आपने कभी सोचा है कि क्या मानवविज्ञान व्यवसाय और सार्वजनिक मामलों में जटिल समस्याओं को हल करने में मदद कर सकता है। मानवविज्ञानी और फाइनैंशियल टाइम्स के पत्रकार गिलियन टेट द्वारा लिखित पुस्तक, ‘एंथ्रो विजन’ ने मुझे इस बारे में आश्वस्त किया है। इस पुस्तक में टेट का इस बात पर जोर है कि आखिर मानवविज्ञान या नृविज्ञान व्यवसाय और जीवन की व्याख्या कैसे कर सकता है।
हर नेता, वास्तव में, हर इंसान, डनिंग-क्रुगर प्रभाव का शिकार है- यानी यह व्यापक भावना है कि हम अपने साथियों से स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठ हैं। अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक होने से एक विनम्र नेतृत्व व्यवहार को बढ़ावा देने में मदद मिलती है। दूसरा तरीका मानवशास्त्रीय मानसिकता विकसित करना है।
जब आप किसी समस्या को हल करने में गहराई से डूबे होते हैं, तो आप पानी में मछली की तरह होते हैं। याद रखें कि मछली पानी की परवाह नहीं करती है। बोर्ड के निदेशक अपने उद्देश्य या हितधारकों के प्रति जवाबदेह होने के बजाय प्रमोटर की मर्जी के माफिक या लाभ-केंद्रित हो सकते हैं। कंपनियां ग्राहक-केंद्रित रहने के बजाय एक हद तक प्रतिस्पर्धी-केंद्रित हो सकती हैं। राजनीतिक दल स्थायी रूप से चुनाव केंद्रित हो सकते हैं या विपक्ष को खत्म करने की मुहिम में लगे रह सकते हैं। दोनों ही मामलों में, यह अच्छे लोक प्रशासन और मतदाता की कीमत पर है।
मानवविज्ञान के बौद्धिक ढांचे के अमल से व्यक्ति को चारों ओर देखने, दूसरों के लिए सहानुभूति पैदा करने और समस्याओं पर नई अंतर्दृष्टि प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। इस दृष्टिकोण के लिए खुली सोच और चार आदतों की जरूरत होती है- निरीक्षण/अवलोकन करें, सुनें, रिकॉर्ड करें, प्रतिबिंबित करें, सभी खुले दिमाग से।
मैं इस बात से अनजान था कि इंटेल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रौद्योगिकी कंपनियां इंजीनियरों को व्यापक दृष्टिकोण से समस्याओं को देखने में मदद करने के लिए प्रशिक्षित मानवविज्ञानी नियुक्त करती हैं। इंजीनियरों को इस तरह की मदद की आवश्यकता होती है क्योंकि उनमें से सक्षम ऐसे कार्य करते हैं जैसे कि सभी लोगों को उनके जैसा ही सोचना चाहिए। अपने करियर की शुरुआत और साथ में 35 साल पहले एक बोर्ड निदेशक के रूप में अपने शुरुआती वर्षों में आई समस्याओं के संदर्भ में, मैं इस मानसिकता की पुष्टि अपने स्वयं के विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से कर सकता हूं। अपने करियर के दौरान, मैंने सीखा कि कैसे उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियां अपने उत्पाद डिजाइन में उपभोक्ताओं की अंतर्दृष्टि विकसित करने के लिए उनके व्यवहार का अध्ययन करती हैं। आजकल डिजाइन थिंकिंग प्रबंधन शिक्षा और अभ्यास में एक प्रचलन बन गया है।
द अल्केमिस्ट में, जीवन के लिए एक समग्र, तर्कसंगत और साथ ही सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण की समझ को लेकर एक कहानी है। एक व्यापारी ने अपने बेटे को एक बुद्धिमान व्यक्ति के पास एक महल में आनंद का मतलब जानने के लिए भेजा। बुद्धिमान व्यक्ति ने लड़के को दो चम्मच तेल दिया और उससे अनुरोध किया कि वह बिना तेल गिराए उसके महल के चारों ओर घूमे। अत्यंत कर्तव्यपरायण बालक दो चम्मच तेल पूरी तरह बचाकर लौटा। बुद्धिमान व्यक्ति ने उसकी प्रशंसा की और पूछा कि वह महल में कलाकृतियों और चकित कर देने वाली वस्तुओं के बारे में क्या सोचता है।
लड़के ने कबूल किया कि उसने तेल पर इतना ध्यान केंद्रित कर लिया था कि उसे कुछ और नजर ही नहीं आया। बुद्धिमान व्यक्ति ने उसे तेल भरे चम्मच के साथ महल घूमने का दोबारा निर्देश दिया, लेकिन, इस बार, महल का भी निरीक्षण करने के लिए कहा। जब लड़का लौटा, तो वह महल में देखी गई चीजों की सुंदरता के बारे में उत्साहित था, हालांकि उसके चम्मच खाली थे। उस बुद्धिमान व्यक्ति ने उसे बताया कि चम्मच पर तेल की बूंदों को भूले बिना दुनिया के चमत्कारों का आनंद लेना प्रसन्नता का रहस्य है।
पेश है इतिहास का एक और दिलचस्प प्रसंग। 19वीं सदी के प्रारंभ में, एक रूसी इंजीनियर और स्टालिन के समकालीन पीटर पालिंस्की ने उद्योग में वैज्ञानिक तरीकों के इस्तेमाल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्टालिन को नाटकीय और बड़ी घोषणाओं का शौक था— कई राष्ट्रीय नेताओं में यह प्रवृत्ति होती है। पालिंस्की ने बड़ी परियोजनाओं के साथ छोटी-छोटी जरूरतों और योजनाओं के बारे में भी सीखा। भव्यता को कैसे टाला जाए, इस पर उसके तीन दृष्टिकोण को पालिंस्की सिद्धांत कहा गया: पहला, कई विकल्पों के साथ प्रयोग, दूसरा, उत्तरजीविता सुनिश्चित करना, और तीसरा, जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, सीखें और सबसे अच्छा विकल्प चुनें। ये व्यवसाय और लोक प्रशासन के लिए अच्छे विचार हैं।
1960 के दशक में, भारत सरकार के परिवार नियोजन विज्ञापन ने नई दुल्हन को पांच साल तक संतान पैदा करने से बचने की सलाह दी। अभियान पूरी तरह से विफल रहा। अगर संतान जल्दी नहीं आया तो कौन सी दुल्हन अप्रिय टिप्पणियों से बच सकती है? संशोधित अभियान के तहत दूसरे बच्चे को पांच साल के लिए टालने को लेकर सास से संवाद पर जोर था जो सफल रहा। 1960 के दशक में ही जब भारत में खाद्यान्न की कमी थी, शास्त्री जी ने लोगों को भोजन छोड़ने के लिए नहीं कहा था। उन्होंने देश के उत्तर और दक्षिण से अनुरोध किया कि वे अपने यहां क्रमश: गेहूं और चावल हफ्ते में दो बार भोजन में न लें। अमेरिका में, चुनावी विश्लेषक फ्रैंक लुत्ज ने बताया है कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेट जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं। रिपब्लिकन अवसर के संदेशों (परिवार और समुदाय के लिए अच्छा) के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं, जबकि डेमोक्रेट डर के संदेशों (खतरे में ग्रह) के लिए बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं। लोगों की प्रतिक्रियाओं के प्रति अनिर्णायक संवेदनशीलता सफलता की कुंजी है। भारत सरकार के एजेंडे में कम से कम तीन दशकों, शायद इससे भी ज्यादा से बड़ा बदलाव आया है। हाल के दिनों में, लक्षित लाभार्थियों, जिनके लिए एक परिवर्तनकारी बदलाव का इरादा है, ने इस पहल का जोरदार विरोध किया है। उदाहरण के लिए, कृषि कानून में किसान, माल और सेवा कर में व्यापारी और अग्निपथ योजना में युवा। पिछले 20 वर्षों में, विपक्ष में रहते हुए, एक पार्टी ने प्रस्तावों का विरोध किया है। इसी संदर्भ में स्वर्गीय अरुण जेटली के चर्चित बयान को याद करें कि "विपक्ष का काम विरोध करना है"। बाद में, यदि सरकार में, वही पार्टी समान, हालांकि थोड़ा संशोधित, प्रस्तावों की वकालत करती है। तू-तू मैं-मैं कर अच्छी राजनीति कर सकते हैं, मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन यह जनता के लिए दुखद है। मुझे आश्चर्य है कि क्या डनिंग-क्रुगर प्रभाव, पालिंस्की सिद्धांत और मानवविज्ञान, प्रबंधन और सार्वजनिक नीति के मामलों में नेताओं के लिए सबक हैं।
