कर अधिकारियों ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित मामलों में करदाताओं को कारण बताओ नोटिस भेजना शुरू कर दिया है। सोमवार को इस समाचार पत्र ने खबर प्रकाशित की थी कि कंपनियों और पार्टनरशिप कंपनियों को 50,000 नोटिस जारी किए जा चुके हैं। इनमें ज्यादातर कंपनियां आभूषण और रियल एस्टेट क्षेत्र से जुड़ी हैं। नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली लागू होने के बाद पहली बार व्यापक जांच शुरू हुई थी और ये कारण बताओ नोटिस इसी का नतीजा हैं। कर अधिकारी पहले दो वर्षों में हुए कर भुगतान पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कर अधिकारी बाद के वर्षों में जमा रिटर्न की भी जांच पड़ताल कर रहे हैं।
कर अधिकारियों ने ये नोटिस जारी करने के पीछे कई कारण गिनाए हैं जिनमें करों का भुगतान नहीं किया जाना, रिटर्न में गलत जानकारियां देना, वस्तु एवं सेवा का गलत वर्गीकरण और वस्तुओं की खरीद-बिक्री में तालमेल नहीं होना शामिल हैं। इस बात की पूरी आशंका है कि कुछ कंपनियों और कारोबारों ने कानून सम्मत रिटर्न दाखिल नहीं किए हैं। मगर जितनी बड़ी संख्या में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं वे कई कारणों से चिंता का विषय हैं।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि कुछ खास क्षेत्रों की कंपनियों को ही नोटिस जारी किए गए हैं। जांच आगे बढ़ने पर ऐसे नोटिसों की संख्या और बढ़ सकती है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि कर अधिकारी इतने नोटिसों के बाद की कवायद से निपट सकते हैं या नहीं। एक अहम बात यह भी है कि ये नोटिस केंद्रीय जीएसटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत जारी किए गए हैं। ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि राज्यों ने भी कर अंकेक्षण शुरू कर दिए हैं और यह लगभग तय है कि राज्यों के पास भी कुछ सवाल होंगे।
जीएसटी संग्रह में कमी की भरपाई का प्रावधान अब समाप्त हो चुका है, इसलिए राज्यों पर अधिक से अधिक कर जुटाने का दबाव बढ़ गया है। कर संग्रह में कमी और राज्यों पर अधिक से अधिक राजस्व जुटाने का दबाव बढ़ने से करदाताओं को प्रताड़ित किए जाने के मामले बढ़ सकते हैं। इससे कानूनी विवाद भी बढ़ सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीएसटी व्यवस्था काफी पेचीदा है और इसमें दरों की कई श्रेणियां हैं। शुरुआती दिनों में यह व्यवस्था लागू करने में भी कई अड़चनें आई थीं। इन अड़चनों की वजह से भी रिटर्न दाखिल करने में कई तरह की उलझनें आई होंगी।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य स्तर पर कर अधिकारियों को करदाताओं से सवाल करते समय अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि करदाताओं को कर चुकाने वालों का पीछा नहीं करना चाहिए, बस उन्हें उन परिस्थितियों का ध्यान रखना चाहिए जिनमें नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था लागू की गई थी। केवल नोटिस भेजने से ऐसे मामलों का समाधान नहीं हो सकता है और न ही इनसे अधिक राजस्व जमा हो पाएगा। ऐसे में कर अधिकारियों को कम से कम शुरुआती वर्षों में सावधानी से कदम बढ़ाना चाहिए ताकि करदाताओं को किसी तरह की परेशानी न हो। इससे कर अधिकारियों को भी पर्याप्त तंत्रगत क्षमता तैयार करने में मदद मिलेगी।
जीएसटी परिषद को भी कर व्यवस्था को और सरल बनाने पर ध्यान देना चाहिए। जीएसटी परिषद की हालिया बैठक में कुछ बातों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने और कार्रवाई शुरू करने के लिए मौद्रिक सीमा बढ़ाए जाने से जुड़ी अच्छी पहल की गई थी। हालांकि बैठक में अपील न्यायाधिकरण बनाने पर आई रिपोर्ट पर चर्चा नहीं हो पाई। अपील न्यायाधिकरण के गठन का रास्ता यथाशीघ्र साफ होना चाहिए। इससे न केवल करदाताओं को आसानी होगी बल्कि कर प्रणाली दुरुस्त बनाने में भी मदद मिलेगी। दरें भी सरल बनाई जानी चाहिए। दरें सरल होने से जीएसटी व्यवस्था तो आसान होगी ही, साथ ही राजस्व संग्रह भी बढ़ेगा और कर प्रशासन पर भी दबाव कम हो जाएगा।