हाल ही में भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों विशेष रूप से कपड़ा, समुद्री खाद्य और रत्न व आभूषण को निशाना बनाने वाले 50 फीसदी ‘ट्रंप टैरिफ’ (अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा घोषित आयात शुल्क) ने देश के कई क्षेत्रों में चिंता पैदा कर दी है। सूरत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) पर वित्तीय दबाव की स्थिति बन रही है, जहां 80 फीसदी हीरा-निर्यात इकाइयां केंद्रित हैं, वहीं दूसरी ओर तिरुपुर में परिधान निर्यातकों को कुल मिलाकर 61 फीसदी से अधिक के शुल्क का सामना करना पड़ रहा है जिससे एक वास्तविक संकट की स्थिति बन रही है।
आशंका यह है कि ये आयात शुल्क (टैरिफ) उन क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते हैं जो भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात का करीब 25 फीसदी हिस्सा है। यह टैरिफ उन कंपनियों के लिए खतरा है जिनकी मार्जिन और कीमतें तय करने की ताकत सीमित है। हालांकि, इस तत्कालिक संकट को एमएसएमई तंत्र की व्यापक क्षमता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। इनकी क्षमता का अभी पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं हो सका है।
पिछले चार वर्षों में सराहनीय तीन गुना वृद्धि के बावजूद, निर्यात करने वाले एमएसएमई की संख्या पिछले साल मई में महज 1,73,350 थी। हालांकि 7.3 करोड़ एमएसएमई के मजबूत आधार के मुकाबले देखने पर, यह आंकड़ा मात्र 0.23 फीसदी का प्रतिनिधित्व करता है। अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो जो उद्यम भारत से लगभग आधे निर्यात (45.79 फीसदी) के लिए उत्पादन कर रहे हैं वे एमएसएमई आधार के चौथाई फीसदी से भी कम हैं।
भारत में एमएसएमई का अधिकांश हिस्सा सूक्ष्म उद्यमों का है और इनमें से कई अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। उनके कारोबार का दायरा भी बड़ा नहीं है और न ही जरूरी तकनीक उनके पास है। इसके अलावा उनकी संरचना भी ऐसी नहीं है कि वे अहम क्षेत्रों में वैश्विक वैल्यू श्रृंखला (जीवीसी) की मांग को पूरा कर सकें जिनमें जटिल अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन का पालन करना शामिल है। इसके अलावा आधुनिक इन्वेंट्री प्रबंधन मॉडल जैसे कि ‘जस्ट इन टाइम (जेआईटी) और लीन मैन्युफैक्चरिंग’ को लागू करने की क्षमता भी होनी चाहिए जिसके लिए डिजिटल तकनीक और भरोसेमंद लॉजिस्टिक्स की जरूरत होती है। साथ ही इंडस्ट्री 4.0 टूल के साथ जुड़ना भी अहम है।
भारत के लिए बड़ा अवसर तभी बन पाएगा जब एक व्यापक, निष्क्रिय आधार को एक औपचारिक, जीवीसी के लिए तैयार आपूर्तिकर्ता पूल में बदला जा सके। इस अवसर का फायदा उठाने के लिए, सामान्य कल्याणकारी उपायों से हटकर लक्षित, क्रियान्वयन पर केंद्रित हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इसके अलावा पूंजी तक पहुंच भी सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। इस क्षेत्र को 30 लाख करोड़ रुपये तक के अनुमानित ऋण मांग-आपूर्ति की खाई का सामना करना पड़ता है।
जीवीसी में शामिल होने के लिए नए निवेश की जरूरत है विशेषरूप से तकनीक को बेहतर बनाने के लिए। इनमें नई मशीने खरीदने, प्रमाणन से जुड़े अनुपालन करने और डिजिटल साधन का इस्तेमाल करने के लिए पैसे की जरूरत होगी। सरकार को ऐसे फिनटेक समाधान को बढ़ावा देना चाहिए जो पुराने तरीकों से हटकर जीएसटी/उद्यम डेटा का इस्तेमाल कर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) से क्रेडिट स्कोरिंग करे। इससे निर्यात के ऑर्डर के लिए कार्यशील पूंजी की जरूरतें पूरी हो सकेंगी। इसके साथ ही क्लस्टर फाइनैंसिंग की व्यवस्था भी मददगार साबित होगी।
इसके अलावा भले ही भारत में लॉजिस्टिक्स की लागत का मौटे तौर पर अनुमान अब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 7.97 फीसदी है लेकिन अब गहराई में जाना जरूरी है। उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग और राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुंसधान परिषद की हाल की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि छोटे उद्योग की लॉजिस्टिक्स लागत उनके उत्पादन का 16.9 फीसदी तक है जबकि बड़े उद्योग के लिए यह लागत 7.6 फीसदी है। इस अंतर के कारण छोटे उद्योग जल्द ही मुकाबले से बाहर हो जाते हैं।
पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय योजना को और तेजी से लागू करना होगा ताकि मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क बनाए जा सकें। इन पार्कों में साझा भंडारगृह की सुविधा होगी और सामान को नजदीक और सुदूर इलाकों तक पहुंचाने का इंतजाम बेहतर होगा। इससे लागत घटेगी और छोटे कारोबारियों पर बोझ कम होगा। एमएसएमई के माल के लिए यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल जरूरी करने से भी मदद मिलेगी।
कुशल कर्मचारियों के बिना कोई भी तकनीक बेकार है। भारत को जल्द से जल्द ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत करनी होगी जिनमें जीवीसी से जुड़े जरूरी कौशल की जानकारी दी जाए, जैसे कि गुणवत्ता की जांच करना, डिजिटल परिचालन, मशीनों का रख-रखाव और आपूर्ति श्रृंखला का प्रबंधन। इसके साथ ही, विनिर्माण के क्षेत्र में साझा जांच केंद्र और प्रमाणपत्र देने वाले केंद्र भी खोलने होंगे। इन केंद्रों से छोटे कारोबारों को नियमों का पालन करने का खर्च कम करने में मदद मिलेगी और खरीदारों का भरोसा बढ़ेगा।
दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं अपनी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता ला रही हैं। टैरिफ और व्यापार में बदलाव से भारत को अपने एमएसएमई क्षेत्र को बदलने का शानदार मौका मिला है। लेकिन, ये मौका ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगा। अगर भारत ने अपने 99.76 फीसदी एमएसएमई को सशक्त बनाने के लिए जल्दी और सही कदम नहीं उठाए तो वियतनाम, मेक्सिको या इंडोनेशिया जैसे देश इस मौके को छीन लेंगे। दुनिया का विनिर्माण केंद्र बनने के लिए सिर्फ इरादा नहीं, बल्कि कड़ी मेहनत, ध्यान और बड़े पैमाने पर काम करना जरूरी है।
(लेखिका एसपीजेआईएमआर के सेंटर फॉर फैमिली बिजनेस ऐंड आंत्रप्रेन्योरशिप की कार्यकारी निदेशक और प्रोफेसर (अर्थशास्त्र) हैं। ये उनके निजी विचार हैं)