बीमा कंपनियां अपनी बीमा पॉलिसियों को रेहन के रूप में उपयोग करते हुए पॉलिसीधारकों को तेजी से ऋण वितरित कर रही हैं। खबरों के अनुसार, इस श्रेणी में ऋण की बकाया रकम 1.35 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ चुकी है। भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) इस श्रेणी की सबसे बड़ी कंपनी है। इसके अलावा कई अन्य निजी बीमा कंपनियां भी ऐसा कर रही हैं। मगर उन्होंने कम आधार पर एक साल पहले के मुकाबले 25 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की है।
बीमा पॉलिसी पर ऋण ग्राहकों को नकदी की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने में मदद करता है। जेनेराली सेंट्रल लाइफ इंश्योरेंस के मुख्य वित्तीय अधिकारी राजीव चुघ ने कहा, ‘जीवन बीमा पॉलिसी सुरक्षा प्रदान करते हुए उधारकर्ता के वित्तीय भविष्य को भी सुरक्षित करती है।’
उधारी के मामले में शून्य अथवा खराब इतिहास वाले उधारकर्ताओं के लिए यह एक अच्छा विकल्प है। पैसाबाजार के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) संतोष अग्रवाल ने कहा, ‘अगर किसी को अपनी खराब क्रेडिट प्रोफाइल या किसी अन्य कारण से ऋण लेने में कठिनाई हो रही हो तो उनके लिए यह एक अच्छा विकल्प है।’
पॉलिसी के एवज में लिया गया ऋण पर्सनल लोन जैसे बिना रेहन वाले ऋण के मुकाबले सस्ता होता है।
चुघ ने कहा कि इसमें ब्याज एवं मूलधन की अदायगी भी सुविधाजनक है। इसके लिए उधारकर्ता मासिक किस्त (ईएमआई) जैसे विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं। वे नियमित अंतराल पर केवल ब्याज के भुगतान का भी विकल्प चुन सकते हैं। इसके अलावा वे ऋण अवधि के आखिर में मूलधन की एकमुश्त अदायगी भी कर सकते हैं।
बैंक बाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी ने कहा, ‘उधारकर्ताओं को सावधि जमा (एफडी) तोड़ने अथवा पॉलिसी सरेंडर करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त रेहन भी नहीं देना होगा। उन्हें उसी चीज पर ऋण दिया जाता है जो उनके पास पहले से ही मौजूद है।’उधारकर्ता को रकम भी जल्द मिल जाती है क्योंकि इसमें रेहन संबंधी कोई नया आकलन करने की जरूरत नहीं होती है।
सभी बीमा पॉलिसी इस ऋण के लिए पात्र नहीं हैं। शेट्टी ने कहा, ‘यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान और टर्म प्लान के बदले आप ऋण नहीं ले सकते हैं।’
अदायगी में चूक होने के गंभीर परिणाम होते हैं। अग्रवाल ने कहा, ‘अगर उधारकर्ता अदायगी में चूक करता है तो ऋण एवं संचित ब्याज को पॉलिसी के सरेंडर मूल्य अथवा परिपक्वता मूल्य से समायोजित किया जाता है। इससे पॉलिसीधारक या नॉमिनी को मिलने वाली रकम कम हो जाती है।’
चुघ ने कहा, ‘अगर रिड्यूस्ड पेडअप जीवन बीमा पॉलिसी का सरेंडर मूल्य ऋण एवं संचित ब्याज से कम हो जाता है तो पॉलिसी समय से पहले ही बंद हो जाती है।’ ऐसे में कवरेज और पॉलिसी के अन्य फायदों का नुकसान होता है।
अगर आप बीमा पॉलिसी पर ऋण लेना चाहते हैं तो आपको यह अवश्य देखना चाहिए कि आपकी पॉलिसी ऋण लेने के लिए पात्र है या नहीं। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के संस्थापक एवं सीईओ विशाल धवन ने कहा, ‘जांच कर लें कि आपकी पॉलिसी का संचित सरेंडर मूल्य आपकी जरूरतों को पूरा करने लायक है या नहीं।’
अदायगी की शर्तें भी उधारकर्ता के नकदी प्रवाह के अनुरूप होनी चाहिए। धवन ने सुझाव दिया कि विभिन्न उधारदाताओं के एलटीवी (लोन टु वैल्यू), ब्याज दर, प्रॉसेसिंग फीस, प्रशासनिक शुल्क एवं समय से पहले बंद करने की शर्तों की तुलना करना बेहतर रहेगा।
अगर जरूरत नहीं है कि आपको अधिकतम ऋण लेने से बचना चाहिए। धवन ने कहा, ‘ऐसा करने से ब्याज लागत बढ़ जाती है और अनावश्यक खर्च को भी बढ़ावा मिल सकता है। इन ऋण का उपयोग आकस्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए करें, न कि छुट्टियों पर खर्च करने अथवा लग्जरी खरीदारी के लिए।’
ऋण लेने से पहले आपको अपनी अदायगी क्षमता का भी आकलन करना चाहिए। शेट्टी ने कहा, ‘अगर आपको अपनी अदायगी क्षमता पर भरोसा नहीं है तो आपको ऋण लेने के बजाय पॉलिसी को भुनाने पर विचार करना चाहिए।’
ऋण अवधि के दौरान प्रीमियम का भुगतान जारी रहना चाहिए, ताकि पॉलिसी लैप्स न हो। ऋण की अदायगी में देरी भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे ब्याज का बोझ बढ़ जाता है।
उधारकर्ताओं को गोल्ड लोन और सावधि जमा पर ऋण जैसे विकल्पों का आकलन किए बिना यह ऋण नहीं लेना चाहिए। शेट्टी ने कहा, ‘अगर आपके पास सोना या एफडी है जिन्हें रेहन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है तो इस बात की तहकीकात कर लें कि कौन सा विकल्प सबसे सस्ता रहेगा।’ अग्रवाल ने कहा कि होम लोन वाले उधारकर्ताओं के लिए टॉपअप लोन एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
धवन ने कहा कि सावधि जमा पर ऋण की लागत आम तौर पर एफडी दर से महज 1 से 2 फीसदी ऊपर होती है। इसलिए यह बीमा पॉलिसी के एवज में लिए गए ऋण के मुकाबले सस्ता हो सकता है। यह ऋण ओवरड्राफ्ट सुविधा के तौर पर दिया जाता है और इसलिए ब्याज केवल निकाली गई रकम पर ही देना होता है।