जैसे-जैसे देसी कंपनियां एग्जिक्यूटिव एज्यूकेशन प्रोग्राम्स की अहमियत को पहचान रही हैं, इस क्षेत्र में बी स्कूलों की कमाई की भी मोटी होती जा रही है।
आज भारतीय कंपनियां भी अपने कर्मचारियों विश्व स्तर की शिक्षा मुहैया कराना चाह रही हैं। इसके लिए उन्हें पैसे खर्च करने से गुरेज नहीं है। इसीलिए कई देसी-विदेशी बी-स्कूल इन कंपनियों के लिए खास तौर पर स्पेशल कोर्स तैयार कर रही हैं। ज्यादा से ज्यादा कंपनियों को लुभाने के लिए इन संस्थानों के डीन और दूसरे वरिष्ठ अधिकारी कॉरपोरेट जगत की जानी-मानी हस्तियों के साथ मिलने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं।
मिसाल के तौर पर अब आईआईटी, खड़गपुर और एक्सएलआरआई, जमशेदपुर को ही लीजिए। ये दोनों संस्थान हर साल 30 एग्जिक्यूटिव एज्यूकेशन प्रोग्राम चलाते हैं। आज से कुछ साल पहले तक इन कोर्सेज की तादाद केवल 15 हुआ करती थी। तादाद में इस इजाफे की असल वजह है, कोर्स की कीमत का कम होना।
पिछले कुछ सालों में हर कोर्स पर आने वाली कीमत 60 फीसदी तक कम हो चुकी है। वैसे, इन संस्थानों के सामने असल मुसीबत को गिरती कीमत के बावजूद कोर्स के कंटेंट के स्तर को बरकरार रखने का था।
आईआईटी, खड़गपुर के एक प्रोफेसर का कहना है कि, ‘दुनिया में तकनीकी क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव काफी तेजी से हो रहे हैं। ऐसी हालत में इंजिनियरों और वैज्ञानिकों के लिए नई-नई तकनीकों के बारे में जानना और अपनी जानकारी को अपडेट व अपग्रेड करना बहुत अहम हो चुका है। पर दिक्कत यह है कि कॉलेज से पास ऑउट होने के इतने दिनों के बाद ऐसा करना काफी मुश्किल काम हो जाता है।’
आईआईएम, कोलकाता के एक प्रोफेसर का कहना है कि, ‘आज ऐसा एक भी सेक्टर मौजूद नही हैं, जहां लीडरशिप पोजिशन में 20 से लेकर 40 फीसदी की कमी नहीं है। कई कंपनियों को आज भी कंपनी में अंदरुनी तौर पर दिए जाने वाली ट्रेनिंग पर ज्यादा भरोसा करती हैं। मगर एक बात है, जिस पर ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जाता। वह बात यह है कि एक स्तर पर जाने के बाद इंटर्नल ट्रेनिंग या अंदरुनी तौर पर दिए जाने वाली ट्रेनिंग काफी महंगी हो जाती है।’
वैसे, आज जिस गंभीरता से हिंदुस्तानी कंपनियां एग्जिक्यूटिव एज्यूकेशन प्रोग्राम को ले रही हैं, उसका अंदाजा इन कोर्सेज की बढ़ती डिमांड से लगाया जा सकता है। इन कोर्सेज को बनाने में बी स्कूलों के शिक्षकों के साथ-साथ कंपनियों के अधिकारी भी शामिल होते हैं। साथ में इन बी स्कूलों को पैसे और प्रतिस्पध्र्दा की बात भी ध्यान में रखनी पड़ती है।
हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने हाल ही में हैदराबाद में अपना पांच दिनों का एक एग्जिक्यूटिव एज्यूकेशन प्रोग्राम को पूरा किया है। अगर यही कोर्स हार्वर्ड कैंपस में करवाया जाता, तो इसके लिए कम से कम 10 हजार डॉलर यानी चार लाख रुपए की मोटी कीमत चुकानी पड़ती। लेकिन यहां उसने केवल एक लाख 80 हजार रुपए ही वसूले।
आईआईटी, खड़गपूर, एक्सएलआरआई, जमशेदपुर और आईआईएम कोलकाता में हर साल विभिन्न कंपनियों के क रीब दो सौ कर्मचारियों एग्जिक्यूटिव एज्यूकेशन प्रोग्राम के तहत अलग-अलग कोर्सेज के लिए लिया जाता है। इन कोर्सेज की फीस पांच हजार रुपए से 35 हजार रुपए तक के बीच हो सकती है। वैसे कुछ कोर्स ऐसे भी हैं, जिनकी कीमत लाखों में हो सकती है।
नजीर के तौर पर ढाका स्थित डेनमार्क के दूतावास ने कुछ दिनों पहले ही अपने कर्मचारियों को चार महीने के कोर्स के लिए आईआईटी, खड़गपुर भेजा था। इस कोर्स के लिए दूतावास ने 60 लाख रुपए की मोटी रकम चुकाई थी। कई संस्थानों ने तो इन कोर्सेज के लिए बकायदा कैलेंडर बनाकर रखा हुआ है।