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IPO मार्केट फिर से पटरी पर लौटने को तैयार

बीएसई के आईपीओ इंडेक्स में इस साल अब तक 19 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

Last Updated- July 31, 2023 | 3:00 PM IST
IGI IPO

साल की शुरुआत में आई गिरावट के बाद से भारतीय शेयर बाजार में जबरदस्त तेजी देखी जा रही है। जिसकी वजह घरेलू निवेशकों के साथ-साथ विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारतीय शेयर बाजार को लेकर बढ़ा विश्वास और उत्साह है। इस तेजी का फायदा उठाने के लिए अब घरेलू कंपनियां आगे आ रही हैं। आईपीओ के जरिए इन कंपनियों में प्राइमरी मार्केट से पूंजी जुटाने को लेकर विश्वास बढ़ा है। दूसरी तिमाही के दौरान आए कई आईपीओ को निवेशकों का भी शानदार रिस्पांस मिला।

हालांकि प्राइमरी मार्केट के लिहाज से पिछला साल बहुत उत्साहजनक नहीं रहा था। इस कैलेंडर ईयर की पहली यानी जनवरी-मार्च तिमाही के दौरान भी खासकर बड़ी कंपनियां प्राइमरी मार्केट से दूर ही रहीं। लेकिन दूसरी तिमाही के दौरान सेकेंडरी मार्केट में आई शानदार तेजी के बीच प्राइमरी मार्केट में सक्रियता बढ़ी है। जानकारों का मानना है कि साल की दूसरी छमाही के दौरान प्राइमरी मार्केट में और तेजी आएगी। पहली छमाही में जहां ज्यादातर छोटी कंपनियों की तरफ से धन जुटाए गए वहीं दूसरी छमाही में बडी कंपनियां भी प्राइमरी मार्केट में दिलचस्पी दिखा सकती हैं।

प्राइम (PRIME) डेटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया के मुताबिक सेकेंडरी मार्केट में सुस्ती और अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता की वजह से साल की पहली छमाही में कंपनियां आईपीओ लाने से बचती रही। लेकिन जिस तरह से घरेलू बाजार ने तेजी की राह पकड़ी है, प्राइमरी मार्केट का प्रदर्शन दूसरी छमाही में बेहतर रह सकता है।

मौजूदा कैलेंडर ईयर (2023) में अभी तक कंपनियों ने 14  मेनबोर्ड आईपीओ (एसएमई आईपीओ शामिल नहीं) के जरिए बाजार से तकरीबन 13,500 करोड रुपये जुटाए हैं। पिछले कैलेंडर ईयर में कुल 40 आईपीओ के जरिए बाजार से 59,412 करोड़ रुपये जुटाए गए थे। इससे पहले सर्वाधिक 1,18,723 करोड़ रुपये वर्ष 2021 में 63 आईपीओ के जरिए जुटाए गए थे।

इस साल का सबसे बड़ा आईपीओ अभी तक फार्मा कंपनी मैनकाइंड फार्मा (Mankind Pharma)  की तरफ से आया है। इस कंपनी ने अप्रैल में बाजार के जरिए 4,326 करोड़ रुपये जुटाए। वर्ष 2023 के अन्य आईपीओ हैं – नेटवेब टेक्नोलॉजी (इसकी लिस्टिंग 89 फीसदी प्रीमियम के साथ 27 जुलाई को हुई), नेक्सस सेलेक्ट ट्रस्ट, सेनको गोल्ड, साएंट डीएलएम, आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजी, एचएमए एग्रो, आईकियो लाइटिंग, एवलॉन टेक्नोलॉजीज, और दिवगी टॉर्क।

आईपीओ का प्रदर्शन/परफॉर्मेंस

बीएसई के आईपीओ परफॉर्मेंस ट्रैकर के अनुसार मेनबोर्ड और एसएमई सेगमेंट को मिलाकर इस कैलेंडर वर्ष में 26 जुलाई तक 50 आईपीओ (13 मेनबोर्ड और 37 एसएमई सेगमेंट में) आए हैं। 43 आईपीओ का प्रदर्शन इश्यू प्राइस की तुलना में बेहतर है। जबकि 7 आईपीओ नुकसान मे यानी इश्यू प्राइस से नीचे चल रहे हैं। वहीं लिस्टिंग के लिहाज से 36 आईपीओ की लिस्टिंग इश्यू प्राइस से ऊपर जबकि 14 आईपीओ की लिस्टिंग इश्यू प्राइस से नीचे हुई।

इस वर्ष सबसे बडी आईपीओ लाने वाली कंपनी मैनकाइंड फार्मा के शेयर फिलहाल इश्यू प्राइस से तकरीबन 69 फीसदी ऊपर चल रहे हैं। लिस्टिंग के दिन ही इस कंपनी के शेयरों में 31.86 फीसदी की शानदार तेजी दर्ज की गई थी। उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक और आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजी के शेयर भी फिलहाल इश्यू प्राइस से क्रमश: 100 फीसदी और 74 फीसदी ऊपर चल रहे हैं।

बीएसई के आईपीओ इंडेक्स (10,492.98 +18.90%) में इस साल अब तक 19 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जबकि बेंचमार्क इंडेक्स यानी बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी 50 इस वर्ष अब तक 9 फीसदी बढ़े हैं।

EY इंडिया के पार्टनर विनीत सुराणा ने कहा, ‘भारत के आईपीओ बाजार ने मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताओं और अपेक्षाकृत छोटे इश्यू आकार के बावजूद 2023 की पहली छमाही में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है। दूसरी छमाही के दौरान आईपीओ मार्केट में और तेजी आ सकती है, जिसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेशक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।’

परफॉर्मेंस (इश्यू प्राइस के मुकाबले -26 जुलाई 2023 तक)

मैनकाइंड फार्मा (+69.16%)
उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक  (+100.4%)
नेक्सस सेलेक्ट ट्रस्ट (+16.45)
सेनको गोल्ड  (+20.9%)
साएंट डीएलएम (+87.17%)
आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजी (+73.55%)
एचएमए एग्रो (+3.99%)
आईकियो लाइटिंग (+43.7%)
एवलॉन टेक्नोलॉजीज (+34.93%)
दिवगी टॉर्क (+54.83%)
उदयशिवकुमार इंफ्रा लिमिटेड (-14.91%)
ग्लोबल सरफेसेज लिमिटेड (+33.64%)
साह पॉलीमर्स (+51.03%)
रेडियंट कैश मैनेजमेंट (+2.81%)

देश के 10 सबसे बड़े आईपीओ

देश के अब तक के सबसे बड़े आईपीओ का रिकॉर्ड भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी (LIC) के नाम है। कंपनी ने पिछले साल आईपीओ के जरिए 205.5 अरब रुपये यानी 20,557 करोड़ रुपये जुटाए थे। इससे पहले यह रिकॉर्ड फिनटेक कंपनी पेटीएम (Paytm) के नाम था। पेटीएम ने 2021 में आईपीओ के जरिए 183 अरब यानी 18,300 करोड़ रुपये जुटाए थे। सरकारी कोल खनन कंपनी कोल इंडिया इस मामले में तीसरे नंबर पर है। कोल इंडिया ने 2010 में आईपीओ के जरिए 151.99 अरब यानी 15,199 करोड़ रुपये जुटाए थे।
देश के अब तक के 10 सबसे बड़े आईपीओ –

-एलआईसी (2022) – 205.5 अरब रुपये (20,557 करोड़ रुपये)
-पेटीएम (2021)-183 अरब रुपये
-कोल इंडिया (2010) – 151.99 अरब रुपये
-जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (2017) -112.57 अरब रुपये
-एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज (2020) -103.41 अरब रुपये
-रिलायंस पावर (2008) – 101.23 अरब रुपये
-न्यू इंडिया एश्योरेंस (2017) – 95.86 अरब रुपये
-जोमैटो (2021) – 93.75 अरब रुपये
-डीएलएफ (2007)- 91.88 अरब रुपये
-एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस (2017)- 86.95 अरब रुपये
-एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस (2017) -83.89 अरब रुपये

वैश्विक स्तर पर भारतीय आईपीओ मार्केट का प्रदर्शन

विश्व की बड़ी पेशेवर सेवा प्रदाता कंपनी EY (Ernst & Young) की ताजा रिपोर्ट (EY Global IPO Trends Q2 2023) के अनुसार चालू कैलेंडर ईयर/वर्ष के शुरुआती 6 महीनों के दौरान भारत में कंपनियों ने 80 आईपीओ (मेनबोर्ड और एसएमई आईपीओ को मिलाकर) के जरिए 2.1 बिलियन डॉलर जुटाए। इश्यू की संख्या के लिहाज से यह पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 33 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल इसी अवधि तक 60 आईपीओ की लिस्टिंग हुई थी।

हालांकि फंड रेजिंग (जुटाई गई धनराशि) के मामले में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 62 फीसदी की गिरावट आई है। क्योंकि पहली छमाही में जो भी आईपीओ आए हैं उनमें ज्यादातर (तकरीबन 70) एसएमई (SME) आईपीओ हैं। मेनबोर्ड आईपीओ को लेकर स्थिति  निराशाजनक रहने के बावजूद इतने SME कंपनियों का आईपीओ लाना MSME सेक्टर की मजबूती और विस्तार को दर्शाता है।

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आईपीओ की संख्या के मामले में वैश्विक स्तर पर भारत की हिस्सेदारी इस साल की पहली छमाही के दौरान बढ़कर 13 फीसदी हो गई। 2021 और 2022 में भारत की हिस्सेदारी क्रमश: 11 फीसदी और 6 फीसदी रही थी।

यूरोप, मध्य पूर्व, भारत और अफ्रीका के लिए EY के आईपीओ लीडर Martin Steinbach कहते हैं कि साल की धीमी शुरुआत के बाद प्राइमरी मार्केट दूसरी छमाही में फिर से तेजी दिखा सकती है। क्योंकि प्रमुख रिस्क फैक्टर्स के कम होने, वोलैटिलिटी के उचित स्तर पर वापस आने और ब्याज दरों में बढ़ोतरी का दौर पीछे छूटने के साथ ही कंपनियां आईपीओ लाने के लिए सही अवसर तलाश रही हैं।

ग्लोबल लेवल पर आईपीओ मार्केट का प्रदर्शन

EY की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर चालू कैलेंडर ईयर के शुरुआती 6 महीनों में 615 आईपीओ के जरिए बाजार से तकरीबन 60.9 बिलियन डॉलर जुटाए गए। जो इश्यू की संख्या और फंड रेजिंग के लिहाज से पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले क्रमश: 5 फीसदी और 36 फीसदी कम है।

अमेरिका में इस वर्ष के 6 महीनों में 64 आईपीओ के जरिए 8.8 बिलियन डॉलर जुटाए गए। जो इश्यू की संख्या और फंड रेजिंग के लिहाज से पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले क्रमश: 25 फीसदी और 87 फीसदी ज्यादा है। वहीं चीन (ग्रेटर) में कंपनियों ने 203 आईपीओ के जरिए बाजार से 33.4 बिलियन डॉलर जुटाए जो पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले क्रमश: 8 फीसदी ज्यादा और 35 फीसदी कम है।

फंड रेजिंग के लिहाज से टॉप के देशों का प्रदर्शन : 
चीन (ग्रेटर) :  33.4 बिलियन डॉलर (-35%)
अमेरिका: 8.8 बिलियन डॉलर (+87%)
यूरोप : 4.8 बिलियन डॉलर (+8%)
इंडोनेशिया : 2.2 बिलियन डॉलर (+74%)
भारत:  2.1 बिलियन डॉलर (-62%)
जापान:   1.9 बिलियन डॉलर (+257%)
दक्षिण कोरिया: 0.7 बिलियन डॉलर (-94%)

(स्रोत: EY Global IPO Trends Q2 2023)

अब बात आईपीओ से जुड़ी बेसिक बातों की:

आईपीओ क्या है?
जब भी किसी कंपनी को पूंजी की जरूरत होती है तो वह अपना शेयर निवेशकों यानी पब्लिक को बेचती है। चूंकि कंपनी अपना शेयर पब्लिक को पहली बार बेचती है, इसलिए इसे इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (Initial public offering) या आईपीओ कहते हैं। इस पूंजी का इस्तेमाल कंपनी अलग अलग कामों में कर सकती है, जैसे कारोबार के विस्तार, नए प्रोडक्ट को लॉन्च करने, कर्ज भुगतान,  व्यवसाय से संबंधित खर्च को चुकाने  …..वगैरह।  बदले में आईपीओ खरीदने वाले लोगों यानी निवेशकों को कंपनी में हिस्सेदारी मिल जाती है।

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कोई भी कंपनी मार्केट रेगुलेटर सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) द्वारा तय दिशा निर्देशों के तहत ही आईपीओ लाती है। आईपीओ लाने से पहले कंपनी को सेबी को यह बताना होता है कि वह आईपीओ क्यों ला रही है, आईपीओ के जरिए जो पूंजी जुटाएगी उसका कहां इस्तेमाल करेगी….. वगैरह।

आईपीओ में कैसे करें निवेश?

किसी निवेशक को अगर आईपीओ में निवेश करना है तो सबसे पहले उसके पास एक डीमैट अकाउंट होना चाहिए। क्योंकि लोगों को शेयर अलॉटमेंट पेपर फॉर्म में नहीं बल्कि डीमैट फॉर्म में होता है। जब तक आईपीओ सब्सक्रिप्शन के लिए खुला रहता है, इसे प्राइमरी मार्केट कहते हैं। आम तौर पर यह अवधि 3 से 10 दिनों की होती है। इस दौरान निवेशक आईपीओ के प्राइस बैंड (price band)  के भीतर अपनी पसंद की कीमत पर शेयर के लिए बोली लगा सकते हैं यानी बिड कर सकते हैं। जब आप बोली लगाते हैं तो आपको प्राइस के साथ साथ यह भी बताना होता है कि आप कितने लॉट के लिए बोली लगा रहे हो। एक लॉट में कितने शेयर होंगे यह कंपनी तय करती है। एक खुदरा निवेशक अधिकतम 2 लाख रुपये तक का निवेश ही एक आईपीओ में कर सकता है। एक बात और जब आप आईपीओ के लिए अप्लाई करते हैं तो आपको अपने सेविंग या ट्रेडिंग अकाउंट में अपनी बोली के बराबर धनराशि रखनी होती है। जो एएसबीए  यानी ASBA (Application Supported by Blocked Amount) की सुविधा के तहत तब तक ब्लॉक (ब्लॉक्ड) हो जाती है जबतक शेयर आपको आवंटित नहीं हो जाते। इसके बाद कंपनी निवेशकों से प्राप्त बिड/बोली के आधार पर आईपीओ का इश्यू प्राइस तय करती है और इस प्राइस के आधार पर निवेशकों के डीमैट अकाउंट में शेयर आवंटित करती है। फिर शेयरों की लिस्टिंग स्टॉक एक्सचेंज पर होती है। जिस प्राइस पर शेयरों की लिस्टिंग स्टॉक एक्सचेंज पर होती है उसे आईपीओ की लिस्टिंग प्राइस कहते हैं। लिस्टिंग के बाद कोई भी निवेशक उस शेयर को स्टॉक एक्सचेंज पर खरीद बेच सकता है। जिसे सेकेंडरी मार्केट भी कहते हैं।

कंपनियां आईपीओ क्यों लाती है ?

जब भी कोई कंपनी आईपीओ लाने का फैसला करती है तो आमतौर पर वह कारोबार बढ़ाने के लिए पूंजी जुटाना चाहती है। आईपीओ के जरिए पूंजी जुटाने में कंपनी को कई फायदे होते हैं। कंपनी को कैपेक्स (कैपिटल एक्सपेंडीचर) यानी कारोबार के विस्तार के लिए आवश्यक धनराशि मिल जाती है। इससे कंपनी कर्ज लेने से बच जाती है। कर्ज लेने पर कंपनी को ब्याज चुकाना होता है। साथ ही जब आप कंपनी का शेयर खरीदते हैं तो कंपनी के प्रमोटर की तरह रिस्क में आप भी हिस्सेदार बन जाते हैं। हालांकि रिस्क इस पर निर्भर करता है कि आपके पास कितने शेयर हैं। लेकिन प्रमोटर अपना रिस्क बहुत सारे लोगों में बांटने में जरूर कामयाब हो जाता है।

इसके अलावा आईपीओ के जरिए पूंजी जुटाने के कुछ और भी फायदे हैं, मसलन कंपनी के शुरुआती निवेशकों को अपना निवेश निकालने/भुनाने का मौका मिल जाता है। आईपीओ के लॉन्च होने के बाद जब कंपनी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हो जाती है तो उसका शेयर कोई भी खरीद और बेच सकता है। इससे कंपनी के प्रमोटर, एंजेल इन्वेस्टर, वेंचर कैपिटलिस्ट, पीई फंड, जैसे तमाम स्टेक होल्डर्स /भागीदारों को अपना शेयर बेचने का रास्ता मिल जाता है। इस तरह से वो अपना शुरुआती निवेश निकाल पाते हैं।

आईपीओ के जरिए कंपनी अपने कर्मचारियों /स्टाफ को इनाम या बोनस/अप्रेजल /कंपनसेशन पैकेज के तौर पर खास प्रक्रिया के तहत अपने शेयर खरीदने का मौका देती हैं। इस प्रक्रिया को इंप्लॉइज स्टॉक ऑप्शन प्लान (ESOP)  कहा जाता है। ईसॉप का मकसद कर्मचारियों को कंपनी से जोड़कर रखना भी होता है। कर्मचारियों को ये शेयर फ्री या डिस्काउंट पर दिए जाते हैं। जब कंपनी के शेयर आईपीओ के बाद लिस्ट होते हैं तो कर्मचारियों को शेयर के भाव बढ़ने से फायदा होता है।

साथ ही स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिंग के बाद कंपनी की ब्रांडिंग में मदद मिलती है। क्योंकि उसके शेयरों में पब्लिक की हिस्सेदारी होती है और लोग उसे खरीद-बेच सकते हैं। इस तरह से और लोग भी उस कंपनी के बारे में ज्यादा जानने लगते हैं।

कुल मिलाकर कह सकते हैं कंपनियां कारोबार के विस्तार, शुरुआती निवेशकों को पैसे निकालने का रास्ता देने के लिए, कर्मचारियों को इनाम देने के लिए और कंपनी की पहचान बढ़ाने के लिए आईपीओ लाती हैं।

आईपीओ में निवेश से पहले किन बातों का रखें ख्याल
कंपनियां आईपीओ तभी लाती है जब मार्केट में तेजी का दौर होता है। ऐसे दौर में लोग कंपनी के फंडामेंटल को नजरअंदाज कर उसके आईपीओ में आंख मूंदकर निवेश करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि अतीत में ऐसे कई आईपीओ रहे हैं जो सफल नहीं हो सके। जबकि कई अन्य ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया और निवेशकों की संपत्ति में इजाफा किया। इसलिए आईपीओ में पैसा लगाते समय खुदरा निवेशकों को कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए।

सिर्फ कंपनी के नुकसान या मुनाफा को ध्यान में नहीं रखना चाहिए। क्योंकि परंपरागत कंपनियों से अलग न्यू एज कंपनियों का बिजनेस मॉडल अलग है। उदाहरण के तौर पर अधिकतर टेक स्टार्टअप्स फिलहाल घाटे में हैं लेकिन एक्सपर्ट्स उनके आईपीओ पर भरोसा जताते हैं क्योंकि उनका मानना है कि आने वाले सालों में इनमें से अधिकतर टेक स्टार्टअप फायदें में होंगे, क्योंकि इनके पास यूजर्स हैं, एप पर ट्रैफिक हैं… वगैरह ।

इसलिए आपको हर आईपीओ का अलग अलग विश्लेषण/अध्ययन करना चाहिए।

हालांकि आईपीओ लाने वाली अनलिस्टेड निजी कंपनियों का विश्लेषण काफी चुनौतीपूर्ण है। खासकर ऐसी कंपनियां जो बिल्कुल नई हैं। ऐसी कंपनियों के बारे में डाटा का एकमात्र सोर्स उनका ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) है। यह वो डॉक्‍युमेंट है जिससे पता चलता है कंपनी में किस तरह के अवसर हैं और किस तरह के जोखिम हो सकते हैं। इस डॉक्‍युमेंट में प्रमोटर्स के नाम, वे कितनी राशि जुटाना चाहते हैं, ताजा इश्यू का विवरण और बिक्री की पेशकश सभी जानकारी होती है।

एक निवेशक के रूप में, आपको आईपीओ के उद्देश्यों को भी देखना चाहिए, यह आईपीओ के जरिए फंड के इस्तेमाल को बताता है, जिसका जिक्र भी कंपनी डीआरएचपी में करती है। ये कारोबार के विस्तार के लिए हो सकते हैं, जो आम तौर पर एक अच्छी बात है। अगर कंपनी कर्ज के बोझ से दबी है और डीआरएचपी में उल्लेख करती है कि फंड का इस्तेमाल मौजूदा कर्ज का भुगतान करने के लिए किया जाएगा, तो निवेशकों को इसमें निवेश करने में ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए।

जहां तक नए स्टार्टअप्स में निवेश की बात है इस तरह के स्टार्टअप में उन निवेशकों को निवेश करना चाहिए जो इस बिजनेस को समझते हो और ज्यादा जोखिम लेने की क्षमता रखते हों। किसी भी स्टार्ट अप का भविष्य आपको नहीं पता होता और इसको समझना थोड़ा मुश्किल भी होता है। अभी बाजार अच्छा है तो सब स्टार्टअप अच्छे दिखेंगे लेकिन कौन सा सर्वाइव करेगा और कौन सी बेहतर कंपनी द्वारा खरीदा जाएगा ये आकलन मुश्किल है। इसलिए किसी भी नए स्टार्टअप से बचें और जिसको कुछ साल बिजनेस करते हुए हो गए हों उनमें ही निवेश करें। हालांकि यह कोई थंब रूल नहीं है।

First Published - July 30, 2023 | 1:59 PM IST

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