भारत को इंजीनियरिंग टैलेंट के लिए दुनिया भर में जाना जाता है, लेकिन इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की संख्या और उनकी रोजगार के लिए काबिलियत के बीच एक बड़ा अंतर है। यह अंतर देश की आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति के लिए एक गंभीर चुनौती बन रहा है।
रोजगार क्षमता की चुनौती:
भारत हर साल लगभग 15 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स तैयार करता है, लेकिन उनमें से बहुत कम को नौकरी मिलती है। TeamLease की रिपोर्ट के अनुसार, इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में 60% से अधिक रोजगार योग्य होते हैं, लेकिन केवल 45% ही इंडस्ट्री की जरूरतों को पूरा करते हैं। इस वित्तीय वर्ष में 15 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में से केवल 10% के ही नौकरी पाने की उम्मीद है। इसका मुख्य कारण इन ग्रेजुएट्स के बीच स्किल्स की कमी बताया जा रहा है।
TeamLease की रिपोर्ट में कहा गया है, “इंजीनियरिंग भारत के विकास की एक मजबूत नींव रही है और यह सबसे पसंदीदा करियर ऑप्शन में से एक है। हालांकि, इतने बड़े पैमाने पर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स होने के बावजूद, उनकी रोजगार क्षमता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।”
NASSCOM ने अनुमान लगाया है कि भारत के टेक्नोलॉजी सेक्टर को अगले 2-3 साल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और अन्य नई तकनीकों में एडवांस्ड स्किल्स वाले 10 लाख से अधिक इंजीनियर्स की जरूरत होगी। इसके साथ ही, डिजिटल टैलेंट के लिए डिमांड और सप्लाई के बीच का अंतर 2028 तक 25% से बढ़कर 30% तक हो सकता है। AI, इलेक्ट्रिक वाहन (EV), सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री के बढ़ते चलन के कारण यह डिमांड और भी बढ़ रही है।
इंडस्ट्रीज में अब साइबर सिक्योरिटी, आईटी, रोबोटिक्स, और डेटा साइंस जैसे क्षेत्रों में विशेष स्किल्स की जरूरत बढ़ रही है। यह साफ है कि पारंपरिक अकेडमिक एजुकेशन अब पर्याप्त नहीं है।
स्किल गैप को कैसे दूर किया जाए?
इस अंतर को कम करने के लिए टेक्निकल एजुकेशन को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के साथ जोड़ना जरूरी है।
TeamLease डिग्री अप्रेंटिसशिप के वाइस प्रेसिडेंट धृति प्रसन्न महंता ने कहा, “अप्रेंटिसशिप इस कमी को भरने में मदद करता है। यह छात्रों को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के साथ-साथ फॉर्मल एजुकेशन देता है, जिससे युवा प्रोफेशनल्स पहले दिन से ही काम के लिए तैयार हो जाते हैं। असली दुनिया का अनुभव और मेंटरशिप उन्हें वो जरूरी स्किल्स सिखाते हैं, जो इंडस्ट्री की बढ़ती डिमांड को पूरा कर सकें।”
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
स्किल गैप: कई इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के पास वो प्रैक्टिकल स्किल्स और इंडस्ट्री-स्पेसिफिक नॉलेज नहीं होते जो एम्प्लॉयर्स को चाहिए।
बदलता जॉब मार्केट: तेजी से बढ़ती टेक्नोलॉजी और उभरते इंडस्ट्रीज ने स्किल्स गैप को और बढ़ा दिया है।
अप्रेंटिसशिप की भूमिका:
अंतर को भरना: अप्रेंटिसशिप अकादमिक लर्निंग को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के साथ जोड़कर स्किल्स गैप को कम करने का समाधान देता है।
इंडस्ट्री-स्पेसिफिक स्किल्स: अप्रेंटिसशिप युवा इंजीनियर्स को वो स्किल्स और अनुभव देता है, जिसकी आज के कॉम्पिटिटिव जॉब मार्केट में जरूरत है।
इंडस्ट्री की डिमांड और भविष्य:
बढ़ती डिमांड: भारत की टेक्नोलॉजी सेक्टर को एडवांस्ड स्किल्स वाले 10 लाख से अधिक इंजीनियर्स की जरूरत होगी।
स्किल्स की कमी: डिजिटल टैलेंट के लिए डिमांड और सप्लाई का अंतर बढ़ रहा है, जिससे इंडस्ट्रीज को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
समाधान की दिशा में कदम: