जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसी चुनौतियों से जूझ रही दुनिया अब निवेश के तरीकों में भी धीरे-धीरे बदलाव कर रही है। इन्हीं नए नए तरीकों के बीच भारत में अब एक नया फाइनेंशियल प्रोडक्ट तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इस लोकप्रिय प्रोडक्ट को नाम दिया है ग्रीन डिपॉजिट। यह एक ऐसा निवेश विकल्प है, जो न केवल सुरक्षित और अच्छाा रिटर्न देता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने जून 2023 में ग्रीन डिपॉजिट के लिए एक स्ट्रक्चर जारी किया था, जिसमें बैंकों को जमा पैसे को सिर्फ ग्रीन प्रोजेक्ट्स में लगाने की अनुमति दी गई है। इस प्रोजेक्ट्स में मुख्य रूप से सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रिक गाड़ियां, पानी और वेस्ट मैनेजमेंट आदि शामिल होते हैं।
ग्रीन डिपॉजिट एक सामान्य फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की तरह ही है, लेकिन इसका असर कहीं अधिक बड़ा और पॉजिटिव है। इसमें बैंकों को सालाना रिपोर्टिंग और थर्ड पार्टी ऑडिट जैसी पारदर्शिता की शर्तें पूरी करनी होती हैं, जिससे निवेशकों का भरोसा मजबूत होता है। स्टेट बैंक, एक्सिस, यूनियन बैंक जैसे कई बड़े बैंक इस विकल्प की पेशकश कर रहे हैं।
अगर आप एक ऐसा निवेश चाहते हैं जो आपको आर्थिक लाभ के साथ-साथ धरती को भी लाभ पहुंचाए, तो ग्रीन डिपॉजिट एक समझदारी भरा कदम हो सकता है।
ग्रीन डिपॉजिट में भी निवेशक अपने पैसे को बैंक में एक निश्चित समय के लिए FD की तरह जमा करते हैं, और बदले में उन्हें उसका ब्याज मिलता है। लेकिन इस योजना की खासियत यह है कि जमा किए गए पैसे का इस्तेमाल केवल उन परियोजनाओं में किया जाता है, जो पर्यावरण के लिए फायदेमंद हों। इन परियोजनाओं में सौर और पवन ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए हो रहे काम, पानी, वेस्ट मैनेजमेंट और ग्रीन बिल्डिंग आदि शामिल हो सकते हैं।
बैंकिंग एक्सपर्ट मोहित गांग कहते हैं, “जब कोई व्यक्ति या संस्था ग्रीन डिपॉजिट में निवेश करता है, तो बैंक उस पैसे को ऐसी परियोजनाओं के लिए लोन देने या निवेश करने में उपयोग करता है। उदाहरण के लिए, यह पैसा सौर ऊर्जा प्लांट बनाने, इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने आदि को बनाने या फिर उसके लिए रिसर्च में इस्तेमाल किया जा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम बनाए हैं कि इन फंड्स का उपयोग केवल इन्हीं चीजों के लिए ही हो। बैंकों को हर साल इन फंड्स के उपयोग और उनके होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव की जानकारी सार्वजनिक करनी होती है। इसके अलावा, इन फंड्स का ऑडिट भी किसी थर्ड पार्टी द्वारा किया जाता है, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।”
मोहित गांग के मुताबिक, ग्रीन डिपॉजिट में निवेश की प्रक्रिया FD की तरह ही होती है। निवेशक को एक निश्चित पैसा (जो आमतौर पर 5,000 रुपये से शुरू होकर 10 करोड़ रुपये तक हो सकती है) जमा करना होता है। जमा करने का समय और ब्याज दर बैंक के नियमों पर निर्भर करती है। इस पैसे को डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) के तहत बीमा किया जाता है, जिससे निवेशक का पैसा सुरक्षित रहता है।
गांग के मुताबिक, ग्रीन डिपॉजिट और FD में कई समानताएं हैं। हालांकि, कुछ बुनियादी अंतर दोनों को अलग बनाते हैं। सबसे बड़ा अंतर यह है कि ग्रीन डिपॉजिट में जमा किए गए पैसे का इस्तेमाल सिर्फ पर्यावरण को लाभ पहुंचाने वाले परियोजनाओं में किया जाता है, जबकि FD में जमा पैसे का इस्तेमाल बैंक अपने सामान्य कारोबार, लोन देने या दूसरे निवेश में उपयोग कर सकता है। इस तरह ग्रीन डिपॉजिट में निवेश करने वाला हर व्यक्ति यह दावा कर सकता है कि उसका पैसा पर्यावरण से जुड़ी परियोजनाओं के लिए हो रहा है।
दूसरा अंतर नियमों और पारदर्शिता में है। ग्रीन डिपॉजिट पर भारतीय रिजर्व बैंक की पूरी नजर रहती है और इसके लिए अलग से दिशानिर्देश हैं। इसकी वजह से बैंकों को फंड्स के उपयोग की पूरी जानकारी देने और हर साल ऑडिट करवाना पड़ता है। इसके विपरीत, FD में ऐसी कोई शर्त या पारदर्शिता की जरूरत नहीं होती। ब्याज दरों की बात करें तो ग्रीन डिपॉजिट की दरें सामान्य FD के बराबर या कभी-कभी थोड़ी अधिक हो सकती हैं, क्योंकि बैंक पर्यावरण के प्रति जागरूक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कभी-कभी अच्छी दरें ऑफर करते हैं।
गांग कहते हैं, “एक और जरूरी अंतर नैतिक प्रभाव का है। ग्रीन डिपॉजिट में निवेश करके व्यक्ति पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में योगदान देता है, जो इसे एक नैतिक और जिम्मेदार निवेश विकल्प बनाता है। सामान्य FD में ऐसा कोई पर्यावरणीय या सामाजिक प्रभाव नहीं होता।”
ग्रीन डिपॉजिट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह निवेशकों को पर्यावरण संरक्षण में योगदान देने का मौका देता है। अगर आप जलवायु परिवर्तन या प्रदूषण जैसी समस्याओं को लेकर चिंतित हैं, तो यह योजना आपके पैसे को सही दिशा में लगाने का एक तरीका है। इसके अलावा, इसकी ब्याज दरें सामान्य FD की तुलना में प्रतिस्पर्धी होती हैं, जिससे निवेशक को आर्थिक लाभ भी मिलता है।
मोहित गांग कहते हैं, “यह योजना उन लोगों के लिए भी खास है, जो अपने निवेश को पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) मानकों के आधार पर करना चाहते हैं। ग्रीन डिपॉजिट के जरिए निवेशक अपने पोर्टफोलियो में विविधता ला सकते हैं और साथ ही पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभा सकते हैं। बैंकों द्वारा हर साल दी जाने वाली रिपोर्ट और तीसरे पक्ष के ऑडिट से निवेशकों को यह भरोसा रहता है कि उनका पैसा सही जगह पर इस्तेमाल हो रहा है। साथ ही, DICGC के तहत बीमा होने से यह निवेश पूरी तरह सुरक्षित भी है।”
हालांकि, अभी सभी बैंक ग्रीन डिपॉजिट की सुविधा नहीं दे रहे हैं। फिर भी, कई बड़े सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों ने इस दिशा में कदम उठाया है। मोहित गांग के मुताबिक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), बैंक ऑफ इंडिया, एक्सिस बैंक, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, IDFC फर्स्ट बैंक, AU स्मॉल फाइनेंस बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे बैंक ग्रीन डिपॉजिट योजनाएं शुरू कर चुके हैं।