफ्तों में यह सबसे कम रोजगार दर है। इन दस हफ्तों में औसत रोजगार दर 37.7 फीसदी रही और इसका दायरा 36.9 फीसदी से लेकर 38.4 फीसदी रहा। अगस्त के अंतिम हफ्ते में रोजगार दर के 36.3 फीसदी पर आना चिंताजनक है। यह आर्थिक गतिविधियों के पटरी पर लौटने की प्रक्रिया में थकान आने का संकेत देता है। हमने जून में भी रोजगार दर का सुधार बंद हो जाने पर इस बारे में चिंता व्यक्त की थी। अब हमें इसकी फिक्र  है कि कहीं रोजगार दर में फिसलन तो नहीं है।
अगस्त में रोजगार दर का 30 दिवसीय गतिमान माध्य महीने की शुरुआत से ही गिरावट पर रहा। 30 अगस्त आने तक यह 37.3 फीसदी पर आ गया। अगर अगस्त के आंकड़े इसी स्तर पर बंद होते हैं तो इसका मतलब यही होगा कि जुलाई की तुलना में अगस्त में रोजगार घटे हैं।
साप्ताहिक अनुमानों के औसत आंकड़े के बजाय मासिक अनुमान कहीं अधिक ठोस होते हैं। इसकी वजह यह है कि मासिक अनुमान गैर-प्रतिक्रिया के हिसाब से समायोजित होते हैं। लेकिन अगर गैर-प्रतिक्रिया का वितरण भौगोलिक रूप से समान है तो पूरी संभावना है कि साप्ताहिक अनुमानों का औसत मासिक अनुमानों का एक वाजिब संकेतक है।
ऐसी स्थिति में हमें जुलाई 2020 की तुलना में अगस्त में 35 लाख रोजगारों की गिरावट देखने को मिल सकती है। मई के बाद से रोजगार में कमी का यह पहला मौका होगा और इससे 2019-20 में औसत रोजगार के बीच फासला बढ़कर 1.4 करोड़ हो जाएगा।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)

First Published - September 6, 2020 | 11:19 PM IST

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