इस साल अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने भारतीय शेयर बाजार से करीब ₹1.42 लाख करोड़ की बिकवाली की है। वहीं, घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने लगभग ₹5.24 लाख करोड़ की खरीदारी कर बाजार को सहारा दिया है।
मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट मोहम्मद इमरान के मुताबिक, “DII अब बाजार की मजबूती और ग्रोथ के असली ड्राइवर बन गए हैं। रिटेल निवेशकों और लॉन्ग-टर्म कैपिटल से मिलने वाले स्थिर इनफ्लो ने भारतीय बाजार को आत्मनिर्भर और ग्लोबल झटकों से कम प्रभावित बनाया है।”
वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) में FII ने $15.6 बिलियन की बिकवाली की, लेकिन इसके बावजूद निफ्टी में 5% की बढ़त दर्ज हुई। जबकि 2008-09 (FY09) में FII ने सिर्फ $10.4 बिलियन की बिकवाली की थी, तब बाजार 36% टूट गया था। इससे साफ होता है कि घरेलू निवेशकों की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा अहम हो गई है।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के हेड ऑफ प्राइम रिसर्च देवरश वाकिल का कहना है, “भारत पूरी तरह ग्लोबल शॉक्स से अलग नहीं हो सकता। वैल्यूएशन, करेंसी और कमोडिटी प्राइस ग्लोबली जुड़े हुए हैं। DII बाजार में गिरावट को सीमित कर सकते हैं, लेकिन अगर लंबे समय तक FII बिकवाली करें तो इसका असर जरूर दिखेगा।”
विशेषज्ञों का मानना है कि DII की खरीदारी अगर धीमी पड़ती है, तो बाजार की लिक्विडिटी और सेंटिमेंट पर असर पड़ेगा। इसलिए एक स्वस्थ बाजार के लिए घरेलू और विदेशी दोनों तरह के निवेशकों का संतुलन जरूरी है।
मास्टर ट्रस्ट ग्रुप के डायरेक्टर पुनीत सिंघानिया कहते हैं, “हालांकि अब भारत का इक्विटी मार्केट घरेलू निवेशकों की वजह से ज्यादा बैलेंस्ड दिख रहा है, लेकिन FII की भूमिका अब भी अहम है। वे सेंटिमेंट, वैल्यूएशन और ग्लोबल कैपिटल फ्लो से जुड़ाव बनाए रखने के लिए जरूरी हैं।”
डेटा भी यही दिखाता है कि पिछले एक दशक में NSE 500 इंडेक्स के रिटर्न और FII फ्लो में औसतन 64% का कनेक्शन रहा है। अभी भी यह आंकड़ा 74% पर बना हुआ है।
एनालिस्ट्स का कहना है कि FII अब उतना दबदबा तो नहीं रखते जितना पहले रखते थे, लेकिन बड़े निवेश सौदों में उनकी भूमिका अब भी निर्णायक है। इनमें QIP (Qualified Institutional Placement), IPO में एंकर इन्वेस्टमेंट और बड़े ब्लॉक डील्स शामिल हैं, जहां घरेलू संस्थान अभी स्केल बनाने की प्रक्रिया में हैं।