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Budget 2025: कर राहत, पारदर्शिता और नए वादों का बजट

वित्त मंत्री ने बजट में कर राहत देने के साथ देश-विदेश की चुनौतियों के बीच जिस कौशल के साथ वित्तीय संसाधनों को संभाला है और आंकड़ों पर जो पारदर्शिता दिखाई है वह सराहनीय है।

Last Updated- February 02, 2025 | 11:51 PM IST

यह कहना अनुचित नहीं होगा कि वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में देश की आबादी का एक छोटा हिस्सा छाया हुआ है। चर्चा का विषय देश के करीब 4.3 करोड़ आयकरदाताओं को मिली कर राहत है। वित्त मंत्री ने उन्हें कुल 1 लाख करोड़ रुपये की राहत दी है, जो केंद्र के कर राजस्व की करीब 2.5 फीसदी बैठती है। एक ही बार में इतनी बड़ी आयकर राहत इस देश में पहले कभी नहीं दी गई है, इसलिए इसकी चर्चा होनी लाजिमी है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लगातार सातवें पूर्ण बजट में अलग-अलग आय वर्ग के लिए व्यक्तिगत आयकर की दरें ही नहीं घटाई गईं बल्कि मध्य वर्ग को कई दूसरी राहत भी दी गईं। स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) के लिए आसान नियम भी इसमें शामिल हैं, जिनसे करदाताओं पर बोझ घटेगा। ये कदम देश की अर्थव्यवस्था की सुस्ती देखकर उठाए गए हैं ताकि कर घटने से खपत बढ़े और वृद्धि भी पटरी पर लौटे। यह तो समय ही बताएगा कि छोटी सी आबादी को आयकर में दी गई भारी छूट से खपत कितनी बढ़ी और मांग तथा वृद्धि में कितना इजाफा हुआ।

किंतु यह बजट आयकर में राहत देने तक ही नहीं सिमटा है। देश-विदेश से आ रही चुनौतियों के बीच वित्त मंत्री ने केंद्र सराकर के वित्तीय संसाधनों को जैसे संभाला और इस्तेमाल किया है वह सराहनीय है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर सरकार ने लक्ष्य से बेहतर प्रदर्शन किया है, जो मार्के की बात है। संशोधित अनुमानों में सरकार का शुद्ध राजस्व बजट अनुमान से 1.3 फीसदी कम हो गया। व्यक्तिगत आयकर संग्रह तेजी से बढ़ा मगर कॉरपोरेशन कर तथा गैर कर प्राप्तियां कम होने से संग्रह कम रह गया। इसकी भरपाई व्यय में 2 फीसदी कटौती से हो गई, जो पूंजीगत व्यय में 8 फीसदी कमी का नतीजा थी। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि व्यय की गुणवत्ता कई साल बाद बिगड़ी है मगर राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.8 फीसदी पर रोक लिया गया, जिसके लिए पिछले बजट में 4.9 फीसदी का अनुमान लगाया गया था। 

वित्त वर्ष 2025-26 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.4 फीसदी तक समेटने का लक्ष्य रखा गया है, जो सीतारमण द्वारा 2021 में रखे गए लक्ष्य से भी 10 आधार अंक कम है। अगले वित्त वर्ष में कंपनी कर में 10 फीसदी बढ़ोतरी के अनुमान पर सवाल उठाए जा सकते हैं क्योंकि 2024-25 में इसमें 7.5 फीसदी वृद्धि ही हो रही है। मगर ध्यान रहे कि अनुमान यह मानकर लगाया गया है कि वित्त वर्ष में 10.1 फीसदी नॉमिनल आर्थिक वृद्धि होगी। अलबत्ता व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 14 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान वास्तविक प्रतीत होता है, जिसमें चालू वित्त वर्ष के दौरान 20 फीसदी इजाफा हुआ है। व्यय के मामले में वित्त मंत्री ने मुठ्ठी अधिक नहीं खोली है और 2025-26 के लिए इसे 7.4 फीसदी बढ़ाकर 50 लाख करोड़ रुपये पर ही समेट दिया है। इसमें 39 लाख करोड़ रुपये राजस्व व्यय (6.6 फीसदी अधिक) और 11.2 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय (उम्मीद से बेहद कम 10 फीसदी बढ़ोतरी) शामिल है।

वित्त मंत्री ने 2026-27 से अगले पांच साल तक राजकोषीय घाटा कम करने के लिए सार्वजनिक ऋण में कटौती का सहारा लेने की बात बजट में कही है। कोई बड़ा झटका नहीं लगा तो सरकार राजकोषीय घाटा इस तरह कम करने का प्रयास करेगी कि सार्वजनिक ऋण का बोझ लगातार घटते हुए 31 मार्च 2031 तक जीडीपी के 50 फीसदी पर सिमट जाए। चालू वित्त वर्ष में यह जीडीपी का 57.1 फीसदी है। खजाने को मजबूती देने का रास्ता और तरीका ज्यादा स्पष्ट करना सही रहेगा। उदाहरण के लिए सरकार को बताना चाहिए कि ऋण के आंकड़ों के साथ वह राजकोषीय घाटे का निश्चित स्तर या दायरा भी बताएगी अथवा नहीं।

बजट में सरकार ने पूरी पारदर्शिता भी बरती है। सराकर ने साफ बताया है कि बजट के अलावा दूसरे स्रोतों से कितनी उधारी ली जाएगी। पिछले वित्त वर्ष में शून्य उधारी थी और अगले दो वित्त वर्षों में भी शून्य रहने का ही अनुमान है। व्यावसायिक तरीके से चलने वाले कुछ केंद्रीय उपक्रमों द्वारा जुटाए गए संसाधनों पर देनदारी के बारे में अतिरिक्त जानकारी की ही तरह यह भी राहत की बात है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और भारतीय रेल वित्त निगम (आईआरएफसी) पर चढ़ा कर्ज कम हो रहा है। एनएचएआई पर कर्ज 2021-22 में 3.48 लाख करोड़ रुपये हो गया था और 2022-23 में आईआरएफसी का कर्ज  4.78 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। ऐसी जानकारी से राजकोषीय पारदर्शिता बढ़ेगी और सार्वजनिक वित्त की स्थिति ज्यादा साफ हो जाएगी।

2025-26 के बजट में यह भी बताया गया है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को विभिन्न केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत मिले धन में से कितनी रकम खर्च होने से बच गई है। इन योजनाओं के लिए आवंटित रकम में से करीब 1.6 लाख करोड़ रुपये 31 दिसंबर, 2024 तक राज्यों के पास पड़े होने का अनुमान है। यह छोटी रकम नहीं है और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत सालाना व्यय के 40 फीसदी से अधिक है। ऐसी जानकारी से सरकार को बची हुई कुल रकम और राज्यों की खर्च करने की क्षमता के हिसाब से खर्च का सही अनुमान लगाने में मदद मिलती है। साथ ही राज्यों के व्यय की जवाबदेही भी तय होती है और उन्हें बताया जाता है कि कम खर्च होने पर संशोधित अनुमान में उनका आवंटन कम क्यों हो सकता है। जाहिर है कि इन खुलासों से जागरूकता बढ़ती है और कुछ योजनाओं के तहत रकम को बिना खर्च छोड़ने के बजाय इस सीमित संसाधन का अधिक उत्पादक कामों में इस्तेमाल करने में भी मदद मिलती है। ऐसे खुलासों से शायद यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि चालू वर्ष के लिए संशोधित अनुमान में शहरी आवास, ग्रामीण आवास, ग्रामीण सड़क, स्वच्छ भारत अभियान या जल जीवन अभियान जैसी बड़ी योजनाओं के लिए बजट अनुमान की तुलना में आवंटन एकदम कम क्यों हो गया है।

वित्त मंत्री ने जुलाई 2024 के बजट में किए पांच वादों में से चार पूरे कर दिए। एकीकृत पेंशन योजना अप्रैल 2025 से शुरू हो जाएगी। सीमा शुल्क को वाजिब बनाया जा रहा है, जिससे 26 वस्तुओं (मोटरसाइकल सहित) पर सीमा शुल्क घटा है। साथ ही 14 वस्तुओं पर प्रभावी शुल्क दरों में कमी हुई है और 37 वस्तुओं पर भी शुल्क दरें कम हुई हैं। एक नई आयकर प्रणाली आई है और राजकोष को मजबूत करने का ऋण आधारित कार्यक्रम शुरू किया गया है। बजट में बिजली वितरण, शहरी क्षेत्र, नियामकीय ढांचा, खनन, कराधान और बीमा (जिसमें विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाकर 100 फीसदी कर दी गई है) में सुधारों का जिक्र किया गया है। बस, पूंजी, श्रम, जमीन जैसे फैक्टर मार्केट में दूसरे चरण के सुधारों के लिए कदम अभी बताए जाने हैं।

हां, अफसोस की बात है कि बजट में रणनीतिक विनिवेश पर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया है। इसमें सार्वजनिक परिसंपत्तियां बेचकर जुटाई गई रकम का इस्तेमाल नई परियोजनाओं में करने का जिक्र भर है। अगले पांच वर्षों में इससे 10 लाख करोड़ रुपये जुटने का अनुमान है। उम्मीद तो यही की जा रही है कि जल्द ही विनिवेश सरकार की अहम योजनाओं में वापस जगह बना लेगा। 

First Published - February 2, 2025 | 11:26 PM IST

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