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ज्वेलरी, बार या ETF: सोने में निवेश के लिए क्या है सबसे अच्छा विकल्प?

दिवाली और धनतेरस से ठीक पहले सोने की चमक और तेज होती जा रही है, क्योंकि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच निवेशक सोने को सुरक्षित विकल्प मान रहे हैं

Last Updated- October 02, 2025 | 4:41 PM IST
Gold investment

सोने की कीमतों में तेजी का सिलसिला जारी है। इस कीमती धातु के भाव हर गुजरते दिन के साथ नए शिखर को छू रहे हैं। दिवाली और धनतेरस से ठीक पहले सोने की चमक और तेज होती जा रही है, क्योंकि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच निवेशक सोने को सुरक्षित विकल्प मान रहे हैं। हालांकि, सबसे बड़ा सवाल यही है कि सोने में निवेश किस रूप में किया जाए- फिजिकल गोल्ड, ज्वेलरी, डिजिटल गोल्ड या फिर गोल्ड ईटीएफ? हर विकल्प के अपने नफा और नुकसान है। तो आखिर समझदारी किसमें है? यह समझने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बात की।

फिजिकल गोल्ड बनाम गोल्ड ज्वेलरी: शुद्धता और खर्च पर ध्यान दें

एक्सपर्ट्स का कहना है कि निवेश के नजरिए से फिजिकल गोल्ड बार या कॉइन बेहतर विकल्प है। इसमें शुद्धता बनी रहती है और अतिरिक्त खर्च नहीं जुड़ते। दूसरी ओर, त्योहारों के मौके पर ज्वेलरी की सांस्कृतिक अहमियत जरूर है, लेकिन इसमें ज्यादा खर्च होने की वजह से बाद में पछतावा हो सकता है।

फिजिकल गोल्ड के फायदे: वेल्थ-टेक प्लेटफॉर्म वेल्थी.इन के को-फाउंडर आदित्य अग्रवाल बताते हैं, आमतौर पर यह 24 कैरेट का होता है और इसमें बाजार भाव से बहुत कम प्रीमियम जुड़ता है। इसी वजह से इसे बेचना आसान होता है और अच्छा मुनाफा मिल सकता है।

ज्वेलरी के नुकसान: वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अर्जुन गुहा ठाकुरता और आदित्य अग्रवाल कहते हैं, इसमें 8-25 फीसदी तक मेकिंग चार्ज, वेस्टेज फीस और डिजाइन प्रीमियम शामिल होते हैं। ज्वेलरी बेचने पर ज्वैलर्स ये सभी चार्ज काट लेते हैं, जिससे 10-15 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है।

इमोशनल एंगल: स्टॉकग्रो (StockGro) के फाउंडर और सीईओ अजय लखोटिया का कहना है कि दिवाली जैसे मौकों पर ज्वेलरी का भावनात्मक महत्व जरूर होता है, लेकिन यह धन बढ़ाने के लिहाज से सही विकल्प नहीं है।

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असल उदाहरण बताते हैं नुकसान:

लखोटिया बताते हैं कि बेंगलुरु के एक दंपती ने धनतेरस पर 22 कैरेट के कड़े खरीदे थे। लेकिन दो साल बाद कीमतें बढ़ने के बावजूद उन्हें रीसेल करते समय ज्यादातर मेकिंग चार्ज गंवाने पड़े। इसी तरह अग्रवाल ने बताया कि एक ग्राहक ने 2 लाख रुपये की ज्वेलरी खरीदी, जिसमें से 44,000 रुपये सिर्फ मेकिंग चार्ज में चले गए, यानी तुरंत 25 फीसदी का नुकसान हो गया। वहीं ठाकुरता ने एक मामला साझा किया, जिसमें एक निवेशक ने अक्षय तृतीया पर 2 लाख रुपये की ज्वेलरी खरीदी थी और रीसेल के समय 8-10 फीसदी का नुकसान झेलना पड़ा।

डिजिटल गोल्ड बनाम गोल्ड ईटीएफ: लिक्विडिटी और रेगुलेशन

डिजिटल गोल्ड और गोल्ड ईटीएफ में फिजिकल गोल्ड को संभालने की जरूरत नहीं होती। दोनों ही आधुनिक निवेश विकल्प हैं। हालांकि, इनकी पहुंच, नियमों और फीस में अंतर है। लंबे समय के लिए निवेश करने वालों के लिए ईटीएफ को आमतौर पर ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है।

डिजिटल गोल्ड के फायदे: अग्रवाल के मुताबिक इसमें सिर्फ 1 रुपये से भी निवेश शुरू किया जा सकता है। यह 24×7 ऐप पर उपलब्ध है और सुरक्षित वॉल्ट स्टोरेज में रखा जाता है। इसलिए यह शुरुआती निवेशकों के लिए बेहतर है। लखोटिया का कहना है कि यह शॉर्ट-टर्म खरीदारी के लिए भी आसान विकल्प है।

डिजिटल गोल्ड के नुकसान: लखोटिया और अग्रवाल का कहना है कि इसमें खरीद पर 3% जीएसटी लगता है। ज्यादातर प्लेटफॉर्म अनरेगुलेटेड हैं, खरीद-बिक्री का अंतर ज्यादा होता है और डिलीवरी कराने पर अतिरिक्त खर्च भी उठाना पड़ सकता है।

ईटीएफ के फायदे: ठाकुरता और लखोटिया के अनुसार, ईटीएफ सेबी (SEBI) के तहत रेगुलेटेड हैं। इनमें एक्सपेंस रेशियो कम होता है (0.2-1%), खरीद पर जीएसटी नहीं लगता और डिमैट अकाउंट के जरिए स्टॉक की तरह ट्रेडिंग की जा सकती है, जिससे लिक्विडिटी ज्यादा होती है।

टैक्स विवरण: अग्रवाल बताते हैं कि दोनों विकल्पों पर तीन साल के बाद इंडेक्सेशन के साथ 20% लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स लागू होता है।

उदाहरण के तौर पर, अग्रवाल ने बताया कि 2025 में एक निवेशक ने डिजिटल गोल्ड से ईटीएफ में शिफ्ट किया। इस कदम से उस निवेशक ने जीएसटी से होने वाले नुकसान से बचा और तेजी से कीमत बढ़ने पर बेहतर मुनाफा कमाया।

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दिवाली पर मिडिल क्लास परिवारों के लिए सबसे अच्छा विकल्प

आज के बढ़ते बाजार में, एक्सपर्ट्स मिडिल क्लास परिवारों को त्योहारों पर सोना खरीदते समय परंपरा से ज्यादा वित्तीय समझ पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। इसका मतलब है कि छोटे भावनात्मक निवेश के साथ ऐसे स्मार्ट विकल्पों को शामिल करना जो असली रिटर्न प्रदान करें।

सबसे बेहतर विकल्प- गोल्ड ईटीएफ: लखोटिया और अग्रवाल के अनुसार, ईटीएफ में पारदर्शी कीमतें होती हैं, कोई छिपे हुए चार्ज नहीं होते और तेजी से लिक्विडिटी मिलती है। साथ ही, यह महंगाई से बचाव का भी अच्छा तरीका है। ठाकुरता सुझाव देते हैं कि अपने पोर्टफोलियो का सिर्फ 5-10% सोने में निवेश करें ताकि ओवरएक्सपोजर से बचा जा सके।

ज्वेलरी संबंधी सलाह: अग्रवाल कहते हैं कि ज्वेलरी सिर्फ सांस्कृतिक खुशी के लिए थोड़ी मात्रा में ही खरीदी जाए, इसे मुख्य निवेश के रूप में न देखें।

उदाहरण के लिए: लखोटिया ने मेरठ के एक परिवार का उदाहरण दिया, जिन्होंने 2022 में ईटीएफ में SIP शुरू किया और 2025 में मेडिकल खर्च के लिए आसानी से हिस्सा बेचकर मुनाफा कमाया। अग्रवाल बताते हैं कि एक निवेशक ने 2022 से गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर अपने रिटर्न दोगुने कर लिए, जो ज्वेलरी से कहीं बेहतर था। ठाकुरता सोने की अस्थिरता पर ध्यान देते हैं, रोलिंग एनालिसिस के आधार पर पिछले एक दशक में 10 फीसदी से ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना सिर्फ 20 फीसदी है।

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नए निवेशकों के लिए छिपी चुनौतियां और फायदे

पहली बार निवेश करने वालों को केवल दिखावे पर ध्यान नहीं देना चाहिए। उन्हें अलग-अलग विकल्पों के खर्च और लाभ को समझना जरूरी है। फिजिकल गोल्ड में शुद्धता पर सतर्क रहना पड़ता है, जबकि डिजिटल गोल्ड और ईटीएफ विकल्प जीवन को आसान बनाते हैं, लेकिन पूरी तरह से बिना शुल्क वाले नहीं हैं।

ध्यान देने योग्य खर्च: फिजिकल गोल्ड में शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए BIS हॉलमार्क की जरूरत होती है। ईटीएफ में एनुअस एक्सपेंस रेशियो और ब्रोकरेज को ध्यान में रखें। डिजिटल गोल्ड में GST और खरीद-बिक्री के अंतर को भी जोड़ें।

फायदे समझें: अग्रवाल बताते हैं, सभी प्रकार के सोने का निवेश महंगाई से सुरक्षा देता है और पोर्टफोलियो को विविधता प्रदान करता है। डिजिटल गोल्ड और ईटीएफ में स्टोरेज का जोखिम नहीं होता और मेकिंग चार्ज के बिना पारदर्शी कीमतें मिलती हैं।

इस सीजन में शुद्ध निवेश के लिए ईटीएफ सबसे सरल और रेगुलेटेड विकल्प के रूप में सबसे आगे हैं।

First Published - October 2, 2025 | 3:49 PM IST

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