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फुल एंड फाइनल सेटलमेंट और लीव इनकैशमेंट अब नई तरह से मिलेगा! नए लेबर कोड में बड़ा बदलाव

चार नई श्रम संहिताओं के लागू होने से वेतन, पी एफ, ग्रेच्युटी, फिक्स्ड टर्म नौकरी और टैक्स पर बड़े बदलाव दिखेंगे।

Last Updated- November 28, 2025 | 12:16 PM IST
New Labour codes

New Labour Codes: सरकार ने अब चार नए श्रम नियम लागू किए हैं। यह भारत की नौकरी व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव माना जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, पहले के पुराने और मुश्किल नियमों को हटाकर अब ऐसे नियम बनाए गए हैं जो समझने में आसान हैं और समय के हिसाब से सही हैं। इन नए नियमों से कंपनियों के लिए काम करना सरल होगा और कर्मचारियों को अधिक सुरक्षा और सही लाभ मिलेंगे। इन बदलावों का असर सीधे कर्मचारियों और मालिकों दोनों पर पड़ेगा, खासकर वेतन, पी एफ, ग्रेच्युटी, फिक्स्ड टर्म नौकरी और टैक्स के मामलों में।

कर्मचारियों के लिए फायदे

नई श्रम संहिताओं से कर्मचारियों को कई बड़े फायदे मिलेंगे। अब पूरे देश में एक जैसा न्यूनतम वेतन तय किया जाएगा और कंपनियों को यह ध्यान रखना होगा कि सभी कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह समय पर मिले। इसका मतलब है कि वेतन अगले महीने की सात तारीख तक जरूर देना होगा। अगर कोई कर्मचारी नौकरी छोड़ता है, तो कंपनी को उसका अंतिम भुगतान सिर्फ दो दिनों में करना होगा। इससे कर्मचारियों को पैसे मिलने में दिक्कत नहीं होगी।

डेलॉयट इंडिया के पार्टनर अलोक अग्रवाल के अनुसार, इन संहिताओं के तहत ठेके पर काम करने वाले लोगों को भी स्थायी कर्मचारियों जैसी ग्रेच्युटी मिलेगी। महिलाओं के लिए रात की शिफ्ट को सुरक्षित बनाने के प्रावधान और 30 दिनों से ज्यादा छुट्टियों को पैसे में लेने की सुविधा भी दी गई है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि गिग काम करने वाले लाखों लोगों को पहली बार सामाजिक सुरक्षा मिलेगी।

वेतन और CTC में बदलाव

नई श्रम संहिताओं में वेतन की परिभाषा को पूरे देश में एक जैसा कर दिया गया है। पहले हर कानून में वेतन की अलग परिभाषा होती थी, जिस से समझने में समस्या होती थी। अब किसी भी कर्मचारी के कुल वेतन का कम से कम 50 प्रतिशत हिस्सा मूल वेतन और डी ए माना जाएगा।

BTG अद्वाया के अर्जुन पलेरी का कहना है कि अगर कर्मचारी की तनख्वाह में भत्ते बहुत ज्यादा हैं, तो 50 प्रतिशत से ऊपर का हिस्सा वेतन में जोड़ दिया जाएगा। इस बदलाव से कर्मचारियों की सी टी सी की बनावट बदल जाएगी और हाथ में सैलरी कम हो सकती है, क्योंकि पी एफ और अन्य फायदों में अधिक रकम जाएगी।

अलोक अग्रवाल बताते हैं कि अगर कंपनियां सी टी सी को वही रखेंगी, तो कर्मचारियों की नेट आय घट सकती है। अगर वे इन हैंड सैलरी को पहले जैसा रखना चाहें, तो कंपनी को अपनी लागत बढ़ानी पड़ सकती है।

यह भी पढ़ें: 1 अप्रैल से पहले चारों नए श्रम कोड के नियम बन जाएंगे: श्रम सचिव

रिटायरमेंट सेविंग्स और PF पर प्रभाव

पी एफ से जुड़े नियमों में बड़ा बदलाव होगा क्योंकि पी एफ की गणना अब विस्तृत वेतन के आधार पर होगी। इससे कर्मचारियों का पी एफ अपने आप बढ़ जाएगा और रिटायरमेंट के लिए अधिक पैसा जमा होगा। अलोक अग्रवाल बताते हैं कि जिन कर्मचारियों का मूल वेतन 15000 से अधिक है, वे अभी के नियमों में बाहर की श्रेणी में आते हैं, इसलिए उनके पी एफ में बहुत बड़ा बदलाव नहीं होगा। संदीप झुनझुनवाला बताते हैं कि कर्मचारी चाहें तो स्वैच्छिक पी एफ जमा करके अपना रिटायरमेंट फंड और बढ़ा सकते हैं।

ग्रेच्युटी पर असर

पहले ग्रेच्युटी केवल मूल वेतन और डी ए पर मिलती थी, लेकिन नई संहिताओं में वेतन की परिभाषा बढ़ जाने से अब ग्रेच्युटी की रकम अधिक हो सकती है। अगर कंपनी बोनस या प्रदर्शन के आधार पर मिलने वाली रकम को बाहर नहीं रखती, तो इससे भी ग्रेच्युटी बढ़ सकती है। अलोक अग्रवाल कहते हैं कि अगर कंपनी 20 लाख की पुरानी सीमा से ज्यादा ग्रेच्युटी देने का फैसला करती है, तो कर्मचारियों को और फायदा मिलेगा। खासकर वे कर्मचारी जो लंबे समय से नौकरी कर रहे हैं, उन्हें अधिक ग्रेच्युटी मिलेगी।

फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों के लाभ

नई श्रम संहिताएं ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए बड़ा लाभ लेकर आई हैं। पहले ग्रेच्युटी पाने के लिए पांच साल जरूरी थे, लेकिन अब सिर्फ एक साल काम करने पर भी ग्रेच्युटी मिलेगी। पी एफ का नियम भी स्थायी कर्मचारियों जैसा होगा।

संदीप झुनझुनवाला के अनुसार, आधार और डिजिटल सिस्टम के कारण इन कर्मचारियों का पी एफ और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ एक नौकरी से दूसरी नौकरी में आसानी से जा पाएंगे।

पूनम रामचंदानी कहती हैं कि इन बदलावों के कारण ठेके पर मिलने वाली नौकरियां अब पहले से सुरक्षित और स्थायी नौकरियों जैसी लगेंगी।

टैक्स देनदारी पर प्रभाव

नई संहिताएं टैक्स कम करने के लिए नहीं हैं, लेकिन वेतन की बनावट बदलने से टैक्स पर असर पड़ेगा। मूल वेतन बढ़ने और पी एफ में अधिक पैसा जाने से हाथ में सैलरी कम हो सकती है।

Nangia Group के पार्टनर संदीप झुनझुनवाला के अनुसार, अगर कोई कर्मचारी पुरानी टैक्स व्यवस्था चुनता है, तो पी एफ बढ़ने से उसे टैक्स में छूट मिल सकती है, क्योंकि धारा 80 सी के तहत पी एफ को टैक्स बचत के रूप में दिखाया जा सकता है। इसके अलावा, अगर कोई कर्मचारी किराया देता है, तो उसे एच आर ए में भी छूट मिल सकती है। लेकिन नई टैक्स व्यवस्था में ऐसी छूटें बहुत कम हैं। नई व्यवस्था में एक बात बहुत ध्यान रखने वाली है कि कंपनी की तरफ से पी एफ, एन पी एस और सुपरएनुएशन में मिलाकर साल भर में कुल 7.5 लाख रुपये से ज्यादा रकम जमा नहीं होनी चाहिए। अगर कंपनी का योगदान इस सीमा से ऊपर चला जाता है, तो जो पैसा सीमा से ज्यादा होगा, उसे कर्मचारी की आय में जोड़ दिया जाएगा और उस पर कर्मचारी को टैक्स देना पड़ेगा।

लागू होने की चुनौतियां

नई संहिताएं लागू होने पर कंपनियों को वेतन, पी एफ, ग्रेच्युटी और अन्य नियमों की गणना बदलनी होगी। कर्मचारियों की सैलरी स्लिप बदल जाएगी और ऑफर लेटर भी नए नियमों के अनुसार बदले जा सकते हैं। शुरुआत में कुछ समय तक पुराने और नए नियम साथ चलने से उलझन हो सकती है। Shardul Amarchand Mangaldas & Co के पूनम रामचंदानी का कहना है कि कई कर्मचारियों को लगेगा कि हाथ में सैलरी कम हो गई है, जबकि वास्तव में उनकी रिटायरमेंट बचत बढ़ रही होगी। इसलिए कंपनियों द्वारा साफ और समय पर जानकारी देना बहुत जरूरी है।

टैक्स प्लानिंग और सावधानियां

वेतन और पी एफ की नई गणना के बाद कर्मचारियों को अपनी टैक्स व्यवस्था दोबारा देखनी चाहिए। जो लोग रिटायरमेंट बचत को प्राथमिकता देते हैं, वे स्वैच्छिक पी एफ या एन पी एस जैसे विकल्प चुन सकते हैं। संदीप झुनझुनवाला सलाह देते हैं कि टैक्स व्यवस्था बदलने में जल्दबाजी न करें। पहले यह समझें कि पी एफ, एच आर ए और नई वेतन स्ट्रक्चर में क्या बदलाव हुए हैं और उसके बाद यह तय करें कि कौन सी टैक्स व्यवस्था आपके लिए फायदेमंद है।

First Published - November 28, 2025 | 12:16 PM IST

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