क्या यह हैरान करने वाली बात नहीं है कि आर्थिक और वित्तीय अनुमानों का बहुत ही भयावह रिकॉर्ड रहा है। फिर भी मीडिया वर्ष के शुरू में आर्थिक विकास और साल के अंत तक बाजारों का प्रदर्शन कैसा रहेगा, इस पर दर्जनों अनुमान प्रकाशित करता है। अनुमान लगाना अमेरिका में ज्यादा औपचारिक और सुव्यवस्थित व्यापार है। लिहाजा इसमें हमें मूर्खताभरे अनुमान लगाने के ज्यादा उदाहरण मिलते हैं।
वर्ष 2023 के लिए अमेरिका को लेकर आम राय यह थी कि एसऐंडपी 500 में गिरावट आएगी लेकिन यह 24.2 प्रतिशत बढ़ा और नैसडेक 500 भी 50 फीसदी से अधिक चढ़ गया। चीन के शेयर बाजारों में कोविड में गिरावट के बाद तेजी आने की उम्मीद थी लेकिन वे गिरावट का शिकार हो गए। अमेरिका में मंदी के अनुमानों को लेकर चौतरफा पीटा जा रहा ढोल फट गया और उसका सकल घरेलू उत्पाद जोरदार तरीके से बढ़ा।
फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने से उपभोक्ता खर्च और व्यापार वृद्धि में धीमेपन की संभावना जताई गई थी लेकिन इसके बजाय अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ती गई, ब्याज दरों में गिरावट आई और शेयर बाजार चढ़ते गए। दूसरी तरफ आर्टिफिशल इंटेलिजेंस में हुए अनुसंधानों में उल्लेखनीय सफलताओं ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी शेयरों में अप्रत्याशित तेजी को हवा दे दी।
बाजार और अर्थव्यवस्थाओं की प्रकृति जटिल है और वे उभरती तथा बदलती रहती हैं। वे स्थिर नहीं है। इसलिए उनका व्यवहार कैसा होगा, इस बारे में भविष्यवाणी करना निश्चित तौर पर गलत या फिजूल साबित होता है क्योंकि नई घटनाएं एक दूसरे को प्रभावित करने वाली प्रक्रिया शुरू कर देती हैं जिससे अप्रत्याशित नतीजे मिलते हैं लेकिन उस स्थिति में क्या होगा जब आर्थिक वृद्धि के चालक लंबे समय तक बने रहें? तब क्या भविष्यवाणी भी ज्यादा सटीक होगी?
उदाहरण के लिए वर्ष 2014 से 2021 के बीच (2019 में अचानक की गई कर कटौती को छोड़कर) आर्थिक मोर्चे पर चौंकाने वाली चुप्पी के बाद मोदी सरकार ने अचानक विकास के कई इंजन एक साथ शुरू कर दिए और परिवर्तन की आर्थिक शक्तियों को नियंत्रण मुक्त किया। ऐसा भारत में शायद ही कभी देखा गया होगा। इससे संभवतया लंबी अवधि के परिणामों के बारे में भविष्यवाणी करना ज्यादा आसान है। लेकिन तब तक जब तक कि नीतियां बरकरार रहें और उन पर वास्तविक रूप से अमल भी होता रहे।
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उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन: मार्च 2020 में छोटे रूप से शुरू की गई उत्पादन प्रोत्साहन योजना का मकसद भारत को विनिर्माण का केंद्र बनाना और आयात पर, खासतौर पर चीन से आने वाले सामान पर निर्भरता घटाना था। अगर स्थानीय रूप से निर्मित उत्पादों की बिक्री धीरे-धीरे इजाफे के साथ पहले से तय लक्ष्य तक पहुंच जाती है तो योजना के तहत प्रोत्साहन दिया जाता है।
हालांकि अभी तक योजना को सीमित रूप में ही सफलता मिल पाई है क्योंकि तैयार सामान के आयात का स्थान कलपुर्जों के आयात ने ले लिया और जरूरत भर असेंबली का काम यहां किया जा रहा है। हालांकि हर नए क्षेत्र में असेंबली के साथ ही विनिर्माण की शुरुआत होती है (जैसे 1980 के दशक में टीवी का विनिर्माण होता था) और ऐसे कारोबार के दूरगामी प्रभाव भी होते हैं।
ऐसा लगता है कि पीएलआई योजना अति महत्त्वाकांक्षी है। हम इस योजना के जरिये 60 लाख रोजगार सृजित करने के लक्ष्य के आसपास भी नहीं है और वित्त वर्ष 21 से वित्त वर्ष 27 के बीच प्रोत्साहन के रूप में दो लाख करोड़ रुपये दिए जाएंगे। फिर भी मेरा मानना है कि भारतीय उद्यम अधिक महत्त्वाकांक्षी, उत्सुक और पहली बार संसाधनों से परिपूर्ण हैं और कुछ हद तक यह योजना विनिर्माण को बढ़ावा देगी।
बड़े पैमाने पर पूंजी खर्च: आजादी के बाद से ही अर्थशास्त्रियों की यह शिकायत रही है कि बजट आवंटन का अधिकांश हिस्सा राजस्व व्यय के लिए धन उपलब्ध कराने में खर्च कर दिया जाता है। इसमें मुख्य रूप से सरकार के वेतन-भत्ते और उधार पर चुकाया जाने वाला ब्याज शामिल है। ऐसे में पूंजी खर्च के लिए कोई धन नहीं बचा रहता। लेकिन वर्ष 2023 24 के बजट में अचानक तब बदलाव आया जब सरकार ने रक्षा, शहरी विकास और रेलवे के लिए 10 लाख करोड़ रुपये के भारी भरकम पूंजी खर्च की घोषणा की।
रेलवे के लिए 2.40 लाख करोड़ रुपये का आवंटन वित्त वर्ष 23 की तुलना में 75 प्रतिशत अधिक था। सरकार ने अपनी यह प्रतिबद्धता भी जताई है कि अगले कुछ वर्षों में रक्षा क्षेत्र के लिए पूंजीगत आवंटन 8.30 लाख करोड़ रुपये किया जाएगा। रक्षा उत्पादन और निर्यात प्रोत्साहन नीति 2020 में 1.75 लाख करोड़ रुपये मूल्य के घरेलू उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है जिसमें 2025 तक 35,000 करोड़ रुपये का निर्यात शामिल है। ऊर्जा दूसरा ऐसा क्षेत्र है जिसमें अक्षय ऊर्जा से लेकर स्मार्ट ग्रिड और स्मार्ट मीटर तक पर भारी भरकम पूंजीगत खर्च का प्रावधान किया गया है।
आयात में कटौती: हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है लेकिन अगर पीएलआई व्यवस्था, ऊर्जा और रक्षा में पूंजी खर्च ने असर दिखाया तो तीन बड़े निर्यात क्षेत्र -इलेक्ट्रॉनिक्स, हथियार और तेल- के आयात खर्च में काफी कमी आएगी जिससे संरचनात्मक बदलाव होंगे। जिन क्षेत्रों के लिए पीएलआई योजना की घोषणा की गई है, वे आयात का करीब 40 फीसदी हिस्सा हैं।
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पूंजीगत खर्च के सरकार के इस चौतरफा कदम के लाभ दृष्टिगोचर हो रहे हैं। थोड़े-थोड़े दिनों में ही कंपनियां अपने ऑर्डर की घोषणा कर रही हैं जो उनके राजस्व का कई गुना होते हैं। विश्लेषक ऐसी खबरों के तेज प्रवाह के साथ न तालमेल बिठा पा रहे और न ही कंपनियों के राजस्व तथा लाभ अनुमानों को अपडेट कर पा रहे। आमराय यह है कि आने वाले कुछ वर्षों में हमारे पास एक स्थिर और प्रतिबद्ध नीति व्यवस्था होगी। लिहाजा, सतत वृद्धि के अनुमान स्वाभाविक हैं। इस कारण बाजार के नई ऊंचाइयां छूने पर भी सहमति है।
कौन इसे नहीं जानता? हालांकि अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्त्वों के रुझान से शेयर बाजार का अनुमान लगाना बड़ी छलांग लगाने जैसा है। शेयर तभी बहुत अधिक बढ़ते हैं जब उनका मूल्य कम हो और चौंकाने वाली कोई सकारात्मक बात हो। फिलहाल स्थिति यह है कि शेयर अभी सस्ते नहीं है और बाजार में हर किसी को यह बात पता है कि रेलवे और रक्षा पर खर्च का भारी भरकम सकारात्मक असर है। यही कारण है कि वैगन निर्माता टीटागढ़ रेल सिस्टम्स 367 प्रतिशत तक छलांग लगा चुका है जबकि मझगांव डॉक 191 फीसदी बढ़ा है।
अमेरिका के मशहूर निवेशक हॉवर्ड मार्क्स सलाह देते हैं कि जब आप किसी बात को लेकर अति उत्साहित हों (जैसे देश या कंपनी का भविष्य) तो अपने आप से पूछिए: कौन यह बात नहीं जानता? अगर हर कोई जानता है तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है और गुलाबी तस्वीर मौजूदा मूल्यों में पहले ही परिलक्षित हो चुकी है। वास्तव में जब हर कोई तेजी के रथ पर सवार है और एक दूसरे से सहमत है तो आपको सतर्क रहने की जरूरत है। एक छोटी सी बुरी खबर भी गंभीर झटका दे सकती है।
(लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक और मनीलाइफ फाउंडेशन में ट्रस्टी हैं)