केंद्र एवं राज्य सरकारों की तवज्जो अब बुनियादी तौर पर कोविड-19 महामारी के प्रसार पर काबू पाने पर है। इस प्रक्रिया में हालांकि इस महामारी के जिस अहम पहलू को नजरअंदाज किया जा रहा है वह जैव-चिकित्सकीय कचरे के सुरक्षित निपटान को लेकर है। यह कचरा क्वारंटीन केंद्रों एवं इलाज के केंद्रों के अलावा संदिग्ध मरीजों के घरों से निकल रहा है। इस खतरनाक कचरे की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और इसका सुरक्षित निपटान शहरी निकायों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। कोरोनावायरस से संबंधित कचरे के वैज्ञानिक ढंग से निपटान के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने महामारी की शुरुआत में ही दिशानिर्देश जारी कर दिए थे लेकिन कुछ कोविड-समर्पित अस्पतालों को छोड़कर उनका समुचित ढंग से पालन नहीं किया जा रहा है। बाकी जगहों पर इस्तेमाल हो चुके पीपीई किट एवं अन्य असुरक्षित सामग्रियों से भरे इस कचरे को दूसरे चिकित्सकीय कचरे या घरेलू कचरे के साथ ही कचरा डालने वाली जगह पर फेंक दिया जा रहा है। दुर्भाग्य से अधिकतर लोग कोरोनावायरस से संबंधित इस कचरे के अनुचित निपटान के खतरों को लेकर पूरी तरह जागरूक ही नहीं हैं। इस्तेमाल किए जा चुके मास्क, दस्ताने, एप्रन, शू-कवर, सिरिंज एवं रुई को ऐसे ही फेंक दिया जा रहा है। इस गंभीर मसले पर शहरी स्थानीय निकायों की लापरवाही कहीं अधिक खेदजनक है।
दिल्ली एवं मुंबई समेत अधिकांश शहरों के स्थानीय निकाय इस संक्रामक सामग्री को इकट्ठा करने, अलग करने और जोखिम-मुक्त निपटान के लिए जरूरी व्यवस्था बनाने में नाकाम रहे हैं। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए जरूरी ढांचा एवं संसाधन पिछले चार महीनों में वायरस का प्रसार बढऩे के साथ नहीं जुटाए गए हैं। जहां सामान्य दिनों में अस्पतालों में प्रतिदिन हरेक बिस्तर पर अमूमन 500 ग्राम जैव-चिकित्सकीय कचरा निकलता है वहीं कोविड महामारी का प्रकोप फैलने के बाद यह मात्रा बढ़कर 2.5 किलो से 4 किलोग्राम तक हो चुकी है। लेकिन जैव-चिकित्सकीय कचरे की निपटान इकाइयां अब भी 200 के करीब ही स्थिर बनी हुई हैं। इनमें से केवल दो इकाइयां ही वायरस के संक्रमण से बेहाल दिल्ली में स्थित हैं और भारत में इस महामारी के केंद्र बन चुके मुंबई में तो ऐसी केवल एक इकाई ही मौजूद है। इस कचरे के निपटान में लापरवाही इससे भी झलकती है कि इसे दूसरे चिकित्सकीय कचरे एवं घरों से निकलने वाले कचरे के साथ ही मिला दिया जा रहा है और फिर उसे कूड़े के ढेर पर फेंक दिया जाता है। इस तरह सफाईकर्मियों, कचरा इकट्ठा करने वालों एवं कूड़ा बुनने वालों के वायरस की चपेट में आने और दूसरों को भी संक्रमित करने का जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे में अचरज नहीं है कि दिल्ली में 15 से अधिक सफाईकर्मियों की मौत सीधे तौर पर कोविड-19 महामारी की वजह से हुई है। कई सफाईकर्मी वायरस से संक्रमित भी पाए गए हैं। दूसरे शहरों में भी हालात बेहतर नहीं हैं। इस तरह जैव-चिकित्सकीय कचरा प्रबंधन का ढांचा दुरुस्त करने और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा तय सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने की जरूरत है।
कोविड संबंधित कचरे के सुरक्षित संकलन एवं निपटान की प्रक्रिया इसके उद्गम पर ही छंटनी एवं दोहरे स्तर वाले बैग में रखने के साथ शुरू हो जानी चाहिए। सीपीसीबी ने इसके लिए खास तौर पर पीले रंग वाले बैग के इस्तेमाल की अनुशंसा की है। फिर बैग को अलग वाहनों में रखकर निर्धारित जैव कचरा निपटान संयंत्र या कचरे से बिजली बनाने वाली इकाई पर ले जाना चाहिए। इसके अलावा लोगों को पीपीई किट एवं अन्य कोविड कचरों के अनुचित निपटान से पैदा होने वाले खतरों को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान भी चलाने की जरूरत है। अन्यथा भारत को कोरोनावायरस-जनित एक और संकट का सामना करना पड़ सकता है।
