इस साल11 मार्च को 7.01 फीसदी तक लुढ़कने के बाद 10 साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड 16 अप्रैल को बढ़कर 7.19 फीसदी हो गई। जिन निवेशकों ने मार्क-टु-मार्केट (एमटीएम) लाभ की उम्मीद में लंबी अवधि के फंडों पर दांव लगाया है वे आज काफी चिंतित हैं। 10 साल के सरकारी बॉन्डों की यील्ड वैश्विक कारणों से बढ़ी है।
ऐक्सिस म्युचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम प्रमुख देवांग शाह ने कहा, ‘यह मुख्य तौर पर भू-राजनीतिक जोखिमों के कारण हुआ है, जिसने कच्चे तेल और मुद्रा को प्रभावित किया है। दूसरा बड़ा कारण अमेरिका के आंकड़े हैं, जिनके कारण अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दर कटौती की आस टल गई है।’
अमेरिका में जीडीपी वृद्धि अनुमानों को बढ़ाया जा रहा है। मुद्रास्फीति सख्त बनी हुई है। अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ने से भारत में भी यील्ड बढ़ रही है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में कटौती की उम्मीदें भी धूमिल हो रही हैं।
क्वांटम ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी ने फंड मैनेजर (फिक्स्ड इनकम) पंकज पाठक ने कहा, ‘बाजार को पहले इस साल दरों में तीन बार कटौती की उम्मीद थी, लेकिन अब दो बार कटौती की ही उम्मीद है।’
कॉरपोरेट ट्रेनर (ऋण बाजार) और लेखक जयदीप सेन ने कहा, ‘शुरू में 150 आधार अंकों की कटौती की उम्मीद थी अब इसे कम कर 50 आधार अंक कर दिया गया है।’ पाठक को उम्मीद है कि अक्टूबर और दिसंबर में दरों में कटौती हो सकती है।
इस देर का असर भारत में भी होता दिख रहा है। मगर विशेषज्ञों का कहना है कि कटौती की गुंजाइश अभी बरकरार हैं। शाह कहते हैं, ‘वित्त वर्ष 2025 में भारत में औसत मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी रहने की उम्मीद है। ऑपरेटिव दर 6.5 फीसदी है, जिससे भारतीय रिजर्व बैंक नरम रुख अपना सकता है।’
मांग-आपूर्ति सकारात्मक रहने से यील्ड में नरमी आ सकती है। पाठक का कहना है, ‘सरकार ने इस साल के बजट के दौरान कम सरकारी बॉन्ड आने की आशंका जताई है। अगले दो से तीन वर्षों के दौरान आपूर्ति में और गिरावट आ सकती है। इस बीच बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों से मजबूत मांग आती दिख रही है।’
विदेशी बॉन्ड सूचकांक में भारतीय सरकारी बॉन्ड शामिल होने से भी मांग बढ़ने की उम्मीदें हैं। शाह ने कहा, ‘भारतीय सरकारी बॉन्ड को जेपी मॉर्गन सूचकांक और ब्लूमबर्ग इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में शामिल किया गया है। ये सभी मिलकर 20 से 25 अरब डॉलर के निवेश को बढ़ावा देंगे। इस रकम का कुछ हिस्सा पहले ही आ चुका है। साल की दूसरी छमाही तक अगला 15 से 20 अरब डॉलर मिलने की उम्मीद है।’
खाद्य मुद्रास्फीति की अस्थिरता और कच्चे तेल की कीमतों में सख्ती ये ऐसे दो कारण हैं जिससे चिंता हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर से दरों में कटौती की शुरुआत हो सकती है। शाह कहते हैं, ‘भारत में मुद्रास्फीति तीसरी-चौथी तिमाही में रिजर्व बैंक के लक्ष्य से नीचे आ सकती है, जिससे संभावित रूप से बाजार में दरों में कटौती की उम्मीदें बढ़ सकती है अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरों में कटौती शुरू कर देता है।’
दरों में 50 से 75 आधार अंकों से ज्यादा की कटौती संभव नहीं है। सेन का कहना है कि हालिया घटनाक्रम के बाद इसके 50 आधार अंक के करीब होने की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘4.5 फीसदी की अनुमानित औसत मुद्रास्फीति और 6.5 फीसदी की रीपो दर के नतीजतन 200 आधार अंक की सकारात्मक वास्तविक ब्याज दर हो रही है। अगर मान लिया जाए कि रिजर्व बैंक 150 आधार अंकों के सकारात्मक वास्तविक ब्याज दर से संतुष्ट रहता है तो दरों में 50 आधार अंक से ज्यादा की कटौती की संभावना नहीं दिखती।’
इसलिए जिन निवेशकों ने दीर्घावधि डेट फंडों पर दांव लगाया है उन्हें अभी धैर्य रखना चाहिए। शाह कहते हैं, ‘दरों में कटौती टलने से उन्हें इस लाभ के लिए 6 से 12 महीने तक इंतजार करना पड़ सकता है।’
पाठक का कहना है कि दीर्घावधि डेट फंडों में निवेश करने वालों को कम से कम तीन वर्ष का समय लेकर चलना चाहिए। इन फंडों में निवेश सीमित होना चाहिए।
सेन कहते हैं, ‘अधिक जोखिम ले सकने वाले युवा निवेशक दीर्घावधि के बॉन्ड फंडों में 50 फीसदी तक निवेश कर सकते हैं। पुराने निवेशक और कम जोखिम की क्षमता वाले निवेशक 20 फीसदी तक निवेश कर सकते हैं। ज्यादा जोखिम न चाहने वाले निवेशकों को इससे पूरी तरह बचना चाहिए।